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Dussehra 2023: कानपुर में दशहरा पर हुई रावण की पूजा, साल में एक बार खुलते हैं दशानन मंदिर के पट, जानें मान्यता

मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका निर्माण 155 वर्ष या इससे पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. इस मंदिर के निर्माण के पीछे अनेक धार्मिक तर्क भी हैं. कहा जाता है कि रावण विद्वान था. भगवान शिव का परम भक्त था. रावण भगवान शिव को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की आराधना करता था.

Kanpur News: विजयादशमी पर हर जगह लंकेश यानी रावण के पुतले का दहन होता है. लेकिन, यूपी के कानपुर में एक मंदिर में 155 साल से दशहरा के दिन रावण की पूजा की जाती है. इस मंदिर के पट पट केवल दशहरा के दिन खोले जाते हैं. शहर के शिवाला स्थित इस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है और सुबह से शाम तक साधक यहां रावण दर्शन के लिए आते रहते हैं. मन्नतें मानने के लिए यहां सरसों के तेल के दीये जलाते हैं. शिवाला परिसर में उत्तर भारत का इकलौता मंदिर है, जिसे दशानन मंदिर के नाम से जाता है. इसे केवल दशहरे के दिन ही खोला जाता है. रावण की पूजा के लिए हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. यह मंदिर 155 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है. अनेक विशेषताओं को अपने अंदर समाए इस मंदिर में दर्शन करने के लिए केवल कानपुर से ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों से लोग दशहरे के दिन दर्शन को आते है. विजयादशमी यानी दशहरा के दिन मंदिर के पट पूरे विधि विधान के साथ खोल दिए जाते हैं. पहले रावण की यहां स्थापित प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. पूजा और आरती की जाती है. इसके बाद मंदिर में आम लोगों को प्रवेश दिया जाता है. रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजने वाले भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं. तेल के दीये जलाकर मन्नतें मांगने के साथ लोग बल, बुद्धि और आरोग्य का यहां वरदान भी मांगते हैं.


गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था निर्माण

मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका निर्माण 155 वर्ष या इससे पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. इस मंदिर के निर्माण के पीछे अनेक धार्मिक तर्क भी हैं. कहा जाता है कि रावण विद्वान था. भगवान शिव का परम भक्त था. रावण भगवान शिव को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की आराधना करता था. मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा तब सफल होगी जब श्रद्धालु पहले रावण की पूजा करेंगे. कहते हैं कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था. यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की थी. यह मंदिर भी शारदीय नवरात्र में सप्तमी से नवमी तक खुलता है. पहले मां की आरती होती है और फिर रावण की. रावण की प्रतिमा यहीं कैलाश मंदिर के बराबर में स्थापित है.

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तरोई के फूलों का है यहां महत्व

रावण के दर्शन करने वाले यहां विशेषकर तरोई के फूल चढ़ाते हैं. दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगाजल आदि से अभिषेक भी किया जाता है. सुहागिनें तरोई का पुष्प अर्पित कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. तरोई के फूल शक्ति साधना में प्रयोग किए जाते हैं.

शाम को बंद कर दिए जाते हैं कपाट

वर्तमान में छिन्नमस्तिका मंदिर को सार्वजनिक दर्शन के लिए बंद कर दिया गया है. इसके बराबर में बना दशानन का मंदिर दशहरे पर सुबह दर्शन के लिए खोला जाता है और शाम को बंद कर दिया जाता है.

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