Marriage is necessary at right age: जिंदगी में ‘करियर फर्स्ट’ को लेकर युवाओं में देरी से शादी करने का चलन दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. इसके चलते कई महिलाएं युवावस्था में फैमिली प्लानिंग की ओर कदम न बढ़ा कर एग फ्रीज कराने और सरोगेसी अथवा आइवीएफ के जरिये मां बनने को प्राथमिकता देने लगी हैं. माना कि वैज्ञानिक उपलब्धियों की वजह से हम पूर्व में असंभव-सी दिखनेवाली कई चिकित्सकीय समस्याओं को वर्तमान में निदान ढूंढ पाने में सक्षम हो चुके हैं, मगर हम यह भूलते जा रहे हैं कि ऐसी तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियां हमारी समस्याओं के निराकरण के लिए हैं, न कि हमारी महत्वाकांक्षाओं या सुविधाओं का माध्यम हैं. मात्र अपनी सुविधा और महत्वाकांक्षा के लिए शादी में देरी करने से बढ़ती उम्र के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बदलावों के परिणामस्वरूप कई शादीशुदा जोड़े वर्तमान में इंफर्टिलिटी का शिकार होकर संतान-सुख से महरूम हो रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बड़ी उम्र में होनेवाले इंफर्टिलिटी के मामलों में महिला-पुरुष समान रूप से भागीदार होते हैं, क्योंकि उम्र बढ़ने से दोनों की ही प्रजनन क्षमता पर काफी असर पड़ता है. इसे देखते हुए पिछले दिनों भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने भी महिलाओं के लिए यह गाइडलाइन जारी की थी कि उन्हें समय पर शादी और 28 साल से पहले अपना परिवार पूरी कर लेनी चाहिए, अन्यथा कई तरह की समस्याओं के होने की आशंका रहती है. बेशक गंभीर बीमारियों के चलते महिलाओं का अपने एग फ्रीज कराना लाजिमी है, लेकिन अपने करियर या आधुनिक जीवनशैली के प्रभाववश समय पर गर्भ धारण न करके एग फ्रीज कराना सरासर गलत है.
वर्तमान में महिलाएं आमतौर पर 30+ तथा पुरुष 35+ की उम्र में शादी कर रहे हैं. देर से शादी करने पर स्त्री-पुरुष दोनों के शारीरिक स्वास्थ्य खासकर फर्टिलिटी पर असर पड़ता है. उनके स्पर्म और एग्स की क्वालिटी और क्वांटिटी प्रभावित होनी शुरू हो जाती है. इसके चलते गर्भधारण करने में परेशानी होने के साथ ही गर्भावस्था में कई तरह की जटिलताएं आती हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज, हाइपरटेंशन, कार्डियोवस्कुलर डिजीज होने का खतरा रहता है. लेट कंसीविंग वाले कई बच्चों में क्रोमोजोनल एब्नॉर्मिलिटी के मामले भी देखने को मिले हैं. इसलिए जरूरी है कि पुरुष हो या महिला, उन्हें सही उम्र में शादी और बच्चा (महिलाओं को 25 वर्ष तक और पुरुषों को 30 वर्ष तक) कर लेना चाहिए. पढ़ाई और करियर की दौड़ में जिंदगी के महत्वपूर्ण पहलू की उपेक्षा करना कहीं से भी सही और उपयुक्त नहीं है.
मेडिकल साइंस की मानें, तो महिलाओं के गर्भधारण की सबसे अनुकूल अवधि 22-25 साल की उम्र के बीच की होती है. 25 की उम्र के बाद एग-काउंट कम होना शुरू हो जाता है. जन्म के समय नवजात महिला शिशु को अपनी मां से एक मिलियन एग्स मिलते हैं, जो प्यूबर्टी स्टेज (10-11 साल की उम्र) तक आते-आते प्राकृतिक रूप से आधे रह जाते हैं. हर महीने माहवारी के दौरान महिला की ओवरी से एक एग ओव्यूलेट होता है, लेकिन रक्तस्राव की प्रक्रिया में 300-400 एग्स खत्म होते जाते हैं. देर से शादी करने सहित अन्य कई कारणों मसलन- अव्यवस्थित या खराब जीवनशैली, गलत खानपान, आनुवांशिकता, वातावरणीय कारक आदि के चलते महिलाओं की ओवरी से ओव्यूलेट होने वाले एग्स की क्वांटिटी और क्वालिटी खराब हो जाती है. 35 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण करना बेहद मुश्किल हो जाता है.
