Atal Bihari Vajpayee Poem: भारत के सबसे सम्मानित राजनेताओं और कवियों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने न केवल अपने राजनीतिक नेतृत्व के माध्यम से बल्कि अपनी गहन कविता के माध्यम से भी राष्ट्र पर एक अमिट छाप छोड़ी.
उनकी कई रचनाओं में से, कविता “हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, गीत नया गाता हूं” दृढ़ संकल्प, लचीलापन और आशा की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति के रूप में सामने आती है यह कविता कभी हार न मानने के सार को समेटे हुए है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हों, और पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है.
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता (Atal Bihari Vajpayee Poem) “हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, गीत नया गाता हूं” उन लोगों के साथ गहराई से जुड़ती है जो दृढ़ता की शक्ति में विश्वास करते हैं. ये पंक्तियां विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ता का संदेश देती हैं. इन शब्दों के माध्यम से, वाजपेयी सभी को सकारात्मक सोच के साथ नई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
ये है अटल बिहारी वाजपेयी की कालजयी रचना, आशा की लहर दौड़ जाती हैं इसे पढ़कर
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं.
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर
व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.
आज भी, मुश्किलों के क्षणों में, यह कविता आशा की किरण के रूप में काम करती है, जो हमें मजबूती से खड़े होने, संघर्ष करने और नए जोश के साथ अपनी यात्रा जारी रखने का आग्रह करती है. वाजपेयी के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि बाधाएं अस्थायी होती हैं और दृढ़ संकल्प के साथ हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं. “हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा” केवल एक कविता नहीं है; यह जीवन के लिए एक कालातीत मंत्र है.