Lucknow News: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की पुण्यतिथि पर बुधवार को भाजपा सहित अन्य दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. इस मौके पर अटल के संसदीय क्षेत्र रहे लखनऊ में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है.
यूं तो अटल बिहारी वाजपेयी पूरे देश में लोकप्रिय थे, लेकिन, लखनऊ से उनका खास रिश्ता था. लखनऊ न सिर्फ उनकी सियासी कर्मभूमि बना, बल्कि उनके दिल के बेहद करीब रहा. लखनऊवासियों ने उन्हें संसद भेजकर प्रधानमंत्री बनाने का काम किया. अटल विहारी वाजपेयी लखनऊ में जब कभी किसी कार्यक्रम में अतिथि बनाए जाते थे तो उनकी बात यहीं से शुरू होती थी कि मैं लखनऊ का था, हूं और लखनऊ का ही रहूंगा. इतना कहने के साथ वह मेहमान के बजाय मेजबान के रूप में अपनी भूमिका तय कर लेते थे.
हालांकि राजनीति के शुरुआती दिनों में लखनऊ के लोगों के साथ अटल जी को नहीं भाया. इसे लेकर वह 1991 में जब लोकसभा चुनाव के यहां से उम्मीदवार हुए तो बोले, ‘आप लोगों ने क्या सोचा था, मुझसे पीछा छूट जाएगा तो यह होने वाला नहीं. मेरो मन अनत कहां सुख पावे, लखनऊ मेरा घर है. इतनी आसानी से मुझसे रिश्ता नहीं तोड़ सकते. मेरा नाम भी अटल है. देखता हूं कि कब तक मुझे सांसद नहीं बनाओगे.’ इस चुनाव में अटल सांसद चुन लिए गए.
इसके बाद एक बार अटलजी पर लखनऊवासियों ने जो प्यार बरसाया, अंतिम समय तक वह बरकरार रहा. अटल बिहारी वाजपेयी 1952 में पहली बार लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 1962 में भी वह मैदान में उतरे लेकिन उन्हें फिर से हार का सामना करना पड़ा.
1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया था. लखनऊ और मथुरा से वह चुनाव हार गये थे, लेकिन बलरामपुर ने उन्हें अपना सांसद चुना था. 1962 में एक बार फिर लखनऊ से अटल जी ने अपना भाग्य आजमाया, लेकिन उन्हें फिर हार मिली. लेकिन वह राज्यसभा के सदस्य चुने गये. 1967 में एक बार फिर वह लखनऊ से लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भी यहां की जनता ने उन्हें नकार दिया. लेकिन बाद में इसी वर्ष हुए उपचुनाव में वह लखनऊ से जीतकर संसद पहुंचे थे.
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1971 में अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर सीट से चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1977 और 1980 में वह दिल्ली से लोकसभा के सदस्य बने. 1984 में अटल जी ने ग्वालियर से बार फिर चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के माधवराव सिंधिया ने उन्हें हरा दिया था. 1991 में अटल जी ने लखनऊ और विदिशा से चुनाव लड़ा. वह दोनों ही जगह से जीते लेकिन उन्होंने विदिशा सीट को छोड़ दिया और लखनऊ को अपने पास रखा. इस जीत के बाद लखनऊ से उनका जो नाता जुड़ा वह अंतिम समय तक बना रहा.
1996 में उन्होंने लखनऊ और गांधीनगर से एक साथ चुनाव लड़ा. वह दोनों जगह से जीते, लेकिन लखनऊ सीट को बरकरार रखा. 1998 और 1999 में भी वह लखनऊ से चुनाव जीते. 2004 में भी उन्होंने लखनऊ से चुनाव जीता था. 1996 से 2004 तक वह तीन बार प्रधानमंत्री बने. हर बार उन्हें लखनऊ ने संसद भेजा था.
अमृतलाल नागर का चकल्लस कार्यक्रम हो या फिर राम नवमी का आयोजन. अटल बिहार वाजपेयी उसमें अक्सर नजर आते थे. मलिन बस्तियों को विकास से जोड़ने वाले अटल बिहारी वाजपेयी पुराने शहर को कभी नहीं भूले. पुराने लखनऊ से उनका खासा नाता था.
जनसंघ के समय से लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के इस शहर में कई लोगों के घरों में ठिकाने थे, जहां वह अक्सर चर्चा और कार्यक्रमों में शामिल होते थे. अटल बिहार वाजपेयी लखनऊ आएं और यहां के खान-पान का स्वाद न लें, ऐसा कभी नहीं होता था. करीबियों के बीच अटल जी को विभिन्न तरह की चाट परोसी जाती थी. वहीं यहां का मलाई पान उन्हें बेहद पसंद था. चौक के बानवाली गली में रामआसरे की पुरानी मिठाई की दुकान से ही उनके लिए मलाई पान दिल्ली भेजा जाता था.
