MP Tourism:मध्यप्रदेश की चंदेरीं, माहेश्वरी, बाग, जरी-जरदोज़ी, बटिक साड़ियों की सुंदरता के चर्चे पूरे भारतवर्ष में ही नही बल्कि पूरे विश्व में है. इन साड़ियों को ओर अनमोल बनाते है इन्हे बनाने में लगने वाले कारीगरों की कड़ी मेहनत ओर वर्षों से चले आ रही परंपरा को बनाए रखने के उनका समर्पण.
मध्यप्रदेश की छोटी-छोटी गलियों में हमेशा एक नई कहानी बुनी जाती है,जो अक्सर हस्तनिर्मित कपड़ों और साड़ियों का रूप ले लेती है. सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध यह राज्य में बेहतरीन पारंपरिक बुनाई भी की जाती है जिनमे से कुछ महेश्वर के इतिहास से जुड़ी हुई है तो कुछ चंदेल से तालूख रखती है.
इतना ही मध्य प्रदेश की चंदेरीं, माहेश्वरी, बाग साड़ियों को GI Tag(GeographicalIndication) का गौरव भी प्राप्त है
1. चंदेरी साड़ी
चंदेरी साड़ियांं अपनी शुद्ध बनावट, हल्के वजन और शानदार कलाकारी के लिए प्रसिद्ध हैं.
यह शिल्प, जो सदियों पुराना है, कभी बड़ौदा, इंदौर, ग्वालियर और नागपुर की शाही महिलाओं का पसंदीदा कपड़ा हुआ करता था. गिन्नी (सिक्के), बूटी (कलियां) और सोने की जरी की बॉर्डर के सुंदर डिजाइन से सजी, पारंपरिक चंदेरी साड़ियां बेशकीमती संपत्ति हुआ करती थीं.
मूल रूप से, ये साड़ियां केवल प्राकृतिक ऑफ-व्हाइट रंग में बुनी जाती थीं, लेकिन समय के साथ, बुनकरों ने धागे को पेस्टल रंगों में रंगना शुरू कर दिया, जिससे खूबसूरत रंगों का एक स्पेक्ट्रम बन गया.
सूती और रेशमी धागों का मिश्रण चंदेरी साड़ियों को एक अनूठी चमक देता है, जो उन्हें अन्य रेशमी साड़ियों से अलग बनाता है.
आधुनिक चंदेरी साड़ियों को अक्सर प्रकृति से प्रेरित सुंदर डिजाइन से सजाया जाता है, जैसे कि फूल, पक्षी और फल. आज, कई डिज़ाइनर अपने कलेक्शन में चंदेरी को शामिल करते हैं, जो इस बुनाई की कालातीत सुंदरता को प्रदर्शित करता है.
2. माहेश्वरी साड़ी – महेश्वर
महेश्वर शहर अपनी खूबसूरत माहेश्वरी बुनाई के लिए प्रसिद्ध है, जो 5वीं शताब्दी से चली आ रही है. इस शिल्प का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी किया गया है. बुनाई उद्योग मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर के संरक्षण में फला-फूला, जिन्होंने अपने राज्य के लिए विशेष नौ-यार्ड नौवारी साड़ियां और पगड़ियां बनाने के लिए गुजरात के सूरत शहर से प्रतिभाशाली बुनकरों को आमंत्रित किया था.
माहेश्वरी साड़ी कोयंबटूर कॉटन और बैंगलोर सिल्क यार्न का मिश्रण है, जो रुईफूल (कपास का फूल), चमेली (चमेली) और हंस (हंस) जैसे सुंदर सुंदर डिजाइनों से सजी है. लोकप्रिय रंगों में तपकीर (गहरा भूरा) और अंगूरी (अंगूर हरा) शामिल हैं.
एक प्रामाणिक माहेश्वरी साड़ी में एक अनूठी रिवर्सिबल जरी बॉर्डर और पांच धारियों वाला पल्लू होता है. महेश्वर में स्थानीय कार्यशालाएं आज अभी इन साड़ियों के निर्माण की एक झलक प्रदान करती हैं, और आगंतुक न केवल साड़ियां बल्कि दुपट्टे और स्टोल भी खरीद सकते हैं.
3. बाग साड़ी – बाग
मध्यप्रदेश के धार जिले के बाग शहर में, कुशल कारीगर फलों और फूलों से निकाले गए प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बाग प्रिंटिंग का उपयोग करते हैं.
