कवर स्टोरी प्रत्युष प्रशांत
मकर संक्रांति के दिन प्रकृति की समस्त स्थितियां प्राणी जगत के लिए सर्वथा अनुकूल होती हैं. इसलिए यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, आभार प्रकट करने का श्रेष्ठ काल है. यह काल हमारे जीवन को आलोकित रखने के लिए हमें नया बल, नयी ऊर्जा से भर देता है. इसलिए सदियों से हम इसे ऊर्जा के उत्सव के रूप में मनाते आये हैं. यह हमें उत्तरायण हुए सूर्य देव की दिव्य ऊष्मा को अपने भीतर समेट लेने का संदेश भी देता है.
भारतीय संस्कृति में मानवीय जीवन चक्र को गतिशील रखने में सूर्य की उपासना का विशेष स्थान है. संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है- ‘संचार या गति’. सर्दियों में आलस्य में जकड़ा शरीर सूर्य की उष्मा से गतिशील हो जाता है, इसलिए मकर संक्रांति को सूर्य के सानिध्य का त्योहार कहना कहीं से गलत नहीं होगा. आधुनिक भाग-दौड़ती जिंदगी में घरों, कारों और दफ्तरों में जीवन का 90 फीसदी गुजरने वाला समय सूर्य के सीधे संपर्क में आने नहीं देता. इस कारण कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं हमें घेरती जा रही हैं. इसलिए जरूरी है कि धरती को गतिमान रखने में अहम भूमिका निभाने वाले सूर्य के साथ-साथ अपनी प्रकृति को ‘शुक्रिया’ भी कहा जाये!
दिव्य काल का दिव्य सूरज
मकर संक्रांति से सूर्य देव की उत्तरायण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, वह हर दिन थोड़ा-थोड़ा उत्तर की ओर होने लगते हैं. इसे ‘उत्तरायण पुण्य काल’ कहा जाता है, जो देवताओं का समय है, दिव्यता का समय है. सूर्य का ताप बढ़ता जाता है, दिव्यता भी बढ़ती जाती है. इसलिए मकर संक्रांति को सूर्य के स्वागत का उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद ही सारे त्योहार प्रारंभ होते हैं. जाड़े की तीव्रता के बाद सूर्य की रश्मियां सुखकारी होती हैं. यह फसलों के पक जाने की खुशी, गुड़ और तिल का प्रसाद खाकर खुद को निरोग रखने का समय है. साथ ही शीत के दिनों में अब तक जो गरिष्ठ भोजन खाते आये हैं, उसे त्याग कर खिचड़ी के रूप में सुपाच्य भोजन करने का समय है, जो हमें नयी ऋतु के लिए तैयार करता है.
जीवन में गतिशीलता लाने का पर्व
संक्रांति का अर्थ है-‘एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना या स्थान बदलना’. जिंदगी को आश्चर्यजनक रूप से देना ही सूर्य देव का काम है. मकर संक्रांति शुरू होती है हमारी पहली फसल को लेने और उसे सब में बांटने से. मूलत: यह बांटने का ही उत्सव है. गांवों में पहले गन्ने की फसल, पहले चावल की खेप दिव्यता को समर्पित करते हैं और आपस में भी बांटते हैं. तभी किसान अपनी पूरी फसल अपने प्रयोग में लाता है. संक्रांति का मूल भाव ही बांटने की संस्कृति का होता है और यह सिर्फ फसल तक ही सीमित नहीं होता. त्योहार हमें यह भी याद दिलाते हैं कि इस समृद्ध विरासत को हम उन लोगों में भी बांटे, जो अपेक्षाकृत कम भाग्यशाली हैं, जो त्योहार नहीं मना पा रहे हों. वस्तुत: इसीलिए इसमें दान का विधान शामिल किया गया होगा.
पंतग उड़ाने का खेल मकर संक्रांति के साथ कैसे घुल-मिल गया, इस बारे में रामचरितमानस में महाकवि तुलसीदास ने एक प्रसंग में उल्लेख किया है, जब श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ायी थी. इस प्रसंग के आधार पर पतंग की प्राचीनता का पता चलता है. यह उल्लेख बालकांड में मिलता है.
राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्रलोक में पहुंची जाई ॥
कहा गया है कि वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची. उस पतंग को देखकर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी आकर्षित होकर उसे पकड़ लिया.
जासु चंग अस सुन्दरताई।
सो पुरुष जग में अधिकाई ॥
श्रीराम ने इंद्र पुत्र जयंत की पत्नी को चित्रकूट में दर्शन देने का वचन दिया, जिसे सुनकर जयंत की पत्नी ने पतंग छोड़ दिया.
तिन तब सुनत तुरंत ही,
दीन्ही छोड़ पतंग।
खेंच लई बेग ही,
खेलत बालक संग ॥
सकारात्मकता का उत्तरायण
मकर संक्रांति के बाद दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती है. शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण को देवताओं के लिए दिन तथा दक्षिणायन को रात माना जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक एवं उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना जाता है. सूर्य के उत्तरायण स्थिति में आने पर मनुष्य की कार्यक्षमता बढ़ती है. ऐसा देखा गया है कि प्रकाश में वृद्धि के साथ ही मनुष्य की बुद्धि तथा शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है.
तिल का महत्व : तिल कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पोषक तत्वों से भरा खाद्य पदार्थ है. इस दिन तिल-दान को महत्वपूर्ण माना गया है. पारंपरिक मान्यता है कि इससे व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ता है. तिल खाने से शनि देव और सूर्य देव की विशेष कृपा मिलती है, जिससे मृत्यु का भय दूर होता है, साथ ही जीवन में आने वाली मुसीबतें भी कमजोर हो जाती हैं.
गुड़ का महत्व : ज्योतिष में गुड़ को मंगल और सूर्य का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन गुड़ का दान तथा सेवन करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है. गुड़ में कई पोषक तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं. गुड़ को पेट, त्वचा तथा कई रोगों में लाभकारी बताया गया है. इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में खासकर दही-चूड़ा में लोग इसका प्रयोग करते हैं, ताकि शरीर की गर्माहट बनी रहे.
पहले ग्रामीण परिवेश में लगभग हर घर में बेटी के ससुराल नये धान का चावल, चूड़ा, गुड़, दही, घी आदि नये कपड़ों के साथ भेजा जाता था. मुझे आज भी याद आता है कि मां त्योहार से जुड़े दिलचस्प अनुभव बताया करती थीं, उनमें मकर संक्रांति भी एक है. मां को अपने मायके से ये सब सामान आते थे. इधर दादी घर में बुआ के घर खिचड़ी भेजने की तैयारी भी पहले से ही शुरू हो जाती थी. दादी, मां, चाची आदि घर की सब महिलाएं दैनिक कार्य खत्म करने के बाद ओखली और मूसल का प्रयोग करके अपने हाथों से हरे धान को कूट-कूट कर चूड़ा तैयार करती थीं. धान कूटने के लिए एक दूसरे पारंपरिक वस्तु का भी प्रयोग किया जाता था, जिसे ‘ढेंकी’ कहा जाता है. मां बताती थीं कि कैसे ओखली और ढेंकी में धान कूट कर चूड़ा बनाते हुए वह पारंपरिक लोकगीतों को गाया करती थीं. इन गीतों में घर की महिलाएं मिल कर सास-ननद से जुड़े पारंपरिक गीत गाकर हंसी-ठिठोली भी कर लिया करती थीं.
Also Read: बनेगी बिगड़ी किस्मत और पाप होगा नष्ट, मकर संक्रांति पर करें ये अचूक उपाय