Jaipal Singh Munda Anniversary 2022: आज जयपाल सिंह मुंडा की जयंती है. जयपाल सिंह मुंडा का जन्म 3 जनवरी 1903 को खूंटी के टकरा पाहनटोली में हुआ था. जयपाल सिंह मुंडा के पिता का नाम अमरू पाहन तथा माता का नाम राधामणी था. इनके बचपन का नाम प्रमोद पाहन था. जयपाल सिंह मुंडा भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेता थे. जयपाल सिंह मुंडा का वास्तविक नाम ईश्वर जयपाल सिंह था,लेकिन उन्हें झारखंड के आदिवासी मरड़ गोमके कहते थे.
जयपाल सिंह मुंडा एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी थे और वे एक महान, दूरदर्शी और विद्वान नेता, सामाजिक न्याय के आदिवासियों के पक्षधर भी थे. रांची में जन्मे हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी में आदिवासी नेता मरड़ गोमके के नाम से विख्यात डॉ जयपाल सिंह का 1928 में एम्सटर्डम (होलैंड) में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान नियुक्त किया गया था, इसमें भारत में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था.
जयपाल सिंह मुंडा पहले आदिवासी थे जो भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए थे. लेकिन हॉकी के मोह के कारण उन्होंने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया था.
जयपाल सिंह मुंडा की शादी 1931 में कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमकेश चन्द्र बनर्जी की नतिनी तारा मजूमदार से हुई थी. तारा से उनकी तीन संतानें हैं दो बेटे वीरेंद्र और जयंत तथा एक बेटी जानकी. उनकी दूसरी शादी जहांआरा से 1954 में हुई, जिनसे एक पुत्र हैं जिनका नाम है रणजीत जयरत्नम.
बता दें कि ब्रिटेन में वर्ष 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले जयपाल सिंह मुंडा हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे. उनके ही नेतृत्व और कप्तानी में भारत ने 1928 के ओलिंपिक का पहला स्वर्ण पदक हासिल किया था. अंतरराष्ट्रीय हॉकी में जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में देश को पहला गोल्ड मेडल मिला था़।
जयपाल सिंह मुंडा ने शुरुआती शिक्षा रांची के सैंट पॉल स्कूल से प्राप्त किया था . वहाँ के प्रधानाचार्य ने आगे की शिक्षा के लिये उन्हे इंग्लैंड भेजा . स्कूल की शिक्षा पाने के बात उन्होने उच्च शिक्षा ऑक्स्फर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की. मिशनरीज के मदद से ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए वहां पर वे एक निराले रूप से एक प्रतिभाशाली थे. उन्हें पढ़ाई के अलावा हॉकी खेलने का शौक था. इसके अलावा वाद-विवाद में भी उन्होंने खूब नाम कमाया. सैंट पॉल के प्रधानाचार्य रेव.केकॉन कोसग्रेन ने पहचाना और वही उनके प्रारम्भिक गुरु भी थे, जिन्होंने उन्हे अपने समाज के उत्थान के लिये प्रेरित किया
उनका उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आई सी एस) में हुआ.1928 में एमस्टरडम में ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय टीम के कप्तान के रूप में नीदरलैंड चले गए. जिसके कारण उनका प्रशिक्षण प्रभावित हुआ. वापस आने पर उन्हें आईसीएस का 1 वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने एसा करने से इनकार कर दिया.
जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासियों के लिए बढ़-चढ़कर योगदान दिया झारखंड आंदोलन के नेता ने भारत आने के बाद ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने के बजाय बल्कि आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए उन्होंने 1938 में आदिवासी महासभा का गठन किया. उन्होंने बिहार से हटकर एक अलग झारखंड राज्य की मांग की.
उन्होंने मध्य पूर्वी भारत में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए आदिवासी राज्य बनाने की मांग की उनके प्रस्तावित राज्य में वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ हिस्से भी शामिल थे. इसके बाद जयपाल सिंह ने देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए. 1938 के आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया इस दौरे के दौरान आदिवासियों के खराब हालातो को देखते हुए जयपाल सिंह मुंडा ने राजनीति में आने का फैसला किया.