बोकारो जिले में चार कोल वाशरियां हैं, जिनसे निकलने वाले केमिकल युक्त पानी ने इलाके की कृषि योग्य भूमि और प्रमुख जल स्रोत दामोदर नदी के पानी को प्रदूषित करने का काम किया है. हालांकि जनांदोलन के प्रभाव से कोल कंपनियों ने अपने रवैये में परिवर्तन किया है, बावजूद इसके स्थिति में बहुत बदलाव हुआ हो, ऐसा प्रतीत तो नहीं होता है.
बोकारो के चार कोल वाशरी करगली वाशरी, कथारा वाशरी, स्वांग वाशरी और दुग्दा वाशरी में से करगली और स्वांग वाशरी फिलहाल बंद है. लेकिन जब ये चारों वाशरी चालू स्थिति में थे, तो यहां कोयले को धोने का काम होता था. सीसीएल की वेबसाइट के अनुसार कोयले की धुलाई मुख्य रूप से कोयले के विशिष्ट गुरुत्व और शेल, रेत और पत्थरों आदि जैसी अशुद्धियों के पृथक्करण की एक प्रक्रिया है ताकि इसके भौतिक गुणों को बदले बिना अपेक्षाकृत शुद्ध कोयला प्राप्त किया जा सके. इन अपशिष्ट पदार्थ को जितना अधिक कोयले से हटाया जा सकता है, इसकी कुल राख सामग्री उतनी ही कम होगी और इसका बाजार मूल्य उतना ही अधिक होगा साथ ही परिवहन लागत कम होगा. उत्पादित धुले हुए कोकिंग कोल को इस्पात क्षेत्र और बिजली संयंत्रों को भेजा जाता है.
कोयले की गुणवत्ता को बढ़ाने की इस प्रक्रिया में कृषि योग्य भूमि और आसपास की नदियों को भारी नुकसान होता है और झारखंड के सबसे प्रमुख नदियों में से एक दामोदर इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है. कभी अपने औषधीय गुणों के लिए जाने पहचाने जाने वाले दामोदर का पानी आज जहरीला हो चुका है. इस पानी को बिना प्यूरिफाई किये इंसान क्या जानवर भी पी ले तो उसे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
बोकारो के विस्थापित नेता काशीनाथ केवट का कहना है कि बेरमो कोयलांचल स्थित कोल वाशरीज से निकलने वाला केमिकलयुक्त जहरीला पानी पहले सीधे दामोदर नदी में बहाया जाता था. चंद्रपुरा थर्मल पावर प्लांट एवं बोकारो पावर प्लांट से भी केमिकलयुक्त पानी दामोदर में छोड़ा जाता था, जिसकी वजह से नदी का पानी और इलाके की कृषि योग्य भूमि बुरी तरह प्रभावित हुई. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में हुए जनांदोलन की वजह से कोल कंपनियों ने अपने रुख में बदलाव किया और सीधे नदी में केमिकलयुक्त पानी छोड़ना कम किया है. हालांकि यह पूरी तरह बंद कर दिया गया है ऐसा कहना भी सौ फीसदी सत्य नहीं होगा.
काशीनाथ केवट कहते हैं कि अब कथारा वाशरी से निकलने वाले दूषित पानी को ऐश पौंड में जमा किया जाता है. यहां इसे स्लरी के रूप में जमा किया जाता है और फिर उसे बेचा जाता है. लेकिन जिले में कई बार ऐश पौंड के तटबंध के टूटने की घटना हो चुकी है जिससे इलाके के कई गांव जलमग्न हो चुके हैं. जब ऐश पौंड का पानी पूरे इलाके में फैलता है तो उसके साथ ही फैलता है झाई युक्त प्रदूषण जल और उससे होने वाली कई बीमारियां.
दामोदर बचाओ आंदोलन के जिला सहसंयोजक श्रवण सिंह का कहना है कि हमने झारखंड के पूर्व मंत्री सरयू राय के नेतृत्व में वर्षों से कई लड़ाइयां लड़ीं, जिसका परिणाम यह है कि आज हम दामोदर नदी को औद्योगिक प्रदूषण से 90 प्रतिशत तक मुक्त करा सके हैं. हमने 2004 में जनांदोलन शुरू किया और बीसीसीएल, सीसीएल और डीवीसी के खिलाफ आंदोलन चलाया गया, ताकि वे दामोदर नदी में सीधे केमिकलयुक्त पानी ना छोड़ें. नदी को बचाने के लिए इसके उद्गम स्थल से लेकर बंगाल तक गंगा दशहरा के दिन गंगा आरती की तर्ज पर नद की आरती की जाती है. हमारे प्रयासों से कोल कंपनियों ने ऐश पौंड का निर्माण करवाया, जिससे नदी को सीधे नुकसान नहीं हो रहा है. अन्यथा कुछ साल पहले नदी का पानी काला हो चुका था.
हालांकि ऐश पौंड के निर्माण से उसके आसपास रहने वालों को खतरा तो है. कोल कंपनियां कोयले की ढुलाई आदि में मानकों का सही से पालन नहीं करती हैं, जिसकी वजह से इलाके में रहने वाले लोगों को फेफड़े और त्वचा संबंधित रोग हो रहे हैं. क्लाइमेंट चेंज का असर अभी से झारखंड सहित देश के हर इलाके में दिख रहा है. बारिश के मौसम में सुखाड़ की स्थिति और उसके बाद तेज बारिश. मौसम में अचानक बदलाव जैसी समस्याओं से हम रोज रूबरू हो रहे हैं. बावजूद इसके धरती के बढ़ते तापमान को लेकर हम चिंतित नहीं हैं.
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