II मुखतार खान II ( जनवादी लेखक संघ, महाराष्ट्र)
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम बड़े आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है. हर साल 19 फरवरी को पूरे राज्य में शिवाजी जयंती बड़े धूम-धाम के साथ मनाई जाती है. 6 जून 1674 को शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक दिन भी मनाया जाता है. आज से लग भाग साढ़े तीन सौ वर्ष पहले शिवाजी महाराज ने रायगढ़ किले में हजारों लोगों की उपस्थिति में राज्याभिषेक का अनुष्ठान पूरा किया था.
छत्रपति शिवाजी महाराज ने समता, बंधुता और न्याय की स्थापना की
इतिहास में अनेक राजा महाराजा हुए हैं. ऐसे राजा जिन्होंने जनता की भलाई के काम किए, लोग उन्हें आज भी याद रखते हैं. छत्रपति शिवाजी महाराज भी ऐसे ही एक महान राजा हुए. जिन्होंने समता ,बंधुता न्याय के मूल्यों पर आधारित स्वराज की स्थापना की थी. अपने शासन काल में बिना किसी भेद भाव के उन्होंने जनकल्याण के कार्य किए. इसीलिए इतने वर्ष गुजर जाने के बाद भी लोग उन्हें याद करते हैं.
शिवाजी महाराज क्या केवल हिंदुओं के ही राजा थे?
अपने राजनीतिक स्वार्थ को लेकर शिवाजी महाराज को एक हिंदू शासक के रूप में किया जाता रहा है. क्या शिवाजी महाराज जैसे विशाल व्यक्तित्व को केवल हिन्दू धर्म की फ्रेम से देखा जाना न्यायोचित होगा? शिवाजी महाराज के विशाल व्यक्तित्व को केवल धर्म रक्षक के रूप में प्रस्तुत करना अपने ही महापुरुषों के कद को घटाने जैसा ही है. शिवाजी महाराज का जीवन हमें बताता है कि उन्होंने अपने शासन काल में एक उच्च आदर्श प्रस्तुत किया.
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शिवाजी महाराज सभी धर्मों का सच्चे मन से करते थे आदर
वे संतों, पीर औलिया के साथ साथ सभी धर्मों का सच्चे मन से आदर किया करते थे. इसी लिए जब उन्होंने स्वराज की स्थापना की स्थानीय मराठों के साथ साथ बड़ी संख्या में महाराष्ट्र के मुसलमानों ने भी उनका साथ दिया. उस जमाने में जो मराठे शिवाजी महाराज की सेना में रहे उन्हें शिवजी के मावले कहा जाता है. इन मावले में यहां के हजारों मुस्लमान भी शामिल रहे. इसीलिये आज भी कोल्हापुर, सतारा के मुसलमान बड़ी धूम धाम के साथ शिवाजी जयंती के जुलूस में हिस्सा लेते हैं. शिवाजी महाराज के शासन काल में जनकल्याण, न्याय, आपसी भाई चारे को विशेष प्राथमिकता दी जाती रही. इसीलिये वे आज तक लोगों के दिलों पर छाए हुए हैं.
शिवाजी महाराज का परिवार सूफी संतों का करते थे आदर
शिवाजी महाराज का परिवार सूफी संतों का बड़ा आदर किया करता था. उनके दादा ने मुस्लिम पीर बाबा शाह शरीफ के नाम पर ही अपने दोनों बेटों के नाम शाह जी और शरीफ जी रखा था. शिवाजी महाराज स्वयं भी सूफी संत बाबा याकुत का बड़ा आदर किया करते थे. वे जब कभी किसी भी महाज पर जाते पहले बाबा से दुवाओं की दरख्वास्त करते. अपने दौर में उन्होंने बहुत सी खानकाओं के लिए चिरागी की व्यवस्था भी की थी.
शिवाजी के शासन काल में महिलाओं को दिया जाता था विशेष सम्मान
शिवाजी के शासन काल में महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता था. युद्ध के समय भी स्त्री अस्मिता की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाता था. कल्याण के सूबेदार की पराजय के बाद उस की सुंदर बहु को जब शिवाजी महाराज के सामने पेश किया गया. अपने सरदार के इस कृत्य पर वे बड़े शर्मिंदा हुए. उस मुस्लिम महिला से उन्होंने क्षमा मांगी उसे अपनी मां समान बताया. साथ ही महिला को पूरे राजकीय मान सम्मान के साथ अपने वतन लौट जाने की व्यवस्था भी करवाई.
