Chandrayaan-3 Moon Landing: चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सॉफ्ट लैंडिंग होने के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इतिहास रच दिया और एक नए युग की शुरुआत हो गई. इसके बाद से यूपी में जश्न का माहौल है, क्योंकि इस मिशन में यूपी के वैज्ञानिकों ने भी अहम भूमिका अदा की है. इन लोगों के घर बधाई देने वालों की भीड़ लगी हुई है. वहीं इस ऐतिहासिक पल के यूपी के लगभग दो करोड़ बच्चे भी गवाह बने, जिन्होंने अपने स्कूलों में इसका लाइव प्रसारण देखा.
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के लैंडर मॉड्यूल की ‘सॉफ्ट लैंडिग’ के बाद पूरी दुनिया ने भारत के वैज्ञानिकों को सलाम किया है. यह मॉड्यूल लैंडर ‘विक्रम’ (Vikram Lander) और 26 किलोग्राम वजनी रोवर ‘प्रज्ञान’ (Pragyan Rover) से लैस है, जिसने चांद की सतह को छुआ. विक्रम के सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद अब इसका रोवर ‘प्रज्ञान’ भी मॉड्यूल से निकलकर चांद पर उतर आया है. अंतरिक्ष यान ने रैंप पर लैंडर से बाहर निकलते रोवर की पहली तस्वीर भेजी है.
रोवर के विभिन्न कार्यों में चंद्रमा की सतह के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए वहां प्रयोग करना भी शामिल है. इसरो के मुताबिक, लैंडर और रोवर में पांच पेलोड हैं जिन्हें लैंडर मॉड्यूल के भीतर रखा गया है. चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए रोवर की तैनाती चंद्र अभियानों में नई ऊंचाइयां हासिल करेगी. चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर के पास एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर का समय होगा. हालांकि, वैज्ञानिकों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है.
Also Read: UP Cricket T20 League: ग्रीन पार्क में एक बार ही फ्लड लाइट में मिलेगा अभ्यास का मौका, प्रतिदिन होंगे दो मैच
चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लाइव प्रसारण के लिए यूपी में पहली बार शाम को स्कूल खोले गए. चंद्रयान-3 के लाइव प्रसारण के लिए प्रोजेक्टर, टीवी की व्यवस्था की गई. वहीं स्मार्ट क्लास व लैपटॉप पर भी इसे बच्चों को दिखाने की व्यवस्था की गई थी. मिशन के कामयाब होने पर बच्चों और शिक्षकों में भी काफी उत्साह दिखा.
लखनऊ विश्वविद्यालय में खगोल शास्त्र विषय की शिक्षक डॉ. अलका मिश्रा के मुताबिक चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद अब वहां की जलवायु, मिट्टी, पानी और जीवन की संभावना का पता चल सकेगा. इसके साथ ही चंद्रयान-3 की सफलता से भारत तकनीकी रूप से आगे बढ़ेगा, क्योंकि बेहद कम खर्च में इसरो ने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है.
खास बात है कि स्पेसक्राफ्ट में लगे सभी पेलोड्स भारत में बने हैं. हमारे डाटा का दूसरे देश इस्तेमाल कर सकेंगे, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था में भी इजाफा होगा. इसके साथ ही इस कामयाबी से पूरे विश्व में भारत तकनीकी क्षेत्र में प्रभुत्व जमा सकेगा. इसके माध्यम से चंद्रमा के भूगर्भ, पृथ्वी और चंद्रमा के बीच के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, उसके भूरूप और भूकंपित सतह का अध्ययन करने में काफी मदद मिलेगी.
चंद्रयान-3 की कामयाबी के पीछे यूपी के वैज्ञानिकों की भी अहम भूमिका रही. इनमें रॉकेट वुमेन कही जाने वाली लखनऊ की रितु करिधाल की यूपी के हर घर में चर्चा हो रही है. रितु करिधाल चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर थीं. उनके अनुभव को देखते हुए 2020 में ही इसरो ने ये तय कर दिया था कि चंद्रयान-3 का मिशन भी रितु के ही हाथों में होगा और इसरो का यह निर्णय बिलुकल सही साबित हुआ.
रितु करिधाल लखनऊ की हैं. लखनऊ स्थित राजाजीपुरम् में उनका आवास है. रितु की शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के सेंट एगनिस स्कूल में हुई थी. इसके बाद उन्होंने नवयुग कन्या विद्यालय से पढ़ाई की. लखनऊ विश्वविद्यालय में भौतिकी से एमएससी करने के बाद रितु ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग से एमटेक करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूज ऑफ साइंस बेंगलुरु का रुख किया. रितु करिधाल ने वर्ष 1997 में इसरो जॉइन किया था. रितु करिधाल की पहली पोस्टिंग इसरों के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में दी गई.
इसके अलावा गाजीपुर जनपद के रेवतीपुर निवासी कमलेश शर्मा भी चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा रहे. मिशन की सफलता के बाद उनके परिजन बेहद उत्साहित हैं. इसरो में वैज्ञानिक कमलेश शर्मा के गाजीपुर स्थित पैतृक गांव रेवतीपुर सहित पूरे इलाके में बुधवार रात तक जश्न का माहौल देखने को मिला.