अटल बिहारी वाजपेयी ने 25 अप्रैल 2007 को लखनऊ के कपूरथला चौराहे पर भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में आखिरी चुनावी सभा को संबोधित किया था और उसके बाद उनका लखनऊ से नाता टूट गया था. उन्होंने नगर निगम चुनाव को लेकर सभा में कहा था कि राजपाट तो कांग्रेस को दे दिया है हमें झाड़ू ही दे दो. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में वह वोट डालने भी लखनऊ नहीं आ पाए थे. नवल किशोर रोड पर विष्णु नारायण इंटर कॉलेज उनका मतदान केंद्र था.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के गढ़ लखनऊ को 30 साल से अधिक समय से कोई भी राजनीतिक दल भेद नहीं सका है. लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव हो या फिर नगर निगम इलेक्शन, भाजपा आज भी अटल की तैयार की गई जमीन पर विरोधियों को चुनाव दर चुनाव मात देती आ रही है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ ने जो रिश्ता कायम किया, उसी की नतीजा है कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं. उनकी तैयार की गई जमीन से आज भी भाजपा यहां फसल काट रही है. समय के साथ भाजपा लखनऊ में लगातार मजबूत होती गई है. 2014 में राजनाथ सिंह ने यहां से जीत हासिल की और वर्तमान में भी वह यहां से सांसद हैं.
लखनऊ को आज भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है. वह लखनऊ से पांच बार सांसद चुने गए. अटल से पहले लखनऊ में भाजपा को कभी जीत नसीब नहीं हुई. ये कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. हालांकि 1989 के चुनाव में जनता दल के मांधाता सिंह ने दाऊजी को हराकर जीत दर्ज की थी.
इससे पहले 1980 और 1984 के चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल यहां से सांसद रहीं. 1991 में अटल बिहारी वाजपेई के कदम रखने के बाद भाजपा लगातार मजबूत होती चली गई. खुद अटल बिहारी वाजपेई अपने ही बनाए रिकॉर्ड को तोड़ते रहे. 1991 में जहां उन्होंने 117303 मतों से जीत दर्ज की, वहीं 1996 के चुनाव में उन्होंने अपने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया. इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राज बब्बर को 118671 मतों से हराया. इसके बाद 1998 के चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के ही मुजफ्फर अली को 216000 से ज्यादा मतों से हराकर जीत हासिल की.
1999 के चुनाव में कांग्रेस के डॉक्टर कर्ण सिंह ने उन्हें कड़ी चुनौती दी. लेकिन, वह भी हार गए. यह चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी ने 130000 से ज्यादा मतों से जीता. 2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई ने फिर अपने ही सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इस चुनाव में उन्होंने सपा की मधु गुप्ता को 218000 से ज्यादा मतों से हराया.
खास बात है कि लखनऊ से अटल के गहरे रिश्ते का फायदा भाजपा को केवल लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही नहीं बल्कि नगर निगम के चुनाव में भी आज तक मिलता आ रहा है. लखनऊ के महापौर की सीट 25 साल से अधिक समय से भाजपा के कब्जे में है. लखनऊ से बीजेपी के टिकट पर डॉ. एससी राय दो बार महापौर चुने गए. उसके बाद दो बार डॉक्टर दिनेश शर्मा भाजपा के टिकट पर रिकॉर्ड मतों से जीते. इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने महापौर की सीट पर कब्जा बरकार रखा.
तब डॉ. एससी राय और डॉ. दिनेश शर्मा की तुलना में कमजोर मानी जा रही संयुक्ता भाटिया को भी यहां की जनता ने महापौर बनाया. संयुक्ता भाटिया ने 171000 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की. इसके बाद 2023 में भाजपा की सुषमा खर्कवाल ने लखनऊ के मेयर पद पर जीत हासिल की.
लोकसभा चुनाव की बात करें तो अटल बिहारी वाजपेयी के बाद उनके करीबी लालजी टंडन 2009 में लखनऊ से सांसद बने. टंडन अटल का खड़ाऊ लेकर मैदान में उतरे थे. तब स्थितियां एकतरफा नहीं थी. उनके खिलाफ कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी और बसपा ने अखिलेश दास को मैदान में उतारा था. अखिलेश दास ने चुनाव को जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया था, हालांकि तब भी अटलजी के नाम पर लालजी टंडन ने करीब 41000 मतों से जीत हासिल की.
इसके बाद राजनाथ सिंह ने लखनऊ को अपना संसदीय क्षेत्र बनाया और 2014 लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. राजनाथ सिंह को 2014 के चुनाव में 561106 वोट मिले, उनकी विरोधी कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को केवल 288357 वोट मिले. इसी तरह राजनाथ सिंह ने 272749 वोटों से जीत दर्ज साबित कर दिया कि अटल का गढ़ कमजोर नहीं बल्कि और मजबूत हुआ है. इसक बाद 2019 में भी अटल की कर्मभूमि पर भाजपा की जीत का सिलसिला जारी रहा. तब राजनाथ सिंह ने 633026 वोट पाकर जीत दर्ज की. सपा की पूनम शत्रुघ्न सिन्हा को 285724 वोट मिले.