Panch Kailash Yatra : इस दुनिया में पांच कैलाश की उपस्थिति मानी जाती है, जिनका शिव भक्तों में विशेष महत्व है. ये पंच कैलाश हैं कैलाश पर्वत, आदि कैलाश, मणिमहेश, श्रीखंड महादेव और किन्नर कैलाश. शिव भक्ति के मास सावन में जानिये इन पंच कैलाश के बारे में-
कैलाश पर्वत
भगवान शंकर के निवास स्थान के तौर पर प्रसिद्ध कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित है. पांच कैलाश पर्वतों में यह 6638 मीटर की ऊंचाई के साथ सबसे ऊंचा है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने यहां पर लंबे समय तक निवास किया. शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग अध्याय है. पौराणिक मान्यता है कि इसी के पास कुबेर की नगरी है. कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है. कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील और रक्षास्थल स्थित हैं. कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6600 मीटर से अधिक है, जो दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है, लेकिन आज तक कोई कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है. कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जानेवाले सभी श्रद्धालु दूर से ही कैलाश पर्वत के चरण छूते हैं. कैलाश मानसरोवर दुनिया की सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक है. यहां जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराना होता है. कैलाश यात्रा का आयोजन भारत सरकार का विदेश मंत्रालय हर साल जून से सितंबर के दौरान दो अलग-अलग मार्गों – लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) से करता है.
आदि कैलाश
आदि कैलाश, जिसे छोटा कैलाश और शिव कैलाश भी कहते हैं, भारत-तिब्बत सीमा के बिलकुल पास भारतीय सीमा क्षेत्र के भीतर स्थित है. आदि कैलाश को कैलाश पर्वत की एक प्रतिकृति के रूप में जाना जाता है. इसकी ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 5,945 मीटर है. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि शंकर जी जब बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आये थे, तब उन्होंने आदि कैलाश पर अपना पड़ाव डाला था. यह शिव भक्तों का एक लोकप्रिय तीर्थ है. कैलाश मानसरोवर की भांति आदि कैलाश की तलहटी में भी सरोवर है, इसमें कैलाश की छवि दिखती है. सरोवर के किनारे ही शिव और पार्वती का मंदिर है. साधु-सन्यासी इसकी यात्रा प्राचीन समय से करते रहे हैं, अब आम लोग भी आदि कैलाश के दर्शन के लिए जाते हैं. उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ के जौलिंगकोंग में स्थित आदि कैलाश जाने के लिए धारचूला के एसडीएम से इनर लाइन परमिट बनवाना होता है.
किन्नर कैलाश
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित है. इसकी ऊंचाई लगभग 6050 मीटर है. पौराणिक मान्यता के अनुसार किन्नर कैलाश के पास देवी पार्वती द्वारा निर्मित एक सरोवर है, जिसे उन्होंने पूजा के लिए बनाया था. इसे पार्वती सरोवर के नाम से जाना जाता है. इस स्थान को भगवान शिव और देवी पार्वती का मिलन स्थल भी माना जाता है. स्थानीय लोगों के अनुसार इस पर्वत की चोटी पर एक पक्षियों का जोड़ा रहता है. लोग इन पक्षियों को माता पार्वती और भगवान शिव मानते हैं. यहां सर्दियों में बहुत बर्फबारी होती है लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से किन्नर कैलाश कभी बर्फ से नहीं ढकता. यहां प्राकृतिक रूप से उगनेवाले ब्रह्मकमल के हजारों पौधे देखे जा सकते हैं. किन्नर कैलाश पर्वत पर मौजूद प्राकृतिक शिवलिंग दिन में कई बार अपना रंग बदलता है. इस शिवलिंग की ऊंचाई 40 फीट और चौढ़ाई 16 फीट है. किन्नर कैलाश के लिए किन्नौर जिले से सात किलोमीटर दूर पोवरी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गांव से होकर 24 घंटे की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती है.
मणिमहेश कैलाश
मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित है. इसकी ऊंचाई लगभग 5653 मीटर है. हिमालय की धौलाधार, पांगी और जांस्कर श्रृंखलाओं से घिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है. मणिमहेश कैलाश के समीप मणिमहेश झील है, जो कि मानसरोवर झील के समानांतर ऊंचाई पर है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह के पूर्व इस पर्वत को बनाया था. माना जाता है कि यह भगवान शिव के निवास स्थलों में से एक है और भगवान शिव अपनी पत्नी के साथ अक्सर यहां घूमते हैं. श्री कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) से भाद्रपद शुक्लअष्टमी तक लाखों श्रद्धालु पवित्र मणिमहेश झील में स्नान के बाद कैलाशपर्वत के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. मणिमहेश विभिन्न मार्गों से जा सकते हैं. लाहौल-स्पीति की तरफ से कुगति पास यहां की यात्रा शुरू होती है. कांगड़ा और मंडी से कुछ लोग कवारसी या जलसू पास के माध्यम से जाते हैं. सबसे आसान मार्ग चंबा से है, जो भरमौर से होकर जाता है
श्रीखंड कैलाश
श्रीखंड कैलाश हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 5227 मीटर है. पौराणिक मान्यता अनुसार यहीं पर भगवान विष्णु ने शिवजी से वरदान प्राप्त भस्मासुर को नृत्य के लिए राजी किया था. नृत्य करते करते उसने अपना हाथ अपने ही सिर पर रख लिया और वह भस्म हो गया था. श्रीखंड महादेव तक पहुंचने का रास्ता सबसे दुर्गम और मुश्किल माना जाता है. शिमला से रामपुर और रामपुल से निरमंड, निरमंड से बागीपुल और बागीपुल से जाओं, जाओं से श्रीखंड चोटी तक की यात्रा की जाती है. इसमें 35 किलोमीटर का कठिन ट्रैक भी शामिल है.