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Indian Air Force Day 2023: असाधारण रही है भारतीय वायु सेना की उड़ान

हर वर्ष 8 अक्टूबर को ‘इंडियन एयरफोर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है. वायु सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है. बीते वर्षों में हमारी वायु सेना अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों व मिसाइलों से लैस हुई है.

Indian Air Force Day 2023: हर वर्ष 8 अक्टूबर को ‘इंडियन एयरफोर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन वर्ष 1932 में भारतीय वायु सेना की स्थापना की गयी थी. दुश्मनों से अपने देश को सुरक्षित रखने में भारतीय वायु सेना का योगदान अतुलनीय रहा है. खास बात है कि हमारी वायु सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायु सेना है. बीते वर्षों में हमारी वायु सेना अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों व मिसाइलों से लैस हुई है. जानें भारतीय वायु सेना की अब तक की यात्रा से जुड़ी रोचक बातें.

भारतीय वायु सेना इस वर्ष अपना 91वां स्थापना दिवस मना रही है. दिलचस्प है कि इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ युद्ध में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयर फोर्स का समर्थन करने के लिए की गयी थी. विश्व युद्ध के दौरान बेहतर युद्धकौशल के लिए ब्रिट्रेन के राजा किंग जॉर्ज (छठे) द्वारा इसे रॉयल इंडियन एयरफोर्स नाम दिया गया था. स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1950 में रॉयल शब्द हटा कर इसका नाम भारतीय वायु सेना कर दिया गया.

पाकिस्तान के खिलाफ लड़े तीन युद्ध

भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ लड़े गये तीन युद्धों 1965, 1971 और 1999 में शानदार प्रदर्शन किया. वर्ष 1965 के भारत-पाकन युद्ध में भारतीय वायुसेना के एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह की असाधारण नेतृत्व क्षमता की वजह से पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा. इन युद्धों के अलावा वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन के युद्ध में भी भारतीय वायुसेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.

भारतीय वायु सेना के महत्वपूर्ण पड़ाव

आजाद होने के बाद ही कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया, जिसे कबीलाई युद्ध कहा जाता है. इस युद्ध में भारतीय वायु सेना ने बढ़ते कबीलाई हमले के बीच तेजी से श्रीनगर में भारतीय सैनिकों को पहुंचाने में मदद की. हालांकि, इस दौरान भारतीय विमानों का पाकिस्तानी जंगी विमानों से सीधा टकराव नहीं हुआ. चीन के खिलाफ युद्ध में भी भारत ने वायु सेना का पूरा इस्तेमाल तो नहीं किया. चूंकि, शुरुआत में टकराव को ज्यादा न बढ़ने देने के लिए वायु सेना के इस्तेमाल से बचा गया. बाद में जब वायु सेना के इस्तेमाल की बारी आयी, तो चीन संघर्ष विराम की घोषणा कर चुका था. इस युद्ध में सिर्फ इंटेलीजेंस इकट्ठा करने के लिए ही कुछ जंगी विमानों ने उड़ानें भरी थीं.

वर्ष 1965 में युद्ध में भारतीय वायु सेना का संघर्ष

अपना देश वर्ष 1962 के चीन युद्ध से ठीक से उबरा भी नहीं था कि पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया. खास बात है कि उस समय पाकिस्तानी वायु सेना तकनीकी तौर पर हमसे आगे थी. उनके पास अमेरिका से खरीदे गये अत्याधुनिक फाइटर जेट थे. इसके बावजूद भारतीय वायु सेना ने पहली बार किसी युद्ध में पूरी तरह शामिल होकर अपना पराक्रम दिखाया. इस दौरान पाकिस्तानी सीमा के भीतर स्थित सैन्य ठिकानों को वायु सेना द्वारा निशाना बनाया गया. ऐसे में बड़ी संख्या में भारतीय विमान, एंटी एयरक्रॉफ्ट हथियारों के शिकार भी हुए. युद्ध में भारत को करीब 70 से ज्यादा विमानों का नुकसान हुआ, जिनमें से आधे से ज्यादा जमीनी हमले का शिकार बने.

वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में एयर स्पेस पर किया कब्जा

वर्ष 1965 के युद्ध के बाद भारतीय वायु सेना में बड़े पैमाने पर बदलाव किये गये. इससे हमारी वायु सेना काफी मजबूत हुई. ट्रांसपोर्ट के लिए स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट का इस्तेमाल किया जाने लगा. वर्ष 1971 भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ने से दस दिन पहले चार पाकिस्तानी फाइटर जेट्स ने जोधपुर, अंबाला समेत दूसरे मिलिट्री एयरपोर्ट्स पर हमले करने की कोशिश की, लेकिन यहां भारतीय वायु सेना ने उन्हें करारा जवाब दिया. इसके बाद पाकिस्तानी एयरफोर्स ज्यादातर डिफेंसिव मोड पर ही रही, जबकि भारतीय वायु सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में थल सेना को जबरदस्त मदद की और 12,000 से ज्यादा उड़ानें भरीं. पूर्वी मोर्चे पर भारतीय वायु सेना पूरी तरह एयर स्पेस पर कब्जा करने में कामयाब रही. इसके अलावा कराची के सैन्य, ऊर्जा और रसद ठिकानों पर रणनीतिक बमबारी की. इस युद्ध में भारतीय वायु सेना ने 90 से ज्यादा पाकिस्तानी जंगी विमानों को मार गिराया था.