शिवाजी महाराज का अपने मुस्लिम सैनिकों पर था अटूट विश्वास
शिवाजी महाराज का अपने मुस्लिम सैनिकों पर अटूट विश्वास था. शिवाजी महाराज की विशाल सेना में 60 हजार से अधिक मुस्लिम सैनिक थे. उन्होंने ने एक सशक्त समुद्री बेड़े की भी स्थापना की थी, इस समुद्री फौज की पूरी कमान मुसलमान सैनिकों के हाथों में ही थी. यहां तक कि समुद्री किलों की बाग डोर दरिया सारंग, दौलत खान, इब्राहीम खान सिद्दी मिस्त्री जैसे अनुभवी मुस्लिम सूबेदारों के हाथों में सौंपी गई थीं. शिवाजी महाराज की उदारता और कार्यशैली देख कर अनेक मुस्लिम सिपहसालार जिन में रुस्तमोजमान, हुसैन खान, कासम खान जैसे सरदार बीजापुर की रियासत छोड़कर सात सौ पाठानो के साथ शिवाजी महाराज से आ मिले थे. सिद्दी हिलाल तो शिवाजी महाराज के सबसे करीबी सरदारों में से एक था. सिद्दी हिलाल ने शिवाजी के साथ कई मोर्चों पर अपनी बहादुरी के जलवे दिखाए.
शिवाजी महाराज की सेना में तोप चलाने वाले अधिकतर मुस्लिम सैनिक थे
शिवाजी महाराज की सेना में तोप चलाने वाले अधिकतर मुस्लिम सैनिक ही हुआ करते थे. इब्राहिम खान प्रमुख तोपची थे. वहीं शमाखान, इब्राहीम खान घुड़सवार दस्ते के प्रमुख सरदार हुआ करते थे. शिवाजी के खास अंगरक्षको में से एक सिद्दी इब्राहीम थे. अफजल खान से हुई मुठभेड़ में सिद्दी इब्राहीम ने अपनी जान पर खेलकर शिवाजी महाराज की रक्षा की थी. आगे चलकर शिवाजी महाराज ने इन्हें फोंडा किले का प्रमुख नियुक्त किया था. सारे तथ्य इस बात की गवाही देते हैं कि महाराज और उनके मुस्लिम सहयोगियों का आपस में कितना गहरा रिश्ता रहा होगा. शिवाजी महाराज जब आगरे के किले में नजरबंद थे तब कैद से फरार होने में मदारी मेहतर नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने सब से अहम भूमिका निभाई थी. वह अपनी जान की परवाह किए बगैर शिवाजी महाराज का रूप धारण किये बेखौफ दुश्मनों के बीच बैठा रहा. शिवाजी महाराज ने अपने सहयोगियों का दिल जीता था वे अपने राजा के लिये जान लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहते.
शिवाजी महाराज ने काजी हैदर को नियुक्त किया था अपना वकील
काजी हैदर फारसी भाषा के विद्वान थे. शिवाजी महाराज ने इन्हें अपना वकील नियुक्त किया था. प्रशासन के पत्र व्यवहार और समझौतों गुप्त योजनाओं में इनकी प्रमुख भूमिका हुआ करती. एक बार काजी हैदर को लेकर किसी हिंदू सरदार ने संशय जताते हुए महराज को चौकन्ना रहने की सलाह दी. इस पर शिवाजी महाराज ने तुरंत कहा उनसे कहा, किसी की जात देख कर ईमानदारी को परखा नहीं जाता यह तो उस व्यक्ति के कर्म पर निर्भर होता है. शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो चुकी थी. रायगढ़ के आस पास नई इमारतों का निर्माण हो रहा था, साथ ही नए मन्दिरों का भी निर्माण हो रहा था, एक दिन महाराज जब निर्माण कार्य का जायजा लेने रायगढ पहुंचे. महल में लौट कर उन्होंने अपने सरदारों से पूछा नगर में आपने आलिशान मंदिर तो बनाए लेकिन मेरी अपनी मुस्लिम प्रजा के लिए मस्जिद कहां है? जाहिर है इस ओर किसी का लक्ष्य ही नहीं गया था तुरंत ही राजा के आदेश पर ठीक महल के सामने ही एक मस्जिद बनाई गयी. आज भी किले के पास इस के अवशेष मौजूद हैं.