Northeast India: प्रकृति ने अरुणाचल प्रदेश को अपने हाथों से सजाया और संवारा है. इस राज्य के पश्चिम कामेंग जिले में चारों ओर बर्फीले पहाड़ से घिरा व कामेंग नदी घाटी में कम ऊंचाई पर स्थित दिरांग पर बौद्ध धर्म और मोनपा संस्कृति का खासा प्रभाव दिखता है.
दिरांग नाम की दिलचस्प कहानी
दिरांग शहर के नामकरण की कथा भी दिरांग की तरह दिलचस्प है. माना जाता है कि प्राचीन काल में एक महान संत ऊंची-ऊंची पहाड़ियों और प्राकृतिक आपदाओं को पार करते हुए जब यहां पहुंचे तो यहां के मनमोहक दृश्य और खुशनुमा मौसम को देखकर बरबस ही उनके मुख से निकल पड़ा ‘दि-रांग’. स्थानीय भाषा में इसका अर्थ होता है ‘हां यही है… वह स्थान’. बोमडिला से तवांग जाते समय बीच में पड़ने वाले इस मनोरम स्थल पर रुक कर कई स्थानों को देखा जा सकता है.
दिरांग दजोंग की वास्तुकला दर्शनीय
यह एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है, जहां कि वास्तुकला बेजोड़ है. स्थानीय भाषा में दजोंग का अर्थ होता है किला. 17वीं शताब्दी में इस स्थान पर एक किला बनवा गया था, जो अब खंडहर के रूप में मौजूद है. प्रतिकूल मौसम से बचने के लिए यहां के आदिवासी अपने घर को कुछ खास डिजाइन से बनाते हैं. इनके घरों के नींव पत्थर के होते हैं, पर दीवारें और छत लकड़ी के बने होते हैं, जो अपनेआप में अनोखा होता है. कहा जाता है कि यहां कुछ घर 500 वर्ष से भी पुराने हैं.
जा सकते हैं राष्ट्रीय याक शोध केंद्र
याक इस क्षेत्र का प्रमुख पशु है और यहां के लोगों के दैनिक जीवन का संबल भी. राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान द्वारा स्थापित यह शोध केंद्र याक की प्रजाति, याक के दूध और दूध से बने उत्पादों के गुणवत्ता के विकास के लिए काम करता है. दिरांग से लगभग 30 किमी दूर इस जगह को परमिट बनवा कर देखा जा सकता है.
गरम पानी का झरना मिटा देगा थकान
दिरांग से तवांग जाने के रास्ते में गर्म पानी का झरना मिलता है, जो पर्यटन के अलावा एक धार्मिक स्थल के रूप में भी जाना जाता है. पास की पहाड़ियों से बह कर आते हुए इस सल्फरयुक्त पानी में स्नान करने से न केवल रास्ते की सारी थकान दूर हो जाती है, बल्कि त्वचा संबंधी बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है.
यहां का आध्यत्मिक केंद्र काल चक्र गोंपा
बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए दिरांग घाटी की सबसे पवित्र जगह काल चक्र गोंपा मानी जाती है. यहां लोग आध्यात्मिक ज्ञान और शांति के लिए आते हैं. यह गोंपा (बौद्ध मठ) दिरांग से थोड़ा ऊपर एक गांव में है, जो 500 वर्ष से भी पुराना है. बौद्ध धर्म और यहां की संस्कृति समझने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग
भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित निमास पर्वतारोहण, स्कूबा डाइविंग, वाटर राफ्टिंग जैसे रोमांचक खेलों में सर्टिफिकेट कोर्स किया जा सकता है. इसके साथ यहां आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के प्रशिक्षित ऑफिसर्स कम शुल्क (फीस) पर प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी देते हैं.
सांगती वैली में देख सकते हैं प्रवासी पक्षी
पूर्वी हिमालय की पहाड़ियों, जंगलों और सर्पीली नदियों से घिरे सांगती वैली में प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के साथ-साथ दूरबीन की सहायता से यहां के वनस्पतियों और पक्षियों के सौंदर्य को निहारा जा सकता है. नवंबर-दिसंबर के महीने में चीन से काली गर्दन वाले प्रवासी सारस आ जाते हैं, जो इस जगह को और भी रोचक बना देते हैं. स्थानीय भाषा में इन्हें ‘तुंग-तुंग-का-उक’ पुकारा जाता है.
दिरांग को लेकर कुछ अन्य जरूरी बातें
- ज्योतिनगर और बुशथंका, दिरांग के प्रमुख बाजार हैं. यहां से बौद्ध धर्म से जुड़ी वस्तुओं की खरीदारी की जा सकती है.
- थुक्पा, बैंबू-शूट, पिका-पिला (ड्राइ मीट और किंग चिली से बना चटपटा अचार) आदि व्यंजन ट्राइ किया जा सकता है.