दूसरी ओर, उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों का डीएनए स्पर्म काउंट भी विघटित होने लगता है. इसके अलावा अव्यवस्थित जीवनशैली, नशे की आदत, वातावरणीय प्रदूषण आदि भी पुरुषत्व को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट की मानें, तो करीब तीन दशक पहले तक पुरुषों का स्पर्म-काउंट 120 मिलियन/मिलीलिटर था, जो कि वर्तमान में घट कर लगभग 15 मिलियन/मिलीलीटर रह गया है और यह लगातार घटता ही जा रहा है. स्पर्म की संरचना में विकृति आने पर पुरुषों की फर्टिलिटी प्रभावित होती है और उन्हें पिता बनने के लिए स्पर्म डोनर की जरूरत पड़ती है. इसलिए समय पर शादी और परिवार पूरा कर लेना बहुत जरूरी है.
कई मामलों में 25+ की उम्र में शादी होने के बाद भी शादीशुदा जोड़े 4-5 वर्ष और परस्पर घर-परिवार से सामंजस्य बिठाने, नौकरी में स्थायित्व पाने या फिर घूमने-फिरने आदि में गुजार देते हैं. दरअसल, उन्हें पता नहीं होता कि परिवार नियोजन का उपयुक्त समय क्या है. इसके लिए वे न तो डॉक्टर को कंसल्ट करते हैं और न ही किसी मैरिज एक्सपर्ट को. बड़ी उम्र में बाहरी तौर पर फिट होने पर भी जरूरी नहीं उनकी प्रजनन क्षमता भी फिट हो. नतीजतन कई बार स्त्रियों को भुगतना पड़ता है. काफी कोशिशों के बावजूद भी महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पातीं. हार कर उन्हें इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट में या आइवीएफ कराने में अपनी एनर्जी व मोटी रकम चुकानी पड़ती है.
अमूमन हमउम्र लोगों की शादी होने पर उनके जीवन की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. वे अपनी घर-परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में अविवाहित मित्रों से उनकी दूरी हो जाती है. दूसरी ओर, सिंगल रह गये स्त्री-पुरुषों में एकाकीपन और असंतोष की भावना घर करने लगती है. देरी से शादी होने के बाद भी उन्हें इन भावनाओं से उबरने और एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाने में काफी समय लगता है. आपसी समझौता या सामंजस्य न बिठा पाने के कारण कई बार तलाक तक की नौबत भी आ जाती है.
उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति में कई तरह के शारीरिक-मानसिक बदलाव आने लगते हैं, जैसे कि चेहरे का नूर कम होना, त्वचा पर झुर्रियां आना, बालों का रंग बदलना या झड़ना. इस तरह के बदलाव अविवाहित लोगों में अक्सर हीन भावना का संचार करते हैं. वहीं अधिक उम्र में संतान होने से उसकी समुचित देखभाल में भी दिक्कत आती है. उनके बीच जेनरेशन गैप की समस्या आती है, जो माता-पिता को ‘आउटडेटेड’ फील करवाती है.
देर से शादी करने वाले स्त्री-पुरुष में आमतौर पर व्यावहारिक और विचारात्मक परिपक्वता आ जाती है. शादी को लेकर उनके दिलो-दिमाग में उधेड़बुन चलती रहती है कि वो शादी करें या न करें. वे भावी जीवनसाथी के साथ सामंजस्य बिठा पायेंगे या नहीं. शादी होने के बाद भी दोनो अपना ‘मी टाइम’ या ’पर्सनल स्पेस’ चाहते हैं. आपसी सामंजस्य बिठाने के चक्कर में कई बार फैमिली प्लानिंग को आगे बढ़ाते रहते हैं. कई बार प्रोफेशन में आगे बढ़ने की चाह में निजी जिंदगी पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते. इससे उनका आपसी रिश्ता नीरस और बोरिंग हो जाता है. जब आपसी मेल सही न हो, तो ऐसे में वे पारिवारिक-सामाजिक कार्यक्रमों, शादी-ब्याह आदि में जाने से कतराने लगते हैं. परिवार, दोस्त और रिश्तेदारों से कटने लगते हैं. दिलो-दिमाग पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है.
स्टोरी- रजनी अरोड़ा
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