प्रसिद्ध बाग कारीगर उमर खत्री के अनुसार, यह बाग प्रिंट प्रकृति, वन्य जीवन और विरासत से प्रेरित हैं.
आम ब्लॉक डिजाइन में गेंदा (गेंदा का फूल) और नारियल जाल (ताजमहल से प्रेरित) शामिल हैं.
बाग प्रिंटिंग कपास, रेशम, माहेश्वरी, चंदेरी और शिफॉन सहित विभिन्न कपड़ों को सुशोभित करती है. बाग प्रिंटेड कॉटन अपने हल्के और जैविक एहसास के लिए गर्मियों के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय है. बाज़ारों में बाग़ प्रिंटेड स्टोल, साड़ियां, दुपट्टे, बेडशीट, पर्दे, कुशन कवर और टेबल रनर की काफी वेरायटी उपलब्ध है, जो इस कला की उत्कृष्टता और शुद्धता को दर्शाती है.
4. बटिक साड़ी – उज्जैन
उज्जैन से कुछ किलोमीटर की दूरी पर भेरूगढ़ की छोटी बस्ती है, जिसे बटिक प्रिंटिंग के केंद्र के रूप में जाना जाता है. इस प्राचीन शिल्प में कपड़े के हिस्सों को गर्म मोम से कारीगरी करना शामिल है, जिसे फिर रंगा जाता है, जिससे एक अनूठा दरार वाली डिजाइन बनती है.
भेरूगढ़ और उज्जैन की गलियां में आप बटिक को बनते हुए देख सकते है. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता वसीम चिप्पा जैसे कारीगर पारंपरिक और समकालीन दोनों तकनीकों के बारे में बताते हैं पारंपरिक बटिक में केवल 3-4 रंगों का उपयोग किया जाता है, लेकिन इंडोनेशियाई बटिक कला 9-10 रंगों के साथ प्रयोग करने की अनुमति देती है. आगंतुक उत्तम बटिक साड़ियां, सूट सामग्री और बेडशीट खरीद सकते हैं, जो उपहार के लिए एकदम सही हैं.
5. जरी-जरदोजी, भोपाल
भोपाल, जो अपने समृद्ध इतिहास और शाही वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जरी-जरदोजी के अपने प्राचीन शिल्प के लिए भी जाना जाता है. इस कला में रेशमी मुलायम कपड़े पर जरी के धागे और मोतियों का की बुनाई के डिजाइन और सजावटी काम शामिल है.
भोपाल की बेगमों ने इस शिल्प को बढ़ावा दिया, और कारीगरों को सुंदर कलाकृतियां बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.
राजकुमारियां अपने निजी सामान के लिए जरी-जरदोजी बटुआ (छोटे बैग) का इस्तेमाल करती थीं. आज भी जरी-जरदोजी लोकप्रिय है, और कारीगर आज भी इस शिल्प का अभ्यास जारी रखते हैं. पुराने शहर के बाज़ार का चौकबाजार जरी-जरदोजी दुपट्टों, साड़ियों और लहंगों का खजाना है. आगंतुक कारीगरों से कस्टम पीस भी मांग सकते हैं.
जीआई टैग
मध्य प्रदेश की समृद्ध कपड़ा विरासत किसी की नजर से नहीं बची है. चंदेरी और महेश्वर की पारंपरिक बुनाई तकनीक और अनोखे शिल्प को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग भी मिले हैं, जो उनकी अनूठी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा और पहचान करते हैं. ये जीआई टैग यह सुनिश्चित करते हैं कि पारंपरिक ज्ञान और कौशल को संरक्षित और मनाया जाए, जिससे इन शिल्पों की प्रामाणिकता बनी रहे.
मध्य प्रदेश में ये सभी स्थान इतिहास और संस्कृति से भरपूर एक अनूठा खरीदारी का अनुभव प्रदान करते हैं. चंदेरी की भव्यता से लेकर जरी-जरदोजी की जटिल कलात्मकता तक, मध्य प्रदेश की साड़ियां इस क्षेत्र की समृद्ध कपड़ा विरासत का प्रमाण हैं. आगंतुक न केवल यहां की सुंदरता बल्कि विरासत भी अपने साथ वापस ले जा सकते है.
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