कानपुर. अदालतों में गवाहों को मेहमान का दर्जा दिया जाता है. कहा जाता है कि अतिथि देवो भवः, आपको शायद ही पता होगा कि गवाहों को बयान दर्ज कराने के लिए किराया और जलपान भत्ता दिए जाने का नियम है. लेकिन, यह भत्ता ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है. 47 साल पहले बना भत्ता अधिनियम 4 रुपये तय हुआ था. जो अब तक संशोधित नहीं हुआ है. यही वजह है कि कोई गवाह भत्ता के लिए आवेदन तक नहीं करता है.
कचहरी में हर दिन सैकड़ों लोग गवाह बनकर या जिरह के लिए अदालतों में पेश होते हैं. लेकिन शायद ही किसी गवाह को यात्रा और जलपान भत्ता मिलने के बारे में जानकारी होगी. जिन्हें जानकारी भी है वह भी भत्ता लेने में रुचि नहीं दिखाते हैं. इसके पीछे वजह यह है कि इस भत्ता के लिए 1 रुपये के कागज में प्रार्थना पत्र के किए खर्च भरना होगा. अगर भत्ता स्वीकृत हो जाता है तो उनको न्यूनतम 2 और अधिकतम 4 रुपये भत्ता मिलेगा.
उत्तर प्रदेश परिवादी एवं साक्षी दंड न्यायालय के व्यय की भुगतान नियमावली 1976 से गवाहों को यात्रा व आहार भत्ता दिए जाने का नियम है. इसमें गवाहों को दो श्रेणियों में बांटा गया है. पहली उच्च श्रेणी और दूसरी सामान्य श्रेणी. उच्च श्रेणी को प्रथम श्रेणी का यात्रा किराया दिया जाता है. जो न्यूनतम 2 और अधिकतम 4 रुपए तक है. सामान श्रेणी के गवाहों को 2 रुपए ही दिए जाने का नियम है. यह नियमावली वर्ष 1976 में लागू हुई थी. इसलिए यात्रा की दरें भी उसी समय की हैं.
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पुलिस जांच कर मुकदमे में चार्जशीट लगाती है, इसलिए उनको गवाही के लिए अदालत आना पड़ता है. इसके अलावा डॉक्टर समेत अन्य कर्मचारियों की भी गवाही होती है. उनको भी भत्ता देने का नियम था. लेकिन अभी इसे बंद कर दिया गया है. अब उनको गवाही का सर्टिफिकेट मिलता है. जिसके जरिए वह अपने विभाग से भत्ता ले सकते हैं. हालांकि यह सर्टिफिकेट भी कोई नहीं लेता है. वहीं गवाही के लिए मिलने वाले भत्ते की जानकारी को लेकर पूर्व शासकीय अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा का कहना है कि गवाहों को भत्ता देने का नियम है. मैंने जब प्रैक्टिस शुरू की थी तब कुछ लोगों को भत्ता दिलवाया भी था. लेकिन, अब इसमें कोई रुचि नहीं लेता है.इसकी राशि को बढ़ाया जाना चाहिए.