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Jagannath Rath Yatra 2024: रथ उत्सव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी- जानें कौन-कौन सी होती है रस्में

जगन्नाथ रथ यात्रा जटिल अनुष्ठानों और गहरे सांस्कृतिक महत्व से भरी एक आध्यात्मिक यात्रा है. स्नान यात्रा से लेकर नीलाद्रि बिजे तक प्रत्येक अनुष्ठान, भक्तों की समृद्ध परंपराओं और अटूट भक्ति को दर्शाता है.

Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्नाथ रथ यात्रा में स्वयं प्रभु जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ नगर भ्रमण पर अपने विशाल रथों पर सवार होकर जाते है जहां वें अपनी मासी गुंडिचा माता के घर 8 दिन तक विश्राम करते है. जगन्नाथ पुरी श्री हरि भगवान नारायण के चार पवित्र धामों बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम में से एक है. जिसमें प्रभु बद्रीनाथ में स्नान करते है, द्वारका में शृंगार एवं पुरी में भगवान भोजन प्रसाद ग्रहण करते है एवं रामेश्वरम में जाकर विश्राम करते है.

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Jagannath Rath Yatra 2024 (Image Source-Social Media)

यह पर्व पुरी में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमें देश-विदेश से भक्त आते है, माना जाता है की रथ यात्रा से 1000 यज्ञ के बराबर का पुण्य मिलता है. इस रथ उत्सव में बहुत से रीति-रिवाज और प्रक्रिया भी होती है जिनकी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है,

स्नान यात्रा: पवित्र स्नान

जगन्नाथ रथ यात्रा(Jagannath Rath Yatra 2024) के अनुष्ठान स्नान यात्रा से शुरू होते हैं, जो एक महत्वपूर्ण शुद्धिकरण समारोह है. देवस्नान पूर्णिमा के शुभ दिन पर, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के देवताओं को सुगंधित जल के 108 घड़ों में औपचारिक रूप से स्नान कराया जाता है. यह अनुष्ठान न केवल शुद्धिकरण का प्रतीक है, बल्कि देवताओं को आगे की भव्य यात्रा के लिए तैयार भी करता है.

अनासरा: अलगाव की अवधि

विस्तृत स्नान अनुष्ठान के बाद, माना जाता है कि देवता अधिक पानी के कारण बीमार पड़ जाते हैं. इस अवधि को अनासरा के रूप में जाना जाता है, जिसमें देवताओं को भक्तों की नज़रों से दूर, एकांत में रखा जाता है. इस दौरान, उनके स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए विशेष अनुष्ठान और उपचार किए जाते हैं.

अनवासरा: भव्य सजावट

अनवासरा में, अलगाव काल के बाद, देवताओं को जगन्नाथ मंदिर से बाहर लाया जाता है. फिर उन्हें उनके संबंधित रथों पर सावर करने से पहले जीवंत रंगों और आभूषणों से सजाया जाता है. यह उनके भव्य रथ यात्रा की लिए तैयार होने का चरण है.

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पहांडी: रथ यात्रा का भव्य शुभारंभ होता है

पहांडी अनुष्ठान एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य होता है क्योंकि मूर्तियों को मंदिर से रथों में स्थानांतरित किया जाता है.पवित्र मंत्रों, लयबद्ध ढोल की थाप और देवताओं को रस्सियों से खींचने वाले सेवायत पुजारियों के समर्पित प्रयासों के बीच, यह रथ यात्रा आध्यात्मिक उत्साह और भक्ति का प्रतीक है.

Shri Jagannath Rath Yatra 2024
Jagannath Rath Yatra 2024 (Image Source-Social Media)

छेरा पन्हारा: शाही झाड़ू

सबसे अनोखी और पूजनीय रस्मों में से एक छेरा पन्हारा है. पुरी के राजा गजपति महाराजा, सोने की झाड़ू से रथों के फर्श को साफ करने का पवित्र कार्य करते हैं. यह कार्य विनम्रता और भक्ति का प्रतीक है, क्योंकि राजा भी देवताओं की सेवा करता है. महाराजा रथों पर चंदन का लेप भी छिड़कते हैं और देवताओं को “मलचूला” और बेशा से सजाते हैं, जिससे इस आयोजन की पवित्रता और बढ़ जाती है.

हेरा पंचमी: पंचमी का दर्शन

हेरा पंचमी शाम का अनुष्ठान है जो यात्रा शुरू होने के पांच दिन बाद होता है.इसमें देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर में औपचारिक रूप से जाती हैं, जहां वे भगवान जगन्नाथ द्वारा उन्हें पीछे छोड़ने पर अपनी नाराजगी व्यक्त करती हैं. यह अनुष्ठान दिव्य चंचलता और देवताओं के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है.

बहुदा यात्रा: वापसी यात्रा

बहुदा यात्रा देवताओं की गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर तक की वापसी यात्रा है. यह वापसी यात्रा भी शुरुआती भव्य रथ यात्रा की तरह ही भव्य और महत्वपूर्ण होती है, जिसमें भक्त उत्सुकता से भाग लेते हैं और अपने प्रिय देवताओं की घर वापसी का जश्न मनाते हैं.

सुना बेशा: स्वर्ण पोशाक

बहुदा यात्रा के अगले दिन, देवताओं को सुना बेशा नामक अनुष्ठान में स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है. यह भव्य सजावट समृद्धि और दिव्य वैभव का प्रतीक है, जो हजारों भक्तों को आकर्षित करती है जो देवताओं को उनके राजसी स्वर्ण पोशाक में देखने के लिए इकट्ठा होते हैं.

अधरा पाना: भव्य अर्पण

अधरा पाना जिसमें विभिन्न सामग्रियों से बना एक विशेष पेय देवताओं को चढ़ाया जाता है. इस पवित्र पेय से भरे बड़े बर्तन देवताओं के सामने रखे जाते हैं, जो सभी के लिए पोषण और आशीर्वाद का प्रतीक है. यह अर्पण अनुष्ठान बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है.

नीलाद्रि बिजे: घर वापसी की आखिरी रस्म

जगन्नाथ रथ यात्रा का समापन अनुष्ठान नीलाद्रि बिजे है, जो जगन्नाथ मंदिर में देवताओं की उनके गर्भगृह में वापसी का प्रतीक है. यह अनुष्ठानों की विस्तृत श्रृंखला का अंत है, जिसमें भक्त देवताओं की घर वापसी का जश्न खुशी और भक्ति के साथ मनाते हैं.

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