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घरेलू हिंसा के बाद बेटियों को न दें ‘एडजस्ट करने’ की नसीहत

हम नारी सशक्तिकरण के चाहे जितने ढोल पीट लें, लेकिन सच यह है कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति में लगातार गिरावट ही आ रही है. पता नहीं क्यों हर बात में दबने के लिए महिलाओं को ही मजबूर किया जाता है.

शिखर चंद जैन

हम नारी सशक्तिकरण के चाहे जितने ढोल पीट लें, लेकिन सच यह है कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति में लगातार गिरावट ही आ रही है. पता नहीं क्यों हर बात में दबने के लिए महिलाओं को ही मजबूर किया जाता है. ऊपरी तस्वीर चाहे जितनी खूबसूरत नजर आती हो, लेकिन वास्तविकता काफी निराशाजनक है. हमारे आसपास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिख जायेंगे, जहां महिलाओं को घरेलू हिंसा और फिर उसे ‘एडजस्ट’करने की मजबूरी झेलनी पड़ती है.

मेघना का रो-रोकर बुरा हाल था. शकुंतला ने अपनी बेटी को इस हालत में देखा, तो वे भी घबरा गयीं. उन्होंने जरा कुरेदा तो पता चला कि मेघना का पति उसे आये दिन पीटता है. कल तो उसने हद कर दी. बाल पकड़ कर सिर दीवार से भिड़ा दिया. मेघना के सिर पर काफी चोट लगी थी. शाम को पापा घर आये. वे भी चिंतित हो गये, लेकिन उन्होंने जब बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए यह कहा, ‘बेटी, थोड़ा एडजस्ट करना सीखो…’तो मेघना का दिमाग सुन्न हो गया. उसे समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. पिटाई खाकर एडजस्ट कैसे करे और क्यों करे. मौजूदा समाज में ऐसी घटनाएं न तो दुर्लभ है और न ही अविश्वसनीय.

हिंसा के मामले में अमीर-गरीब सब बराबर

दूसरे मामलों में अमीर और गरीब में चाहे काफी अंतर रहता हो, पर महिलाओं की पिटाई के मामले में कोई पीछे नहीं. हाल के वर्षों में घरेलू हिंसा या नारी प्रताड़ना के कई ऐसे हाइ प्रोफाइल मामले सामने आये, जिन्हें देखकर लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली. आमतौर पर लोग यही मानते हैं कि पत्नियों को पीटने या सताने का अपराध गरीब, अनपढ़ पुरुष ज्यादा करते हैं. वे शराब पीकर बहक जाते हैं और गरीब महिलाएं अनपढ़ होने की वजह से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होतीं, इसलिए सब कुछ चुपचाप सहन करती रहती हैं. वास्तविकता यह है कि ये दोनों ही धारणाएं मिथ्या हैं. पढ़े-लिखे हाइ प्रोफाइल पुरुष भी अपनी पत्नियों को वैसे ही पीटते हैं, जैसे आपकी कामवाली बाई का पति उसे पीटता है. साथ ही हाइ प्रोफाइल महिलाएं भी किसी कांता बाई, लखिया या ढिमरिया की तरह तब तक सहन करती रहती है, जब तक मामला हद पार न कर जाये और कभी-कभी अपनी जान भी गंवा देती हैं. हाल ही में राखी सावंत ने अपने पति पर अप्राकृतिक सेक्स करने और पीटने का आरोप लगाया. थोड़ा पीछे जायें, तो टीवी अभिनेत्री श्वेता तिवारी ने भी अपने पति राजा चौधरी से इसीलिए तलाक लिया. विदेशों की स्थिति भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. कुकिंग क्वीन नाइजेला लॉसन के पति चार्ल्स साची ने भरी पब्लिक के बीच में रेस्तरां में उनकी कैसे पिटाई की, इसे पूरी दुनिया ने देखा.

सहन करने के लिए करते हैं मजबूर

प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन की पूर्व पत्नी डिंपी को उसके माता-पिता ने समाज की दुहाई देते हुए पति के साथ एडजस्ट करने को कहा, तो डिंपी ने अपमान का कड़वा घूंट पीकर भी सब कुछ भुलाना चाहा था, लेकिन बात बनी नहीं. राहुल की दूसरी पत्नी को भी उनसे यह शिकायत रही. माता-पिता या रिश्तेदार भी ज्यादातर मामलों में तरह के दबाव डालकर या समझाकर महिला को ही एडजस्ट करने की सलाह देते हैं. जब बेटी ऐसे पति से अलग रहने या तलाक लेने की जिद करती है, तो उसे कुछ ऐसे समझाता जाता है-‘बेटी, सब्र कर, धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा’, ‘शुरू-शुरू में ऐसा ही होता है, छोटे-मोटे झगड़े हैं, सुलझ जायेंगे’, ‘अरे बेटा, जो प्यार करेगा, वो डांटेगा भी.. बचपन में तेरे पापा तुझे नहीं मारते थे ये क्याॽ’, ‘उसने तुम्हें इतना सब कुछ दिया है, अगर गुस्से में हाथ उठ गया तो बात को खत्म कर बेटी…’, ‘लड़की की किस्मत में यही लिखा है…’, ‘अपने खानदान में आज तक कोई शादी नहीं टूटी, तू नाक कटवाएगी क्याॽ’

