अकबरपुर. भाई-बहनों के बीच अटूट प्रेम और स्नेह के प्रतिक करमा व्रत को लेकर महिलाओं में भारी उत्साह है. भाई-बहनों के पवित्र नाता के अलावा यह पर्व प्रकृति से भी जुड़ा हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है. सात दिवसीय इस पर्व को लेकर महिलाएं उत्साह से लबरेज होकर जावा डाली के चारों ओर घूम-घूम कर करमा पर्व पर आधारित गीत के साथ नृत्य में मशगूल है. करमा लोक गीत की मधुर ध्वनि से वातावरण गूंज रहा है. जावा डाली में सात प्रकार के अनाज से उगाये गये पौधे प्रकृति का द्योतक है. करमा पर्व के मौके पर बहनें अपने ससुराल से भाई के घर पहुंच गयी है. बताया जाता है कि बहनें अपने-अपने भाइयों की दीर्घायु होने की कामना को लेकर यह पर्व पूरी निष्ठा के साथ मनाती है और करम एकादशी का व्रत धारण कर चार प्रहर जागरण भी करती हैं. करम एकादशी व्रत धारण करने के एक दिन पूर्व यानी की शुक्रवार को महिलाएं नहाय खाय के साथ ही इस पर्व को कर रही है. महिलाएं एकादशी व्रत को लेकर नियम संयम के साथ खानपान पर विशेष परहेज करती हैं. दूसरे दिन यानी शनिवार को करम एकादशी का व्रत धारण कर महिलाएं करम डाली की विधिवत पूजा अर्चना की. रातभर जागरण कर करम डाली को पूजा गया. कर्म एकादशी की रात जागरण के मौके पर जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. पूजा स्थल पर साफ सफाई और व्यापक रोशनी का विशेष इंतजाम भी किया गया है. गांव की महिलाएं एक साथ मिलकर करम डाली की पूजा-अर्चना करती हैं. इससे यह पर्व आपसी प्रेम और एकता का परिचायक भी बन जाता है. ग्रामीण इलाके में महिलाएं रातभर डीजे की धुन पर नाचती गाती हैं और करमा और धरमा दोनों भाइयों पर आधारित कथा का भी श्रवण करती हैं.
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