गृह मंत्री अमित शाह 23 और 24 सितंबर को बिहार के सीमांचल के दो दिवसीय दौरे पर आये. उनकी इस यात्रा को बिहार में भाजपा की चुनावी रणनीति का बड़ा हिस्सा माना जा रहा है. बिहार में भाजपा की रणनीति क्या होगी और झारखंड के ताजा राजनीतिक हालात को वे किस तरह देखते हैं, जैसे विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी और वरिष्ठ संपादक जीवेश रंजन सिंह से लंबी बातचीत की.
बिहार के संदर्भ में वह मानते हैं कि राजनीति में कोई वैक्यूम नहीं होता है. बिहार में हर बूथ पर भाजपा पहुंचेगी. वहीं, डेढ़ माह से झारखंड में बनी ऊहापोह की स्थिति पर उनकी स्पष्ट राय है कि चुनाव आयोग के फैसले पर जो भी निर्णय लेना है, वह राज्यपाल को लेना है.
भाजपा हमेशा से यह कहती आयी कि बिहार में उसका चेहरा नीतीश कुमार हैं. वर्ष 2020 में भाजपा ने उन्हें सीएम भी बनाया. वर्ष 2025 में उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की बात थी, पर अचानक क्या हुआ कि राहें अलग-अलग हो गयीं?
देखिए, हमारी ओर से कुछ नहीं हुआ, न ही हमने गठबंधन तोड़ने की पहल की. इसलिए यह नीतीश जी को बताना चाहिए कि ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने गठबंधन तोड़ा. ऐसी कौन-सी घटना हुई, जिससे उन्होंने यह कदम उठाया. जब लालू जी के पास से नीतीश जी हमारे पास आये थे, तब तो कहा था कि लालू जी पर करप्शन का केस हो गया है. तब हमने उनकी बात मान ली थी, पर अब क्या हुआ है? अब यही हुआ है कि उनके मन में किसी ने कोई मोह जगा दिया है. बाकी तो उनका पुराना इतिहास है.
विश्वनाथ प्रताप सिंह से लेकर जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, लालू यादव, रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी जैसे लोगों की लंबी सूची है, जिनके साथ उन्होंने कभी न कभी यही किया है, जो हमारे साथ किया, पर इसका जवाब बिहार की जनता देगी, भाजपा को यह विश्वास है, क्योंकि वर्ष 2020 में बिहार के चुनाव के बाद नीतीश कुमार से ज्यादा संख्या हमारे विधायकों की थी, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बड़े हृदय का परिचय देकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन उन्होंने जनादेश के साथ धोखा किया है. इसलिए इसका हिसाब-किताब बिहार की जनता चुनाव में अपने वोट के माध्यम से करेगी.
बिहार में भाजपा बहुत दिनों से सक्रिय रही है, कुछ क्षेत्रों में मजबूत भी है, लेकिन समग्र रूप से देखें, तो इतनी मजबूत नजर नहीं आती. आखिर क्या कारण है कि इतने वर्षों बाद भी भाजपा अकेली मजबूत खड़ी नहीं दिखती?
-देखिए, बिहार में हम हमेशा मर्यादा में लड़े, छोटे भाई की भूमिका में लड़े. अब हम पूरी तरह से पार्टी का विस्तार करेंगे और आगे बढ़ेंगे. मुझे पूरा विश्वास है और जिस तरह से बिहार की जनता का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पर भरोसा है, भारतीय जनता पार्टी को यहां स्वीकृति मिलेगी और 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में अपने बूते पर भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत प्राप्त करेगी.
भाजपा के साथ पहले बहुत सहयोगी दल थे, खासकर बिहार में, पर वे धीरे-धीरे अलग हो गये. अब क्या स्ट्रेटजी है?
– ऐसा है कि राजनीति में कभी वैक्यूम रहता नहीं है. नीतीश जी आये थे, तो उनसे मतभेद के चलते थोड़ा-थोड़ा कर कुछ लोग चले गये थे, अब नीतीश जी नहीं हैं, तो देखेंगे, पर हम बिहार की हर सीट पर अपनी ताकत बढ़ाने की तैयारी कर चुके हैं. भारतीय जनता पार्टी अपना विस्तार करेगी और बिहार के हर बूथ तक हम पहुंचेंगे. हमने ऐसी जगहों पर भी सरकार बनायी है, जहां हमारा संगठन बहुत मजबूत नहीं था. चाहे मणिपुर हो, असम हो या फिर त्रिपुरा. यहां तो हमारा बेस है.
