Parenting Tips: दुख और खुशी, दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण हैं. दुख में हमें पता चलता है कि हमारे साथ कौन है और खुशी में हमें पता चलता है कि अहंकार के कारण हमने किसे छोड़ दिया है. वैसे भी हम उन्हीं लोगों को अपना कहेंगे जो दुख में भी हमारे साथ खड़े हों. लेकिन जिन्हें हमारे साथ खड़ा होना है, वे कई बार यह समझ नहीं पाते कि अगर सामने वाला बहुत दुखी है तो उसे क्या कहना चाहिए और क्या नहीं, कितना बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए?
बच्चों के मामले में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. बच्चे छोटी-छोटी बातों पर दुखी हो जाते हैं. ऐसे में माता-पिता को समझ नहीं आता कि इस स्थिति को कैसे हैंडल करें. अगर आप भी अपनी पेरेंटिंग लाइफ में ऐसी किसी समस्या में फंस जाते हैं तो यहां विशेषज्ञों की मदद से जान सकते हैं कि आपको क्या करना चाहिए?
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जब बच्चे के कम अंक आते हैं
जब कोई बच्चा या किशोर कम अंक लाता है या कोई व्यक्ति किसी प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाता है, तो ऐसे लोगों की कमी नहीं होती जो ताने मारते हैं, व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं और अनचाहे सुझाव देते हैं. हर कोई करियर काउंसलर बन जाता है. ऐसे लोगों से बचना चाहिए और अपने बच्चों को भी बचाना चाहिए.
क्या कहना सही नहीं है?
कम अंक आने या फेल होने पर अक्सर बच्चों की तुलना दूसरों से की जाती है. यह भी कहा जाता है कि तुमने खुद को बदनाम कर लिया है. ऐसी बातें कहना बिल्कुल गलत है. तुरंत यह कहना कि तुमने ठीक से तैयारी नहीं की होगी, यह भी सही नहीं है. दरअसल, वह व्यक्ति खुद भावनात्मक रूप से बहुत परेशान होता है. ऐसी बातें बच्चे को परेशान कर सकती हैं.
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क्या कहना या करना सही है?
बच्चे को प्रोत्साहित करते हुए ऐसी बातें जरूर कही जा सकती हैं कि यह तो बस एक परीक्षा थी. आगे भी ऐसी और परीक्षाएं होंगी. उनमें अच्छा करो. हां, कुछ दिनों बाद जब मामला शांत हो जाए, तो उन कमियों को दूर करने की बात जरूर की जा सकती है. ताकि बच्चे को भविष्य में ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े.
बच्चों से बात करने का सही तरीका
जब तक बच्चों के कपड़ें माता-पिता बदलवाते हैं, तब तक वे पूरी तरह से उन पर निर्भर रहते हैं. लगभग इस उम्र में कोई प्राइवेसी नहीं होती. लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, आमतौर पर 7 से 8 साल के बाद वे खुद ही ऐसी चीजें करने लगते हैं. उस समय उन्हें प्राइवेसी भी चाहिए होती है. इसके साथ ही उन्हें हर चीज में दखलंदाजी पसंद नहीं होती.
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क्या कहना सही है और क्या कहना गलत?
गलत की बात करें तो बच्चों की तुलना कभी भी दूसरों से नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा किसी छोटी-मोटी गलती पर चिल्लाना भी नहीं चाहिए. इसी तरह अगर बात करें कि बच्चों से क्या कहा जाना चाहिए तो बच्चे की बात ध्यान से सुननी चाहिए. उन बातों से जुड़े सवाल भी पूछने चाहिए. अगर स्कूल या कॉलेज आदि में बदमाशी हुई है तो वहां के प्रशासन को इस बारे में बताना चाहिए. दोस्त की तरह सुझाव देने में कोई बुराई नहीं है.
जब कोई किशोर शांत रहता है या उसके साथ बदमाशी हुई है?
यह जीवन का वह पड़ाव है जब चीज़ें बदल रही होती हैं. नए हॉरमोन बनने लगते हैं. लड़कों में टेस्टोस्टेरोन और लड़कियों में एस्ट्रोजन, ऑक्सीटोसिन आदि बनने लगते हैं. लड़कों में शुक्राणु बनने लगते हैं और लड़कियों में मासिक धर्म शुरू हो जाता है. ऐसे में कुछ किशोर दुनिया के साथ, माहौल के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते. वे चुप रहने लगते हैं. कई बार उन्हें स्कूल या कॉलेज में भी परेशान किया जाता है. वे बदमाशी का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में माता-पिता की भूमिका रिश्तेदारों से ज़्यादा अहम हो जाती है.