मिशन की कामयाबी के लिए लोग जगह-जगह हवन पूजन कर रहे थे. वैज्ञानिक कमलेश शर्मा इस मिशन के अन्य वैज्ञानिकों की टीम के साथ जुड़े हैं. इसके पहले वह 2014 में मिशन मंगलयान में चीफ कंट्रोलर की भूमिका निभा चुके हैं.
कुछ वर्ष पहले मिशन चंद्रयान-2 के लॉन्चिंग टीम में भी उन्होंने अहम भूमिका निभायी. 15 सितंबर 1986 को जन्मे कमलेश कुमार शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव पर जबकि हाईस्कूल और इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गाजीपुर जनपद से ही हुई.
इसके बाद उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और गणित विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद वर्ष 2008 में लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर उन्होंने रिकॉर्ड 10 गोल्ड मेडल हासिल किए. इसके अलावा नेट और गेट में भी सफलता हासिल की.
देश में वर्ष 2010 में इसरो (Indian Space Research Organisation) ने मैथमेटिक्स एक्सपर्ट का स्पेशल रिक्रूटमेंट किया. इसमें पूरे देश से सिर्फ 12 लोगों का चयन हुआ, जिसमें उत्तर प्रदेश के गाजीपुर निवासी कमलेश शर्मा भी शामिल थे. उन्होंने 12 अप्रैल 2010 को इसरो ज्वाइन किया. इसरो के कई सैटेलाइट मिशन में भाग लेकर कमलेश शर्मा ने अपने कौशल और प्रतिभा का परिचय दिया.
इनमें मार्स ऑर्बिटल मिशन (मंगलयान) कार्टोसेट- 1, ओशनसैट- 2, हैमसैट, कार्टोसेट- 2ए, इंडिया और फ्रांस के ज्वांइट वेंचर सेटेलाइट के सफल प्रक्षेपण में उन्होंने अहम भूमिका निभायी. इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC) में मंगलयान की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमलेश शर्मा की प्रशंसा भी की थी.
कमलेश के माता-पिता पूरे परिवार के साथ लखनऊ में हैं. मिशन की कामयाबी के बाद उन्हें बधाई देने वालों की भीड़ जुटी रही. वहीं गाजीपुर जनपद के लोगों ने भी कमलेश शर्मा को लेकर गर्व होने की बात कही.
इस मिशन में मीरजापुर के युवा वैज्ञानिक आलोक कुमार पांडेय की भी अहम भूमिका रही. चंद्रमा की धरती पर चंद्रयान-3 को उतारने के साथ ही सिग्नल के माध्यम से संपर्क स्थापित करने की जिम्मेदारी आलोक पांडेय पर ही थी. बुधवार शाम जैसे ही चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक लैंडिंग की तो वैज्ञानिक के घरों में जश्न शुरू हो गया. माता-पिता की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए.
पिता संतोष पांडेय ने पुत्र आलोक से फोन पर हुई बातचीत के बारे में बताया कि मिशन के सफल होने के लिए वह तीन दिनों से लांचिंग सेंटर में ही काम करते रहे, घर नहीं लौटे. सेना से सेवानिवृत्त संतोष पांडेय ने बताया कि बुधवार की सुबह बेटे का फोन आया. उसने मां विंध्यवासिनी को प्रणाम करने के बाद देवी मां और हम लोगों से आशीर्वाद मांगा. उन्होंने कहा कि इस मिशन के सफल होने की उन्हें बहुत खुशी है.
आलोक कुमार पांडेय मार्स मिशन 2014 में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उत्कृष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार पा चुके हैं. इसी प्रकार चंद्रयान दो की लांचिंग में महत्वपूर्ण भी निभा चुके हैं. उनकी टीम पिछले कई महीने से दिन रात इस मिशन में लगी हुई थी. मिशन की सफलता के बाद से ही आलोक के घर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा. लोगों ने उनके पिता संतोष पांडेय को मिठाई खिलाकर उन्हें बधाई दी.
चंद्रयान-3 की सफल उड़न का उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में भी जश्न मनाया गया. फिरोजाबाद जनपद के टूंडला कस्बे में एक छोटे से गांव टीकरी के रहने वाले धर्मेंद्र प्रताप यादव भी इसरो की उस टीम में शामिल रहे, जो चंद्रयान 3 की उड़ान से जुड़ी हुई है. ऐसे में चंद्रयान 3 की कामयाबी पर इस गांव के लोगों में भी बहुत उत्साह दिखा.
धर्मेंद्र प्रताप सिंह के पिता का नाम शंभूदयाल यादव और मां का नाम कमला है, पिता पेशे से किसान है. धर्मेंद्र ने फिरोजाबाद के ही ब्रजराज सिंह इंटर कॉलेज से 12 तक पढ़ाई की है. शुरू से ही वो पढ़ने में बेहद होशियार थे. इसके बाद उन्होंने मथुरा के हिन्दुस्तान कॉलेज से बीटेक किया और फिर एमटेक की पढ़ाई जालंधर से की. इसके बाद से वह इसरो में 2011 से वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.