भारतीय जनता पार्टी की तीन पीढ़ियों के लोगों ने बिहार की राजनीति में सक्रिय योगदान दिया है. जेपी के आंदोलन को भी हमारे लोगों ने संबल दिया है. उनकी सहायता में हम लोग खड़े रहे. हमारा बिहार में एक मजबूत बेस है और इसका परिणाम भी मिलेगा. इसकी पूरी कार्ययोजना बन गयी है. बिहार में 51 प्रतिशत गरीब हैं. ये मोदी जी को अति सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी ने उनको दो साल तक नि:शुल्क राशन दिया.
घर, शौचालय, गैस व पांच लाख रुपये तक की स्वास्थ्य सुविधाएं दीं. बिहार की जनता ने आजतक ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं देखा है, जिसने ऐसा किया हो. यही कारण है कि जब-जब मतदान का मौका आया, हमने देखा कि बिहार की जनता ने हमें सम्मान दिया. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी हमारे वोट में कमी नहीं आयी, कमी तो जदयू के वोट में आयी.
हम तो अपने 70 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट के साथ आगे बढ़े. बिहार की जनता ने न केवल मोदी जी को सम्मान दिया, बल्कि हमारा स्ट्राइक रेट भी बढ़ाया, हमारा वोट भी बढ़ाया. यह सही है कि कई बार कुछ चीजें शुरुआत में दिक्कत वाली दिखती हैं, तो वे लंबे भविष्य के लिए अच्छी भी होती हैं.
पिछले डेढ़ माह से झारखंड में ऊहापोह की स्थिति है. अभी तक राज्यपाल ने चुनाव आयोग का मंतव्य सुनाया नहीं है, आपका क्या कहना है ?
राज्यपाल का पद संवैधानिक पद होता है. उन्होंने चुनाव आयोग को रेफर किया था. चुनाव आयोग ने उन्हें अपना फैसला भेजा है. अब राज्यपाल महोदय को स्टडी कर, कानूनी सुझाव लेकर, उचित समय पर, जब वे संतुष्ट होंगे, इसका फैसला जारी करना है. इसमें केंद्र सरकार का कोई दखल नहीं है.
सभी विपक्षी दल एक साथ एक मंच पर आने का प्रयास कर रहे हैं. आप इस प्रयास को किस तरह से देखते हैं और भारतीय जनता पार्टी इसका किस तरह से मुकाबला करेगी ?
एक बात बताइए, हेमंत सोरेन जी, शरद पवार जी, ममता जी, राव जी सभी एक मंच पर आये. यह बताएं कि शरद पवार जी के बिहार में सभा करने से कितना वोट मिलेगा? ममता जी को यूपी में सभा करने से कितना वोट मिलेगा? दरअसल, ये सब बीजेपी के खिलाफ अपने-अपने राज्य में लगे हुए हैं. प्रेस कांफ्रेंस में एक मंच पर आते हैं. उनको न तो एक दूसरे के राज्य में चुनाव लड़ना है और न ही उनकी ताकत है. हम तो सबके सामने लड़ कर जीत कर आये हैं.
वर्ष 2014 में इनके सामने लड़ कर जीत कर आये और 2019 में भी जीते. अब 2024 में भी जीत कर आयेंगे. ये साझा मंच दिखाई पड़ता है, पर है नहीं. न तो इनका कोई नेता तय है और न ही कोई नेता होना है. ये सारे अंतत: कांग्रेस के नेतृत्व में इकट्ठा होंगे. अब जनता को तय करना है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना है या फिर नरेंद्र मोदी को.
राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर हैं. क्या कांग्रेस ऐसे प्रयासों से अपने आप को पुनर्जीवित कर पायेगी? आप क्या मानते हैं ?
