Independence Day 2023: भारत को गुलामी से मुक्त कराने के लिए यूं तो हजारों, लाखों देशभक्तों ने अपनी शहादत दी, मगर देवरिया जिला भी पीछे नहीं रहा. देवरिया के सरयू नदी तट पर स्थित बरहज को आजादी के दीवानों ने 14 अगस्त 1947 को ही आजाद करा दिया था. इससे खार खाए अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों पर गोलियां बरसा दी थीं, लेकिन गोली लगने के बाद भी स्वतंत्रता आंदोलन के दीवानों ने तिरंगा झुकने नहीं दिया था.
इसके बाद मौके पर मौजूद भीड़ उग्र हो गई थी और अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा था. शहीद पंडित विश्वनाथ मिश्र और जगन्नाथ मल्ल ने देश की आन-बान-शान तिरंगा झंडा को फहराकर बरहज को आजाद घोषित करते हुए अंग्रेजों का हौसला पस्त कर दिया था. इन रणबांकुरों की शहादत आज भी अविस्मरणीय है.
बरहज के सरयू नदी तट पर बसे कुरह परसियां गांव निवासी अमर शहीद पंडित विश्वनाथ मिश्र और बरौली गांव के जगन्नाथ मल्ल 25 वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेज कैप्टन मूर की गोली लगने से शहीद हो गए थे. शहीद विश्वनाथ मिश्र के बड़े भाई के पुत्र श्यामबिहारी मिश्र का कहना है कि हजारों की संख्या में भीड़ की रहनुमाई करते हुए दोनों लोगों ने झंडा फहराकर बरहज क्षेत्र को आजाद घोषित कर दिया था.
उन्होंने आगे बताया कि पंडित रामधारी सिंह दिनकर की कविता कलम आज उनकी जय बोल से प्रभावित होकर पंडित विश्वनाथ मिश्र ने आजादी की आग में अपनी आहुति दी थी. स्व. लक्ष्मी मिश्र की तीन संतानों में तीसरे नंबर के पुत्र विश्वनाथ कक्षा आठवीं की पढ़ाई के बाद देश सेवा में जुट गए थे.
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नंदना पश्चिमी वार्ड निवासी सगे भाई अनिल निषाद और सुधीर निषाद ने 2006 में पंडित विश्वनाथ मिश्र के परिजनों के साथ मिलकर शहीद स्मारक पर दीपदान कार्यक्रम की शुरुआत की थी. यह आज भी जारी है. 2007 में शहीदों के सम्मान और दीपदान कार्यक्रम में विशेष परिशिष्ट प्रकाशित किया गया था. जबकि कार्यक्रम की शुरुआत किए जाने पर सम्मानित भी किया था. उनका कहना है कि शहीद स्थली पर शुरुआती दौर में दो-चार, आज सैकड़ों की संख्या में लोग दीपदान में हिस्सा लेते हुए श्रद्धांजलि देते हैं.
देवरिया जिले के देशभक्त शहीद रामचंद्र विद्यार्थी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी. उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर, ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन’ में कूद गए थे. कहा जाता है कि आंदोलन में हिस्सा लेने के वक्त वे कक्षा 5 के छात्र थे. 14 अगस्त 1942 को वे घर से बिना बताए ही स्कूल से भागकर देवरिया पहुंच गए थे. उन्होंने कचहरी की छत पर लगा अंग्रेजों का यूनियन जैक फाड़ कर फेंक दिया था.
एक मासूम बच्चे का यह दुस्साहस देख अंग्रेजों ने विद्यार्थी पर धुआंधार गोलियां चलायीं. मगर आजादी का यह दीवाना गोलियों से छलनी होने के बावजूद भी, मां भारती के जय घोष के साथ तिरंगा फहराने में सफल हुआ और अंत में शहीद हो गया. 13 वर्ष की उम्र में देशभक्ति का ऐसा जज्बा पूरे विश्व के इतिहास में बिरला ही मिलता है.