बेड़े में शामिल लड़ाकू विमान व मिसाइल

भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल जेट्स की बात करें तो स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू विमान जैसे- तेजस, रुद्र, चेतक, ध्रुव और प्रचंड आदि शामिल होने के अलावा चिनूक जैसे भारी लिफ्ट हेलीकॉप्टर व अपाचे हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं. वहीं, राफेल जैसे अत्याधुनिक फाइटर विमान भी बेड़े में शामिल हो चुके हैं. इंडियन एयरफोर्स के पास सामरिक मिसाइलों का भी एक शानदार बेड़ा है. इनमें प्रमुख- अग्नि मिसाइल, लॉन्ग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल, मीडियम रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल और ब्रह्मोस आदि शामिल हैं.

भारतीय वायु सेना के पहले पायलट्स

भारतीय वायु सेना की स्थापना ब्रिटिश इंडिया के तहत हुई थी. 1 अप्रैल, 1933 को इसका पहला स्क्वाड्रन गठित किया गया, तब पहली बार पांच भारतीय पायलट्स को इसमें जगह दी गयी थी. इन पांच पायलट्स के नाम हरिशचंद्र सरकार, सुब्रतो मुखर्जी, भूपेंद्र सिंह, ऐजाद बख्श और अमरजीत सिंह थे. बाद में सुब्रतो मुखर्जी इंडियन एयरफोर्स के एयर स्टाफ के पहले चीफ भी बने. इनके नाम से एयरफोर्स द्वारा सुब्रतो कप फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया जाता है. वहीं, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अवनी चतुर्वेदी भारत की पहली महिला फाइटर पायलट रही हैं.

वायु सेना के कुछ स्पेशल ऑपरेशन

ऑपरेशन मेघदूत

वर्ष 1984 में भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत को चलाने का फैसला किया. इस ऑपरेशन में भारतीय वायु सेना के एमआइ-8 चेतक और चीता हेलीकॉप्टर्स ने सैकड़ों भारतीय सैनिकों को सियाचिन पहुंचाया. इस ऑपरेशन के सफल होने के बाद भारत को 3000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल का इलाका मिला. दरअसल, सियाचीन पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान अपने सैनिकों के लिए जर्मनी से बर्फीले इलाके में पहने जाने वाले कपड़े और सैन्य उपकरण खरीद रहा था.

ऑपरेशन पुमलाई

श्रीलंका में लिट्टे के साथ सरकार का गृहयुद्ध चरम पर था. लिट्टे, श्रीलंकाई तमिलों के समर्थन से बना समूह था. श्रीलंका की फोर्स ने लिट्टे के खिलाफ ऑपरेशन चलाया था. इसमें आम तमिल नागरिक भी फंस गये थे. उन्हें ही सहायता देने के लिए भारतीय वायु सेना द्वारा वर्ष 1987 में ऑपरेशन पुमलाई चलाया गया था. इस ऑपरेशन से पहले भारतीय सेना ने अपना एक अनआर्मड शिप भी श्रीलंका भेजने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में उसे श्रीलंका की नौसेना ने बीच मार्ग में रोक कर वापस भेज दिया था. श्रीलंका की सेना के हमले में तमिल आबादी वाले जाफना में कई निर्दोष नागरिक भी मारे गये. ऐसे में ऑपरेशन पुमलाई के तहत भारतीय विमानों से जाफना में कई टन रसद आपूर्ति की गयी थी.

ऑपरेशन कैक्टस

3 नवंबर, 1988 को आगरा हवाई अड्डे से भारतीय पैराट्रूपर्स ने मालदीव के लिए उड़ान भरी. दरअसल, मालदीव में तात्कालीन अब्दुल गयूम की सरकार के सामने अचानक तख्तापलट का खतरा मंडरा रहा था. यहां तक कि गयूम को भी अपनी जान बचाने के लिए राजधानी माले में अलग-अलग जगहें बदलनी पड़ रही थीं. ऐसे में गयूम ने भारत से मदद की अपील की. भारतीय वायु सेना के पैराट्रूपर्स ने हुलहुले में पहुंचने के बाद वहां की एयरफील्ड पर कब्जा किया और कुछ घंटों में ही माले में सरकार की सत्ता फिर से बहाली करवा दी. इसे ऑपरेशन कैक्टस नाम दिया गया था.

बालाकोट एयरस्ट्राइक

वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था. यह हमला जैश-ए-मोहम्मद ने किया था, जिसमें सीआरपीएफ के 44 जवान शहीद हुए थे. ऐसे में भारत ने पाकिस्तान के भीतर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए एयरस्ट्राइक करने का फैसला लिया. भारतीय वायुसेना के 12 मिराज-2000 फाइटर प्लेन के एक समूह ने मुजफ्फराबाद और चकोथी इलाकों में आंतकी ठिकानों को निशाना बनाया. यह दोनों जगहें पीओके में स्थित हैं. इतना ही नहीं, भारतीय वायुसेना ने खैबर-पख्तूनख्वा में स्थित बालाकोट जैसी दूर-दराज की जगह पर मौजूद जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग सेंटर को भी निशाना बनाया.

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