-देखिए, प्रयास हर पार्टी को करना चाहिए. मेरी पार्टी भी कर रही है, कांग्रेस भी कर रही है. तय जनता को करना है. यह भी ध्यान रखें कि प्रयास के पीछे एक बैकग्राउंड और एक प्रकार की जनस्वीकृति भी होनी चाहिए. अकेले प्रयास से कुछ नहीं होता. जनता तब आप पर भरोसा करती है, जब उसको आपके काम करने की क्षमता पर भरोसा हो और काम करने का आपका इतिहास हो.
भाजपा का नारा था कांग्रेस मुक्त भारत. इसका अभिप्राय क्या है? क्या विपक्ष से मुक्त होना चाहिए भारत ?
-देखिए , हमने विपक्ष मुक्त भारत कभी नहीं कहा है. और दूसरी बात यह कि मेरी पार्टी यह तय नहीं कर सकती कि विपक्ष मजबूत रहेगा या नहीं. लोकतंत्र में अंतत: यह जनता को तय करना है कि किसको कितनी सीटें देगी. लोकसभा में उनका तो विपक्ष का स्टेटस भी नहीं रहा, तो हम क्या करें. एक-आध सीटें उधार तो नहीं दे सकते हैं ना.
गुजरात में चुनाव होने वाले हैं. इधर, आम आदमी पार्टी की गतिविधियां बढ़ी हैं. आरोप-प्रत्यारोप बढ़ा है, आप इसे कैसे लेते हैं ?
पिछले चुनाव में भी आरोप लगा रहे थे, इस चुनाव में भी लगा रहे हैं. हम पिछले चुनाव में भी जीते थे, इस चुनाव में भी दो तिहाई बहुमत से जीतेंगे. गुजरात भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है और परिणाम निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में प्रचंड बहुमत से आनेवाला है.
बिहार-झारखंड में नक्सलियों पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है?
-बिहार व झारखंड में नक्सल गतिविधियां आनेवाले तीन साल में पूरी तरह समाप्त हो जायेंगी. जब से नक्सलवाद शुरू हुआ, तब से पहली बार झारखंड के बूढ़ा पहाड़ से नक्सलियों का वर्चस्व खत्म कर दिया गया है. डीजी सीआरपीएफ भी वहां गये थे. वहां पर स्थाई कैंप लगा है. पहली बार वहां पर पूरी तरह से सीआरपीएफ का कब्जा है. छकरबांधा व पास के जंगल में पहली बार सीआरपीएफ का स्थाई कैंप लगा है. कई नक्सली मारे गये हैं, सरेंडर किये हैं. नक्सलवाद के मामले में वर्ष 2014 की तुलना में सभी आंकड़ों में लगभग 50 प्रतिशत की कमी है. कांग्रेस और बीजेपी के शासनकाल की तुलना करें, तो घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी आयी है.
जम्मू-कश्मीर में सिनेमा हॉल खुल गये हैं. क्या यह सामान्य होती स्थिति का संकेत है ?
केवल सिनेमा हॉल ही नहीं खुले हैं, बल्कि आइआइएम बन रहे हैं, आइआइटी बन रहा है, एम्स बन रहे हैं, देशभर के बच्चे वहां पढ़ने जा रहे हैं. आजादी के बाद सबसे ज्यादा टूरिस्ट पिछले तीन साल में वहां आये हैं. अनुच्छेद 370 हटाने के बाद सबसे कम आतंकवाद की घटनाएं हुईं. सब कहते थे कि 370 हटने के बाद खून की नदियां बहने लगेंगी, पर कंकड़ तक नहीं चला. अब सब कुछ कंट्रोल में है. वहां पूरी तरह जनता के लिए काम हुआ है.
दो संविधान, दो झंडे व पठानकोट से नाका परमिट समाप्त हो गयी. कई काम हुए. मारे गये आतंकवादियों के महिमा मंडन का काम खत्म हो गया. विस्थापितों को नागरिकता मिल गयी है. तहसील व जिला पंचायत के चुनाव हो चुके हैं. लोगों का विश्वास बढ़ा है. मंदिरों को प्रोटेक्शन है. वहां पर वर्ष 2019 तक केवल 12 हजार करोड़ का निवेश हुआ था, इसके खिलाफ वर्ष 2019 से 2022 तक 32 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट आया है. कहां 70 साल में 12 हजार करोड़ और कहां तीन साल में 32 हजार करोड़. यही बताता है कि लोगों का विश्वास बढ़ा है.
