Difficulty And Success: झारखंड बोर्ड का प्रकाशित रिजल्ट मीडिया की सुर्खियां थी. कारपेंटर का बेटा परीक्षा में टॉप किया है. सब्जी बेचने वाले की बेटी टॉपर बनी है. इसी तरह से बहुत सारे कम आय वाले परिवार के बच्चों के सफलता की कहानी सामने आयी. कुछ दिनों पहले यूपीएससी का भी रिजल्ट आया. यूपीएससी के बारे में हम सभी जानते हैं कि यह सबसे कठिन परीक्षाओं में एक मानी जाती है. रिजल्ट आने के बाद हर जगह ये चर्चा हुई कि गरीब घर के बच्चों ने परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन किया. बात सिर्फ इन परीक्षा या इस वर्ष की नहीं है. लगभग हर वर्ष जब भी किसी परीक्षा (शैक्षणिक या प्रतियोगी) का रिजल्ट आता है, कमोबेश इसी तरह की कहानी सामने आती है. जीवन के अन्य विद्याओं जैसे खेलकूद, कला, संगीत, नृत्य आदि में भी कमजोर आयवर्ग के बच्चे बेहतर करते नजर आते हैं. हाल के वर्षों में लड़कियों के भी शीर्ष में रहने की बात लगातार हो रही है. इसी तरह समाज के सबसे कमजोर तबके और हाशिए में बैठे लोगों के आगे आकर बेहतर करने की कहानी सुनने और पढ़ने को मिलती है.
इस वर्ष यूपीएससी के रिजल्ट आने के बाद मेरे जानने वाले एक प्रतिष्ठित वरीय पत्रकार ने एक पोस्ट सोशल मीडिया में शेयर किया. उनकी बेटी ने भी कुछ वर्षों पहले यूपीएससी क्लियर किया था. उन्होंने बहुत सटीक तरीके से अपना अनुभव साझा किया कि कैसे जब अपनी बेटी को लेकर ट्रेनिंग के लिए वो पहली बार मसूरी गए, तो उन्होंने पाया कि वहां ट्रेनिंग में आए अधिकतर युवा आर्थिक रूप से निम्न और मध्यम परिवार से थे. इसलिए उन्होंने लिखा कि उनके लिए निचले पायदान से आनेवाले बच्चों का बेहतर करना कोई बहुत बड़ी बात नहीं लगती है.
उन्होंने दुष्यंत का एक बेहतरीन शेर का भी उल्लेख किया.
‘चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पांवों की, सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुजरा!’
इसी तरह पटना के एक बड़े सिविल सर्विस (यूपीएससी और राज्यस्तरीय) की तैयारी कराने वाली कोचिंग संस्थान के मालिक से भी पिछले दिनों बात हो रही थी. उन्होंने अपना अनुभव मुझसे साझा करते हुए बताया कि उनके यहां जो भी बच्चे सफल होते हैं उनमें ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के ही होते हैं.
अगर इन बातों का सार निकालेंगे, तो बहुत आसानी से ये समझ में आता है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर, हाशिए में बैठे लोगों के बच्चों के सफलता की दर, संपन्न पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों से ज्यादा है. सफलता के बेहतर दर की जब हम विवेचना करते हैं, तो साफ नजर आता है कि जिसने मुफलिसी और अभाव में अपना जीवन गुजारा है, उनमें संघर्ष करने की नैसर्गिक क्षमता विकसित हो जाती है, जो निचले पायदान में हैं, उसमें आगे बढ़ने और अपने को साबित करने का संकल्प रहता है.
यही कठिन हालात और कुछ कर गुजरने का संकल्प, उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरीके से मजबूत बनाता है. उसके बरक्स जिन्हें बेहतर जिंदगी जीने का अवसर मिला है या जिसने जीवन में कठिनाइयों का सामना नहीं किया है. उसमें जूझने की क्षमता का विकास तुलनात्मक रूप से कम हो पाता है और निश्चित तौर पर जिसमें जूझने की क्षमता बेहतर होगी वो कठिन या विपरीत हालात में बेहतर करता हुआ नजर आएगा.
या हम यूं कहें कि अभाव एक तरफ अभिशाप है, तो फिर दूसरी तरफ सपनों को जीने और उसकी तरफ बढ़ने का जज्बा भी देता है.