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Stress से बिखर रहा घर-परिवार, जानिए इससे बचने के उपाय

आरती श्रीवास्तव सारी सुख-सुविधाएं, अच्छी पोजिशन, अच्छा सैलरी पैकेज, नामी-गिरामी कंपनी में काम करने के बाद भी आज लोग खुश नहीं हैं. जीवन में सब कुछ मनचाहा होने के बावजूद आज अनेक लोग अत्यधिक stress में जी रहे हैं. यह भी देखने में आ रहा है कि कई बार तनाव इतना हावी हो जाता है […]

आरती श्रीवास्तव

सारी सुख-सुविधाएं, अच्छी पोजिशन, अच्छा सैलरी पैकेज, नामी-गिरामी कंपनी में काम करने के बाद भी आज लोग खुश नहीं हैं. जीवन में सब कुछ मनचाहा होने के बावजूद आज अनेक लोग अत्यधिक stress में जी रहे हैं. यह भी देखने में आ रहा है कि कई बार तनाव इतना हावी हो जाता है कि या तो व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है, या जिसके चलते उसे परेशानी आ रही होती है, उसकी जान ले लेता है. तो कई बार छोटी सी बात पर वह मरने-मारने पर उतारू हो जाता है. तनाव परिवारों के टूटने-बिखरने का कारण भी बन रहे हैं. आखिर क्यों ग्रहण लग गया है हमारी खुशियों को? क्या हैं तनाव के कारण और इससे बचने के क्या हैं उपाय? आइए आज इसी बात की पड़ताल करते हैं.

Top Position पर पहुंचने के लिए चुकानी पड़ती है बड़ी कीमत

यदि आप विश्लेषण करेंगे, तो पायेंगे कि वर्क प्लेस पर अच्छी पोजिशन हासिल करने के लिए एक व्यक्ति को घंटों कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. निरंतर मेहनत के बाद ही एक व्यक्ति सीनियर पोजिशन पर पहुंचता है. तब जाकर महीने के अंत में सैलरी व पर्क को जोड़कर वह मोटी रकम घर ले आ पाता है. वहीं कई बार प्रतिभासंपन्न होने और मेहनत करने के बावजूद लोगों को वह पोजिशन व पैसे नहीं मिल पाते जो वे डिजर्व करते हैं. इस तरह घंटों काम करने से केवल हमारा शरीर ही नहीं, हमारी बौद्धिकता और हमारा इमोशनल लेवल भी प्रभावित होता है. नतीजा, हम बुरी तरह थक जाते हैं. वास्तव में, जब हम घंटों इस तरह काम करते हैं तो इससे हमारी इंटर्नल एनर्जी का बहुत ज्यादा दोहन हो जाता है. इस प्रकार, Top Position पर पहुंचने के लिए एक व्यक्ति को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. मनोविश्लेष भी इस बात से सहमति जताते हैं कि दूसरों को पछाड़कर आगे निकलने की होड़ में एक व्यक्ति अपनी हेल्थ, पर्सनल रिलेशनशिप, सोशल लाइफ, अपनी रुचियां, सब कुछ नजरअंदाज करता जाता है. पर एक समय ऐसा भी आता है जब वह अपने परिवार, दोस्त व अपनों के पास वापस लौट आना चाहता है. शांति से जीवन जीते हुए चैनपूर्वक जीवन जीना चाहता है, पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. यही कारण है कि सारी सुख-सुविधाओं के होने के बाद भी वह व्यक्ति खुश नहीं हो पाता, क्योंकि उसकी इन खुशियो को बांटने वाले लोग उसके आस-पास नहीं होते हैं. इस मुकाम पर पहुंचकर वह व्यक्ति अपने आपको एकदम अकेला पाता है. यही अकेलापन दुख और असंतोष का कारण बनता है, जो धीरे-धीरे कर उसके स्ट्रेस लेवल को बढ़ा देता है.

पर्सनल, सोशल और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस बनाना सीखें

हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमेशा ही सादा व संतुलित जीवन जीने को खुशियों की कुंजी माना है. यह बात सुनने में साधारण लगती है, पर इसका अर्थ बहुत गहरा है, यदि इसे समझा जाये तो. आज जिस तरह लोग stress में हैं, अपनों से दूर अकेलेपन से जूझते हुए जीने का प्रयास कर रहे हैं, हमें बड़ों की इस सीख को आत्मसात करने की आज पहले कहीं अधिक आवश्यकता है. इसके साथ ही हमें हर हाल में संतुष्ट रहना भी सीखना होगा. इसका अर्थ यह नहीं है कि हम समस्या का समाधान न तलाशें, या आगे बढ़ने का प्रयास न करें. बल्कि हमें अपने प्रयास तो करने ही चाहिए, परंतु अपनी स्थिति को लेकर impatient होने या tension में आने की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, हमें पर्सनल, सोशल और प्रोफेशनल लाइफ में बैलेंस बनाना भी सीखना होगा. ये सभी पक्ष हमारे जीवन में समान रूप से महत्व रखते हैं और इन सबको समान रूप से समय देना अत्यंत आवश्यक है. प्रोफेशनली सक्सेसफुल होना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण हमारे लिए वह भावनात्मक प्रसन्नता और आनंद भी है जो हम अपने परिवार के साथ महसूस करते हैं. अपने दोस्तों और संबंधियों के साथ हम जो अपनापन और आत्मीयता की भावना महसूस करते हैं, हमारी happy life के लिए यह सब भी बहुत इंपॉर्टेंट है. इन सभी को बराबर समय देने का अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पास तनाव को दूर करने और जिंदादिली व आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करने के कई रास्ते हैं.

अपनों की भूमिका का महत्व समझें

मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है, जिसे साथी की जरूरत के साथ ही इस बात को महसूसने की भी जरूरत होती है कि उसके साथ, उसके पास कोई अपना है. हमारे जीवन में हमारे दोस्त, परिवार, संबंधी, पड़ोसी, सहकर्मी, बच्चे सभी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये सभी हमें यह अहसास कराते हैं कि हमें भी कोई प्यार करने वाला और चाहने वाला है. मजबूत पारिवारिक संबंध, लोगों के साथ गहरा भावनात्मक लगाव किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को सकारात्मक तौर पर प्रभावित करते हैं. जिससे हमारा तनाव छूमंतर हो जाता है.

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