रामचंद्र विद्यार्थी की शहादत की खबर पूरे जिले में फैल गई. तिरंगे में लपेट कर शहीद के पार्थिव शरीर को उनके गांव नौतन हथियागढ़ ले जाया गया. जहां छोटी गण्डक नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार हुआ. बताया जाता है कि 13 साल के इस मासूम शहीद का शव जिन जिन रास्तों से गुजरा उस रास्ते पर शहीद का अंतिम दर्शन करने के लिए लोगों का रेला उमड़ पड़ा. महिलाएं बच्चे और बुजुर्गों की कौन कहे नई नवेली दुल्हनें भी शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए घरों से बाहर निकल पड़ी थीं. इस घटना के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश के युवाओं में एक नया जोश पैदा हुआ और धधक रही स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला और तेज हो गई.
भारतीय इतिहास में सबसे कम उम्र के बलिदानी शहीद रामचंद्र विद्यार्थी का जन्म 1 अप्रैल 1929 को छोटी गंडक नदी के किनारे स्थित देवरिया तहसील के नौतन हथियागढ़ गांव में हुआ था. वह बसंतपुर धूसी स्थित स्कूल में कक्षा 5 के छात्र थे. अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्याचार की बातें सुनकर मासूम रामचंद्र विद्यार्थी का मन द्रवित हो जाता था. उनके पिता बाबूलाल प्रजापति व माता का नाम मोती रानी देवी था. उनके बाबा भर्दुल प्रजापति भी देश भक्त थे. इनका पुश्तैनी कारोबार मिट्टी का बर्तन बनाना था. जिस स्कूल में वह पढ़ते थे आज उस विद्यालय का नाम उनके नाम पर शहीद रामचन्द्र विद्यार्थी इंटर कालेज बसंतपुर धूसी किया गया है.
साल 1942 में गांधीजी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर पूरे देश भर के क्रांतिकारियों में उन्माद की लहर थी. देवरिया जिला इससे अछूता नहीं था. 14 अगस्त 1942 को गांधी जी के आह्वान पर देवरिया कचहरी परिसर में जिले भर के क्रांतिकारियों की सभा हो रही थी. सभा की जानकारी होने पर रामचंद्र विद्यार्थी घर से बिना बताए अपने सहपाठियों को साथ लेकर इस आंदोलन में हिस्सा लेने स्कूल से भागकर देवरिया आए थे.
अंग्रेज सैनिक भी इस आंदोलन को विफल करने के लिए पूरी मुस्तैदी से डटे थे. इसी दौरान सबकी नजरों से बचते हुए रामचंद्र विद्यार्थी कचहरी की छत पर चढ़ गए और वहां लगा ब्रिटिश हुकूमत का यूनियन जैक फाड़ कर फेंक दिया और भारत माता का जयघोष तथा इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए तिरंगा झंडा फहरा दिया.
13 साल के एक मासूम बालक की ऐसी हिम्मत और दुस्साहस देखकर उस वक्त का परगनाधिकारी उमराव सिंह आग बबूला हो गया. उसने अंग्रेज सैनिकों को आदेश देकर धुंआधार गोली चलवाई. लेकिन रामचन्द्र विद्यार्थी ने गोलियों की बौछार के बीच बिना डरे ही भारत माता का जयघोष करते हुए शान से तिरंगा फहराया और अंग्रेजों की गोलियों से छलनी होकर इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए शहीद हो गए. उनके शहादत की खबर चारों तरफ फैल गई. तिरंगे में लपेट कर उनका शव घर ले जाया गया. जहां उनके गांव के बगल में ही छोटी गंडक नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार हुआ. नदी के घाट पर भी मासूम शहीद को अंतिम विदाई देने भारी भीड़ उमड़ी थी.
देश आजाद होने के बाद 1949 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु शहीद के गांव नौतन हथियागढ़ आए. जहां उन्होंने विद्यार्थी के माता-पिता को चांदी की थाली और चांदी का गिलास देकर सम्मानित किया था. शहीद रामचंद्र विद्यार्थी के पैतृक गांव में उनकी प्रतिमा लगाई गई है. शहीद की याद में गांव के बच्चे उनकी प्रतिमा देखकर गर्व का अनुभव करते हैं. जिला मुख्यालय पर भी रामलीला मैदान में शहीद स्मारक बनाया गया है. जिस कचहरी पर लगा यूनियन जैक फाड़ कर उन्होंने तिरंगा फहराया था. वहां उनकी याद में एक विशाल पार्क और स्मारक भी बनाया जा रहा है. जिसका काम लगभग पूरा हो चुका है.