Sri Sri Ravi Shankar: भारत निरंतर शक्ति और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है और अपनी जड़ों से जुड़कर हर कदम पर नयी ऊंचाइयां छू रहा है. आज भारत का महत्व वैश्विक मंच पर पहले से कहीं अधिक सशक्त हो चुका है. भारत ने हर क्षेत्र में अपनी भूमिका को सुदृढ़ किया है और विशेष रूप से योग और ध्यान के माध्यम से पूरे विश्व को जोड़कर, इसने आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अपार प्रगति की है. पिछले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस में विश्व भर के लोगों की भागीदारी ने भारत को एक आध्यात्मिक और ज्ञान प्रधान देश के रूप में प्रस्तुत किया है.
‘वसुधैव कुटुंबकम् – विश्व एक परिवार है’- यह विचारधारा भारत से उत्पन्न हुई. यही विश्वास भारत के दृष्टिकोण को भी परिभाषित करता है. इसके साथ ही हमें सभी पुरानी मानसिकताओं से बाहर आना चाहिए, क्योंकि जब तक हम अपनी जड़ों पर गर्व नहीं करते, तब तक न तो हम अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं और न ही हमारा देश प्रगति कर सकता है.
भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है. यहां के सभी दिलों में अनेकों सपने, संभावनाएं और अपेक्षाएं हैं और इसलिए यह आवश्यक है कि हम देश को आगे बढ़ाने के लिए, युवाओं के भविष्य लिए, बेहतर योजनाएं बनाएं. हमें उन्हें एक सही दिशा देने की जरूरत है.
हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को समझने के लिए दृष्टिकोण को विस्तृत करने और जड़ों को गहरा करने की आवश्यकता है. जब हम अपनी जड़ों को गहरा करते हैं, तो यह हमारे भीतर जिम्मेदारी की भावना जागृत करता है और विशाल दृष्टिकोण विश्राम की भावना लाता है.
दुनिया में भारत जैसी वैविध्यता कहीं और नहीं है. देश की वैविध्यता में हम सभी लोगों को एक साथ लेकर चलें. एकता हमारे देश का बल है. हमारे हर प्रांत में अलग-अलग भाषाएं, अलग-अलग व्यंजन और अलग-अलग तरह के हमारे पोशाक हैं. भारत के पास दुनिया के साथ साझा करने के लिए पर्यटन, भोजन, तकनीकी, वस्त्र, आभूषण, आयुर्वेद, योग और आध्यात्मिक ज्ञान सहित बहुत कुछ है. समाजसेवा और आध्यात्मिकता साथ-साथ चलते हैं, ये दोनों एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते. बिना आध्यात्मिकता के समाज सेवा स्वार्थ की भावना को बढ़ावा दे सकती है, जैसे कई बार लोग प्रसिद्धि, पैसे या सम्मान पाने के लिए भी सेवा करते हैं. वहीं कई व्यक्ति ऐसा कहते हैं कि वे अध्यात्म में हैं और सबको प्रेम करते हैं, लेकिन किसी तरह की सेवा नहीं करते, तो वे भी सच्चे अर्थ में आध्यात्मिक नहीं हैं. देशप्रेम और ईश्वर प्रेम में कोई भेद नहीं होता है.
अक्सर हम अपनी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने में लगे रहते हैं, लेकिन देश के प्रति अपने कर्तव्यों पर उतना ध्यान नहीं देते. हमें यह बदलना पड़ेगा. इस गणतंत्र दिवस पर हम सभी यह प्रण लें कि हम कर्त्तव्यपरायण रहेंगे, तभी हम प्रसन्न और सुखी रह सकते हैं. हम जितनी अधिक जिम्मेदारियां लेने लगेंगे जीवन में उतना ही बलशाली अनुभव करेंगे. ‘विविधता में एकता’ और ‘अनेकता में समरसता’ भारत की विचारधारा के मूल तत्व हैं. जीवन को उत्सव मानना, सभी के प्रति अपनेपन का भाव रखना और आपस में प्रेम व शांति को बढ़ावा देना- यही भारत के मूल्य हैं.
इस गणतंत्र दिवस पर हम यह संकल्प करें कि हमारा देश स्वावलंबी और मजबूत बनकर आगे बढ़े. हम सब मिलकर प्रेम, शांति और एकता की अलख जलाये रखें और अपने राष्ट्र और विश्व के लिए एक समृद्ध भविष्य की दिशा में काम करते रहें.
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर