किसी भी ऑफिस में अनुशासन बहुत जरूरी है लेकिन बॉस बने लेकिन ना बनें तानाशाह: मैं बॉस हूं जो बोल रहा हूं वो करना होगा, ऐसी बातें तानाशाहीपूर्ण रवैया दिखा सकती हैं ऐसा बयान नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कर्मचारी काम के प्रति प्रेरित नहीं होते बल्कि रिलेशनशिप ऐसा हो कि आप अपने कर्मी को प्रेरणा देकर प्रेरित कर सकते हैं.
एक अच्छा नेता कभी नहीं कहेगा,कि इसे आप स्वयं ही समझ लें बल्कि वह उन्हें समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करेगा.
आपकी शिकायतें मैं नहीं सुनना चाहता ऐसे बयान कर्मचारियों की समस्याओं को नजरअंदाज करने की भावना दिखा सकता है, इससे बेहतर है कि आप सकारात्मक रूप से फीडबैक स्वीकार करें.
मैं तो छुट्टी पर भी काम पर था आप कहां थे ऐसे बयान चौबीसों घंटें ड्यूटी पर रहने का परोक्ष दबाव बनाते हैं यह आपके कर्मियों के भीतर असंतोष की भावना पैदा कर सकता है. सातों दिन काम करना कर्मचारियों की वफादारी साबित नहीं करती है. बल्कि अवकाश से उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ती है.
लागत में कटौती करने वाला बयान: कर्मचारियों में असंतोष बढ़ा सकता है, इसके बजाय उन्हें समस्याओं का सामना करने के लिए समर्थन प्रदान करें.
बिल्कुल बेकार हैं आप, ऐसा कहने की जगह कर्मचारियों से अगर वांछित फल नहीं मिल रहा तो उनके प्रयासों और बाधाओं को समझे. सराहना करें और सुधार के लिए प्रेरित करें.
‘इट्स योर प्रॉब्लम्स‘ जैसा बयान आपके कर्मियों में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है इसके बजाय अगर आप चाहते हैं कि वे बेस्ट परफॉर्म करें तो संकट में उन्हें किनारे फेंकने की जगह सहानुभूति और समर्थन प्रदान करें ताकि वे फिर से अपना काम दिखा सकें.
‘ऐसे ही चलता है ऐसे ही करना होगा’ ऐसा कहने की जगह कर्मियों से बॉस उनसे सुधार के लिए सुझाव पूछें और सहयोग करें. और सबसे बड़ी बात है कि अपने कर्मचारियों और कौशल पर भरोसा रखें.
‘किस्मतवाले है कि ये नौकरी मिली’, ऐसा कहना सही नहीं होता.क्योंकि कोई भी संस्थान अपने मापदंडों के आधार पर कौशल और ज्ञान को परखते हुए कर्मी का चयन करता है.इसलिए उनके कौशल और योगदान की सराहना करें और उन्हें आत्म-मोटिवेट करें.
अर्जित छुट्टी लेने पर भी सवाल खड़े करना :काम के दौरान ब्रेक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है. लेकिन ऐसे बयानों से अपने अर्जित समय से छुट्टी लेने वाले आपके कर्मचारी खुद को दोषी महसूस कर सकते हैं जबकि काम और जीवन में संतुलन के लिए कभी- कभी छुट्टी की आवश्यकता हर किसी को पड़ती है.
इन सबके साथ कर्मचारियों का भी नैतिक दायित्व बनता है कि वे पूरी इमानदारी से काम करें . नेतृत्वकर्ता, जिसपर टीम के काम की जिम्मेदारी है उनके साथ टीम भावना के साथ कदम से कदम मिलाकर लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अपना 100 प्रतिशत योगदान दें. तभी दोतरफा संवाद कार्य का एक बेहतर महौल बनाता है.
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