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हिंदी कहानी : जख्म

गंगा प्रसाद किसानी करता है. धरती का सेवक है. उसने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. ट्यूशन करने वाले विद्यार्थियों के लिए वह ईर्ष्या का विषय था.

वह पढ़ने में बहुत तेज था. लोग कहते थे कि वह जरूर एक दिन महान आदमी बनेगा. वह सचमुच महान व्यक्ति बना. वह जो सामने कंधे पर हल उठाए चला आ रहा है, वही तो है वह यानी गंगा प्रसाद.

गंगा प्रसाद किसानी करता है. धरती का सेवक है. उसने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. ट्यूशन करने वाले विद्यार्थियों के लिए वह ईर्ष्या का विषय था.

वह काॅलेज में पहुँचा. बहुत नामी काॅलेज था. वहाँ पूरे दो सालों में तीस दिन भी ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाई. फ्रीशिप की जाँच परीक्षा में गंगा प्रसाद को जरूर उत्तीर्ण होना चाहिए था, परंतु वह पास नहीं हो सका. उसके सामने ही बड़े-बड़े लोगों के लड़कों को फ्रीशिप में उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया. पहली बार उसने महसूस किया कि सफलता के लिए धन और बड़े नामों का सहारा चाहिए.

उसने ट्यूशन नहीं किया. अपनी जिद के कारण वह इंटर में पहली बार फेल हो गया था. परीक्षा भी बस खानापूरी थी. प्रतिदिन दो-दो पेपर की परीक्षाएँ हुईं. ऐसा लगा कि छात्र कोई रिकार्डर हों, जिन्हें बस परीक्षा में बज जाना है. परीक्षा में लड़कों ने खूब धाँधली की. मगर वह आदर्शवादी था, उसने चोरी नहीं की, इस कारण कुछ नंबरों से फेल हो गया. यह उसके लिए दूसरी चोट थी. मगर उसने हिम्मत नहीं हारी. पुनः अगले साल उसने परीक्षा दी, वह दूसरी श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया.

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एक दिन वह अपना सर्टिफिकेट लेने काॅलेज पहुँचा. ऑफिस के अंदर गया. उसने अपने चारों ओर अलमारियों पर बिखरे कागजों को देखा, जिनमें से बहुतों को दीमक चट कर चुके थे. उसने एक कागज को उठाकर देखा. वह किसी के मैट्रिक का अंक-पत्र था. उसने सोचा- ओह! यह अंकपत्र हमारी उपलब्धि नहीं था, जिसे दीमकों का भोजन बनने के लिए छोड़ दिया गया.

अपना सर्टिफिकेट तथा अंकपत्र लेकर वह बाहर आ चुका था. अब वह आगे नहीं पढ़ना चाहता था. उसका मन अब काॅलेज से ऊब गया था. उसने पढ़ाई छोड़ दी. उसके बाद उसने नौकरी की खोज में भटकना आरंभ किया. पहली बार प्राथमिक स्कूल के शिक्षक के पद के लिए आवेदन दिया. उसने परीक्षा पास कर ली, पर पैसा देना उसके लिए सिद्धांत के विरुद्ध था. उसने पैरवी नहीं की. उसके परिचितों में से कई शिक्षक बन गए, मगर वह शिक्षक न बन सका. उसके बाद उसने कई लिखित परीक्षाएँ दीं. कुछ में फेल हुआ, कुछ में पास भी, परंतु उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिल सकी. कहीं इंटरव्यू में छँट गया, कहीं किसी ने पैरवी के बल पर उसे पछाड़ दिया, कहीं भाई-भतीजावाद ने उसकी राह रोक दी. सब जगह से हारकर वह संभावित महान युवक अपने घर आ गया. उसने अपना खानदानी पेशा अपना लिया. वह खेती करने लगा.

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फिर भी गंगा अपने आपको महान मानता है, क्योंकि उसके पास छल-कपट नहीं है. वह सबके लिए अन्न का उत्पादन करता है. मगर वह उन सबको हेय नजरों से देखता है जो लोग समाज के सफल लोग माने जाते हैं. वह यही मानता है कि ये सारे लोग पैसे और पहुँच के बल पर सफल हुए हैं. शायद उसका जख्म अब भी हरा ही है, जो कभी भी भर नहीं सकता.

संपर्क : c/o सागर सिंह, सुरेश प्रसाद के कार पार्किंग के सामने, पूर्वी नवादा, आरा, भोजपुर- 802301, बिहार

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