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Chaurchan 2023: मिथिला में है चौरचन पर्व की धूम, आप ऐसे ले सकते हैं इसका आनंद

Chaurchan 2023: चौरचन के पर्व को चौठ चंद्र भी कहा जाता हैं. इस त्यौहार पर चंद्र देव की पूजा अर्चना की जाती हैं क्योंकि माना जाता हैं कि जो व्यक्ति इस दिन शाम के समय भगवान गणेश के साथ साथ चंद्र देव की पूजा करते हैं वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाते हैं.

Chaurchan 2023: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है और इसी समय चौरचन पर्व का भी मनाया जाता है. चौरचन के पर्व को चौठ चंद्र भी कहा जाता हैं. इस त्योहार पर चंद्र देव की पूजा अर्चना की जाती हैं क्योंकि माना जाता हैं कि जो व्यक्ति इस दिन शाम के समय भगवान गणेश के साथ साथ चंद्र देव की पूजा करते हैं वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाते हैं.

मिथिला में चौरचन मनाने की रही है परंपरा

चौरचन पूजा यहां के लोग सदियों से इसी अर्थ में मनाते आ रहे हैं. पूजा में शरीक सभी लोग अपने हाथ में कोई न कोई फल जैसे खीरा व केला रखकर चांद की अराधना एवं दर्शन करते हैं. चौठचंद्र की पूजा के दैरान मिट्टी के विशेष बर्तन, जिसे मैथिली में अथरा कहते हैं, में दही जमाया जाता है. इस दही का स्वाद विशिष्ट एवं अपूर्व होता है. चांद की पूजा सभी धर्मो में है. मुस्लिम धर्म में चांद का काफी महत्व है. इसे अल्लाह का रूप माना जाता है. अमुक दिन चांद जब दिखाई देता है तो ईद की घोषणा की जाती है. चांद देखने के लिए लोग काफी व्याकुल रहते हैं. चांद की रोशनी से शीतलता मिलती है. इस रोशनी को इजोरिया (चांदनी) कहते हैं. चांदनी रात पर कई गाने हैं जो रोमांचित करता है. प्रकृति का नियम है जो रात-दिन चलता रहता है. दोनों का अपना महत्व है. अमावस्या यानी काली रात, पूर्णिमा यानी पूरे चांद वाली रात. भादव महीने में अमावस्या के बाद चतुर्थी तिथि को लोग चांद की पूजा करते हैं, जिससे दोष निवारण होता है. साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन मिथिला में चांद की पूजा ‘कोजागरा’ के रूप में मनाया जाता है.

चौठचंद्र की पूजा में एक विशेष श्लोक पढ़ा जाता है :

सिंहप्रसेन मवधीत सिंहोजाम्बवताहत:।

सुकुमारक मारोदीपस्तेह्यषव स्यमन्तक:..।।

चौरचन तिथि 2023 (Chaurchan 2023 Date)

इस साल 2023 का चौरचन का पर्व 19 सितंबर 2023 दिन मंगलवार को मनाया जायेगा.

चौरचन की महत्वता

मिथिला एक ऐसा स्थान है जहां पर प्रकृति से जुड़े हुए काफी सारे त्यौहार मनाए जाते हैं; जैसे कि सूर्य देव की आराधना करने के लिए छठ पर्व मनाए जाते हैं तो इसी तरह चंद्र देव की आराधना करने के लिए चौरचन का त्योहार मनाया जाता है. इस त्यौहार की महत्वता इसीलिए है क्योंकि कहते हैं कि चंद्र देव की पूजा करने से व्यक्ति झूठे कलंक से बच जाता है. कहती हैं कि इस दिन यदि चंद्र देव की पूजा अर्चना की जाए तो चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं.

ये भी है मान्यता

कहते हैं कि जो व्यक्ति गणेश चतुर्थी की शाम भगवान गणेश के साथ चंद्र देव की पूजा करता है. वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाता है. बता दें कि चतुर्थी (चौठ) तिथि में शाम के समय चौरचन पूजा होती है. चौरचन (Chaurchan) पर्व के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इसी दिन चंद्रमा को कलंक लगा था. इसलिए इस दिन चांद को देखने की मनाही है.

चौरचन त्योहार से जुड़ी हुई कथा

एक पुरातन कथा अनुसार, 1 दिन भगवान गणेश अपने वाहन मूषक के साथ कैलाश का भ्रमण कर रहे थे. तभी अचानक उन्हें चंद्र देव के हंसने की आवाज आई. भगवान गणेश को उनके हंसने का कारण समझ में नहीं आया इसीलिए उन्होंने चंद्रदेव से इसका कारण पूछा. चंद्रदेव ने कहा कि भगवान गणेश का विचित्र रूप देखकर उन्हें हंसी आ रही है, साथ ही उन्होंने अपने रूप की प्रशंसा करनी ही शुरु कर दी. मजाक उड़ाने की इस प्रवृत्ति को देखकर गणेश जी को काफी गुस्सा आया. उन्होंने चंद्र देव को श्राप दिया और कहा कि जिस रूप का उन्हें इतना अभिमान है वह रूप आज से करूप हो जाएगा. कोई भी व्यक्ति जो चंद्रदेव को इस दिन देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा. भले ही व्यक्ति का कोई अपराध ना भी हो परंतु यदि वह इस दिन चंद्र देव को देख लेगा तो वह अपराधी ही कहलाएगा.

चौरचन के दिन दही का महत्व

चौरचन की पूजा के दौरान दही का काफी महत्व है; इसीलिए इस दिन मिट्टी के बर्तन में दही जमाया जाता है. कहते हैं कि इस तरह करने से दही का स्वाद बहुत ही खास हो जाता है. इसी दही को पूजा के दौरान इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा बांस के बर्तन में विशेष खीर तैयार की जाती है, जिसका भोग चंद्रदेव को लगाया जाता है.

अन्य इलाकों में यह देखने को नहीं मिलता है

अन्य इलाकों में यह देखने को नहीं मिलता है. इस पर्व में पकवान बनाने से अधिक हर किसी को पकवान उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था की जाती है. सन्तान की उन्नति और कलंक से बचाव की कामना से इस दिन चन्द्रमा की आराधना की जाती है. भवनाथ झा कहते हैं कि 16वीं सदी से पहले चंद्र पूजन की मिथिला में भी परंपरा नहीं दिखती है. चौठ चंद्र का सबसे पुराना उल्लेख ब्रह्मपुराणक में मिलता है. वहां उल्लेखित कथानुसार श्री कृष्णा को स्मयंतक मणि चोरी करने का कलंक लगा था, यह मणि प्रसेन ने चुराई थी. एक सिंह ने प्रसेन को मार दिया था फिर जामवंत ने उस सिंह का वध कर वह मणि हासिल किया था.

14वीं सदी में भी नहीं था प्रचलन

इसके बाद श्री कृष्णा ने जामवंत को युद्ध में पराजित कर इस मणि को हासिल कर कलंकमुक्त हुए थे. इस आधार पर यह मान्यता रही कि चौठ का चंद्र देखने के कारण जब स्वयं नारायण पर कलंक लग गया, तो मनुष्य कैसे कलंक से बच पायेगा. 14वीं शती में चण्डेश्वर उपाध्याय लिखिल ग्रन्थ “कृत्यरत्नाकर” में भी चौठचंद्र का उल्लेख मिलता है. उसमें भी वर्णित है कि भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है. उस दिन चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. कमोवेश यही मान्यता आज भी पूरे भारत में है, लेकिन मिथिला में लोग चंद्र दर्शन और चंद्र पूजा करते हैं.

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