यह देखा गया है कि बिहार का जो विकास होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. यहां 17 साल से नीतीश जी की सरकार है, तो उसमें 13 साल बीजेपी भी सहयोगी रही.
देखिए, हमारे संविधान ने शासन का सारा अधिकार राज्यों में सीएम और केंद्र में पीएम को दिया है. यही दोनों केंद्र व राज्य में अधिकार का खुद इस्तेमाल करते हैं और उसको अपने मंत्रियों को देते हैं. इसका मतलब है कि राज्य में कोई भी सरकार हो, उसकी आत्मा व सर्वाधिकार मुख्यमंत्रियों के पास होता है. बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश बाबू थे और हैं, उनको सभी जानते हैं. उनके साथ जब भी भाजपा सरकार में रही, कभी भी स्वतंत्र रूप से अपने सिद्धांत पर सरकार नहीं चला पायी, न ही काम कर पायी.
इसलिए भारतीय जनता पार्टी का आकलन बिहार के विकास के आधार पर नहीं किया जा सकता है. गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, यहां तक कि झारखंड, जो बिहार का ही एक हिस्सा रहा है, जब-जब वहां भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, हमने जो प्रदर्शन किया है, उसके आधार पर भाजपा का आकलन बिहार की जनता को करना चाहिए. इन राज्यों में विकास के हर काम हुए. जहां तक बिहार की बात है, तो भाजपा ने विधानसभा चुनाव में एक लाख 25 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी.
हम तो चुनाव हार गये, फिर भी एक लाख 53 हजार करोड़ के काम मोदी जी ने चुनाव के बाद कराये. मुझे लालू व नीतीश जी दोनों समझा दें कि किस पीएम के कार्यकाल में बिहार को इतना पैसा मिला, जिससे काम हुआ. मैं भरोसा देना चाहता हूं बिहार की जनता को कि 2024 के लोकसभा चुनाव व 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आप मोदी जी पर भरोसा करें, भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास करें देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी कानून-व्यवस्था मजबूत होगी, सीमांत क्षेत्र के सारे मसले हल होंगे. साथ-साथ विकास के मामले में भी बिहार एक नंबर पर पहुंचेगा.
नशे के धंधे के खिलाफ भी काफी सफलता मिली है?
-नशा मुक्त भारत की ओर हम तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं. हम मानते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी नशा बड़ी चुनौती है. इसको लेकर प्रखंड स्तर तक काम करने के लिए एक बड़ी व्यवस्था एनकॉर्ड (NCORD) बनाने का काम किया गया है. इसमें नशे के खिलाफ काम करनेवाले सारे तंत्र समाहित हैं. इसके माध्यम से प्रखंड स्तर तक काम किया जा रहा है. इससे काफी सफलता मिली है. नशे के खिलाफ मोदी जी के नेतृत्व में बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई है.
सीमांचल का इलाका घुसपैठ से परेशान है?
घुसपैठ सीमा से नहीं, मुर्शिदाबाद और मालदा से है. इन इलाकों में मतदाता सूची में गड़बड़ी, गलत आधार कार्ड बनने व ट्राइबल की जमीन पर कब्जे की शिकायतें हैं. हमारी सीमा चुस्त है. सीमांत क्षेत्र के लोगों को नीतीश-लालू गठबंधन के लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. हर भारतीय की सुरक्षा हमारा कर्तव्य है.
विपक्ष अक्सर आरोप लगाता रहा है सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने का. इसे कैसे देखते हैं आप?
आरोप तथ्य के आधार पर होने चाहिए. पूर्णिया में मेरी 23 सितंबर को सभा थी. उन लोगों का आरोप था कि हम हिंदू-मुसलमान करेंगे, झगड़ा लगायेंगे, पर मेरे पूरे भाषण में न हिंदू शब्द था न मुसलमान शब्द, फिर भी वे अब भी यही बोल रहे हैं, तो उनके इस झूठ के लिए मेरे पास तो कोई जवाब नहीं है. मैंने तो विकास, कानून-व्यवस्था और राजनीति के अंदर आदर्श की बात की. मैं मानता हूं कि मुझे यही करना चाहिए. सीमांत क्षेत्र के अपने सवाल हैं, जिनको मैंने उठाने का प्रयास किया है.