BankeBihari Mandir: वृंदावन में शरद पूर्णिमा पर बांकेबिहारी के दर्शन का पूरे साल श्रद्धालुओं का इंतजार रहता है. इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों से लोग मथुरा वृंदावन पहुंचते हैं. शरद पूर्णिमा पर ठाकुर बांकेबिहारी महारास की मुद्रा में चंद्रमा की चांदनी में मुरली बजाते हुए भक्तों को दर्शन देते हैं. ऐसा मौका सिर्फ शरद पूर्णिमा पर ही श्रद्धालुओं को मिलता है. लेकिन, इस बार चंद्रग्रहण के कारण श्रद्धालुओं को चांदनी रात में ठाकुरजी के ये अद्भुत दर्शन नहीं सकेंगे. अब उन्हें अगली शरद पूर्णिमा की रात का इंतजार करना होगा. हालांकि इस बार बांकेबिहारी चंद्रमा की चांदनी के बजाय सूर्य की रोशनी में भक्तों को मुरली बजाते हुए दर्शन देंगे. आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. द्वापर युग में शरद पूर्णिमा की रात में ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास किया था. मान्यता है शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण गोपियों के साथ वृंदावन के निधिवन में रासलीला रचाते हैं. ये उनका बेहद प्रिय दिन होता है. दरअसल शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस रात चंद्रमा की रोशनी से अमृत बरसता है. इस वजह से ठाकुर बांकेबिहारी समेत सभी मंदिरों में शरद पूर्णिमा की रात ठाकुरजी महरास की मुद्रा में वंशी बजाते हुए चंद्रमा की रोशनी में भक्तों को दर्शन देते हैं. इस बार चंद्रग्रहण के कारण श्रद्धालुओं को इस दिव्य दर्शन का लाभ नहीं मिल सकेगा.
शरद पूर्णिमा पर इस साल का आखिरी ग्रहण लगेगा. यह ग्रहण भारत में दिखाई देगा. इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल भी माना जाएगा. सूतक काल के शुरू होते ही पूजा पाठ बंद कर दिए जाते हैं. श्रद्धालुओं का मंदिरों में प्रवेश और पूजन निषेध होता है. इसलिए देश के सभी मंदिरों सहित बांकेबिहारी मंदिर में भी पूजा का समय बदल जाएगा. दरअसल शरद पूर्णिमा पर साल में एक ही दिन ठाकुर बांकेबिहारी मुरली बजाते हुए महारास की मुद्रा में चंद्रमा की धवल चांदनी में भक्तों को दर्शन देते हैं. इसका भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं. इस बार 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा पर चंद्रग्रहण के कारण ऐसा नहीं होगा. 28 अक्तूबर को दोपहर बाद 3.30 बजे बांकेबिहारी मंदिर के पट बंद हो जाएंगे. ऐसे में श्रद्धालुओं की चंद्रमा की धवल चांदनी में बांकेबिहारी के दर्शन करने की इच्छा पूरी नहीं हो सकेगी.
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शरद पूर्णिमा पर ठाकुर बांकेबिहारी चंद्रमा की धवल चांदनी में श्वेत पोशाक में महारास की मुद्रा में विराजित करके दर्शन देते हैं. ठाकुरजी के सामने खीर रखी जाती है, इस खीर पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा की रोशनी जब खीर पर पड़ती है, तो अमृत समान हो जाती है. आयुर्वेद में भी इसके लाभ बताए गए हैं. चंद्रमा की रोशनी में रखी गई कई रोगों को दूर करने में मददगार होती है. इस बार शरद पूर्णिमा की रात में खीर भी नहीं रखी जाएगी. मंदिर प्रबंधक मुनीश शर्मा के मुताबिक, चंद्रग्रहण के चलते मंदिर के दर्शन समय में परिवर्तन किया गया है. ऐसे में दोपहर 3.30 बजे तक ही आराध्य महारास की मुद्रा में मुरली बजाते हुए भक्तों को दर्शन देंगे.
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शरद पूर्णिमा पर 28 अक्तूबर को सुबह राजभोग सेवा के दर्शन तय समय 7.45 बजे खुलेंगे.
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दोपहर को एक घंटे पहले 10.55 बजे राजभोग आरती के बाद 11 बजे मंदिर के पट बंद हो जाएंगे. सामान्य दिनों में दोपहर को 12 बजे मंदिर के पट बंद हो रहे हैं.
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इसी तरह सायंकालीन शयनभोग सेवा के दर्शन दोपहर 12.30 बजे खुलेंगे, जो सामान्य दिनों में शाम 4.30 बजे खुलते हैं.
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दोपहर बाद 3.25 बजे शयन आरती करने के साथ 3.30 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाएंगे.
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सूतक काल के कारण दोपहर बाद 3.30 बजे ही ठाकुरजी के पट बंद हो जाएंगे.
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इसके बाद 29 अक्तूबर को नियमित समय 7.45 बजे ही दर्शन खुलेंगे.