हमारी चेतना का स्वभाव ही उत्सव का है. उत्सव के साथ रंग को जोड़ दिया जाये, तो वह पूर्ण हो जाता है. वसंत का मौसम रंगों के उत्सव का है. इसमें रंग पंचमी है, रंग एकादशी है, वसंत पंचमी है और होली है. प्रकृति और मानव मन में फागुनाहट का रस और रंग समाया रहता है. होली के दिन हमारे जीवन को उत्साह और उमंग के रंगों से आलोकित होना चाहिए.
हमारे स्वर एवं हमारे कर्म में मधुरता एवं सहजता का ऐसा समागम होना चाहिए कि हमारा जीवन ही उत्सव बन जाये. रंग जीवन का सत्य है. आसमान, पर्वत, वनस्पति, खेत, सावन, नदी, सागर, आम्रवन. ये सब रंग के बहुरूप एवं प्रकार हैं. रंगों से विमुखता अंधकार है. जीवन की निराशा है. अंधेरे में सूर्य की रोशनी उम्मीद का सुनहरा रंग है, जो प्रकृति, वनस्पति, पशु-पक्षी के आंखों में आशा एवं आस्था का रंग भर देता है. होली शुद्ध लोकायत पर्व है. ‘होली’ शब्द ही हल्लिका यानी किसान से निकला है.
चेतना को रंगने का अवसर साल में एक बार ही मिलता है. हमारा जीवन रंग-बिरंगा होना ही चाहिए. इसमें आनंद का जीवंत पीलापन, प्रेम का प्रतीक गुलाबी, शांति की सौम्यता की सफेदी, जीवन के विस्तार का नीलापन और ज्ञान के आलोक का जामुनी रंग हो, तो चेतना शांत, शुद्ध, खुश, करुणा एवं ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है.
जीवन की सच्ची होली चेतना के रंगीन बनाने के उस अवसर में छिपी है, जो प्रकृति के स्वाभाविक रूपों के साथ खुद को अभिव्यक्त करे. जीवन में रंग की अपना भाषा है. रंगों की अपनी कहानी है. प्रकृति में हरियाली सृजन का संदेश है. जीवन का आगमन है. वही प्रकृति में पीलापन विसर्जन की बेला है. जीवन का अंतिम पड़ाव है. वही पीला वसंत के साथ हमारे जीवन में आनंद और शुचिता का रंग भरता है. हमारे मन में भी बहुरंग बसते हैं.
प्रेम का रंग, क्रोध का रंग, भक्ति का रंग और वासना का रंग. निराशा और आशा के साथ उम्मीद का रंग. रंग नहीं हो तो जीवन की छोटी छोटी बातों में हम उसे खोजने लगते हैं. हर आहट में गुलाल दिखता है. सांसों में अबीर, फागुन में गीत और मन के दर्पण में देह का संगीत. बस मन ऐसा आंगन खोजता है, जहां धूप और छांव के बीच मीठा फिसलन है. बस उस क्षण चेतना गुनगुनाने लगती है- तन हुआ फागुन और मन में बजे सावन के धुन. जीवन की रंगीनियत की यह विशेषता है.
होली का संदेश है कि जिस तरह प्रकृति रंगों से भरी है, वैसे ही जीवन भी रंगीन होना चाहिए. जीवन में रंग ऐसा हो कि हम चेतना के शिखर की यात्रा करें. चेतना में सदैव उत्सव हो. जहां व्यक्ति परम आनंद और असीम ऊर्जा से सराबोर हो. इसके लिए जरूरी है कि होलिका की अग्नि में हम मन एवं शरीर की बुराइयों एवं वासनाओं को अर्पित कर सकें. प्रह्लाद की तरह सत्कर्मों के छाये में अपने को अभय बना दें. भगवान शिव द्वारा काम का संहार संदेश है कि त्योहार हमारी जीवंत सांस्कृति चेतना एवं सनातन मूल्यों के प्रतीक हैं. वे आशा, आकांक्षा, उत्साह एवं उमंग के सृजक हैं. होली सांस्कृतिक धरोहर, परंपरा, मान्यता एवं सामाजिक मूल्यों के मूर्त प्रतिबिंब हैं, जो हमारी संस्कृति का शाश्वत दर्शन कराते हैं.
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गुलाबी रंग प्रेम का प्रतिक
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सफेद रंग शांति और सौम्यता का प्रतिक
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नीलापन जीवन के विस्तार का प्रतिक
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जामुनी रंग ज्ञान के आलोक का प्रतिक
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लाल रंग क्रोध का प्रतिक
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हरा रंग जलन का प्रतिक
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भगवा रंग त्याग का प्रतिक
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पीला रंग खुशी का प्रतिक
डॉ मयंक मुरारी
आध्यात्मिक लेखक
Posted By: Sumit Kumar Verma