घुट-घुटकर जीने को मजबूर लड़कियां

अब ऐसे में लड़की आर्थिक रूप से अपने पैर पर खड़ी हो तो बात अलग है, वरना ज्यादातर मामलों में उसे घुट-घुटकर जीने को मजबूर होना पड़ता है. ज्यादातर मामलों में समाज में बदनामी, मायके वालों द्वारा ‘पराई हो चुकी’ लड़की को घर में रख कर उसका खर्च सहन करने की अनिच्छा, छोटी बहन की शादी में अड़चन आदि कारणों से माता-पिता जैसे-तैसे अपनी ‘फूल-सी’ बेटी को फिर से पिटने के लिए ससुराल भेज देते हैं, ऐसे कई मामलों का अंत या तो लड़की हत्या या फिर खुदकुशी के रूप में होता है.

महिलाओं पर हिंसा की खास वजहें

सवाल यह है कि आखिर महिलाओं पर अत्याचार होता क्यों है और महिलाएं इसे सहन क्यों करती हैंॽ शोधकर्ताओं की मानें, तो यह पुरुषों द्वारा शक्ति और अपने नियंत्रण का प्रतीक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घरेलू हिंसा पर किये गये अध्ययन से पता चलता है कि पुरुष की आज्ञा का पालन न करना, पुरुष से बहस करना या उसके सामने ‘जुबान चलाना’, वक्त पर खाना न परोस पाना, पति से उसकी कमाई या विवाहेत्तर संबंधों के बारे में पूछताछ करना, पति से पूछे बिना कहीं चले जाना, संबंध के लिए मना करना, पति द्वारा पत्नी पर ‘चरित्रहीन’ होने का शक करना आदि घरेलू हिंसा के कुछ बड़े कारण हैं. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हर बार नशा ही इसकी वजह नहीं होता. दरअसल, ऐसे अत्याचारी पुरुषों का पालन-पोषण ऐसे माहौल में हुआ होता है, जिन्होंने हर समस्या का समाधान हिंसा से होते देखा है. वे अपनी हताशा या कुंठा दूसरे पर नहीं निकाल पाते, तो अपनी पत्नी पर ही निकाल देते हैं.

सहें नहीं, ‘ना’ कहें

  • ध्यान रहे, खुद हिंसा सहन करके आप अपने बच्चों को भी गलत शिक्षा दे रही हैं. बेटा पीटना सीखेगा और बेटी पिटना.

  • अपनी सुरक्षा और हिंसा करने वाले की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए आप कानून की मदद ले सकती हैं.

  • किसी भी कीमत में पिटाई या हाथापाई सहन न करें. समुचित प्रतिवाद करें, शोर मचाएं और सख्ती से कह दें कि आप ऐसा व्यवहार सहन नहीं करेंगी. छिंटपुट कहासुनी और बातचीत के दौरान हल्की धक्का-मुक्की भले ही सामान्य बात हो, लेकिन पति द्वारा पीटना आपके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने जैसा है.

  • घरेलू हिंसा कानून के मुताबिक, मारना, गाली-गलौज या मारने की धमकी देना घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है.

  • अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के साथ अधिकारों के प्रति भी जागरूक रहें.

आंकड़ों के आइने में घरेलू हिंसा

  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट बताती है कि 15 वर्ष की किशोरावस्था से 49 वर्ष की अधेड़ अवस्था तक 70 महिलाएं कभी न कभी घरेलू हिंसा की शिकार हो जाती हैं.

  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, महिलाओं पर हिंसा की तीन प्रमुख श्रेणियां हैं-बलात्कार, दहेज हत्या और उत्पीड़न. हर तीन मिनट में किसी महिला को सताया जाता है. हर 29 मिनट में दुष्कर्म होता है और 77 मिनट में दहेज हत्या होती है.

  • ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं करायी जाती है. समाज में बदनामी का डर दिखाकर या परिवार के बुजुर्गों द्वारा समझाइश करके मामले दबा दिये जाते हैं.

  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में पता चला कि करीब 40 फीसदी महिलाएं अपने पति से प्रायः पिट जाती हैं. 8 फीसदी विवाहिताएं यौन शोषण, 31 फीसदी शारीरिक प्रताड़ना और 10 फीसदी गंभीर हिंसा की शिकार रहती हैं.

  • एनसीआरबी के मुताबिक, हर तीन में से 2 महिलाएं एक साल में कम से कम दो बार यौन शोषण का शिकार होती हैं. 40 फीसदी से ज्यादा यौन शोषण के मामले दिन में होते हैं.

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