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यूपी के पहले ग्लास स्काईवॉक पर पर्यटक जल्द करेंगे रोमांच का अनुभव, धनुष-बाण के आकार और इस वजह से है खास

चित्रकूट में धनुष और बाण के आकार में बन रहे उत्तर प्रदेश के पहले ग्लास स्काईवॉक में खाई की ओर बाण की लंबाई 25 मीटर है, जबकि दोनों पिलर के बीच धनुष की चौड़ाई 35 मीटर है. पुल की भार क्षमता प्रति वर्ग मीटर में 500 किलोग्राम होगी.

Chitrakoot Glass Skywalk: भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में विंध्य पर्वत माला में स्थित तुलसी (शबरी) जल प्रपात पर उत्तर प्रदेश के पहले ग्लास स्काईवॉक पर पर्यटक जल्द चहलकदमी कर सकेंगे. ये देश का तीसरा ग्लास स्काईवॉक होगा. करीब 3.70 करोड़ की लागत से बन रहा यह स्काईवॉक भगवान राम के कोदंड यानी धनुष और बाण के आकार का बनाया जा रहा है. इस महीने इसका काम पूरा हो जाएगा. कांच का पुल पर चलते हुए लोग अपने कदमों के नीचे जब जमीन का देखेंगे तो उन्होंने रोमांच का अनुभव होगा.

ईको टूरिज्म का बनेगा बड़ा केंद्र

उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक आने वाले दिनों में यह ईको टूरिज्म का बहुत बड़ा केंद्र बनेगा. उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में यहां पर्यटक पहुंचेंगे. इसके लिए यहां पर रॉक व हर्बल गार्डन से साथ रेस्टोरेंट भी बनाए जाएंगे, जिससे पर्यटकों को सभी तरह की सुविधाएं मिल सकें. इस ग्लास स्काईवॉक ब्रिज का निर्माण उत्तर प्रदेश का वन महकमा और पर्यटन विभाग की ओर से कराया जा रहा है.

ढांचे की पेटिंग के बाद कांच का काम होगा शुरू

ग्लास स्काईवॉक का निर्माण करा रही पवन सुत कंस्ट्रक्शन कंपनी के जनरल मैनेजर अमरेश सिंह के मुताबिक लगभग 70 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. वर्तमान में बनाए गए ढांचे पर पेंटिंग की जा रही है और फिर कांच का काम किया जाएगा. माना जा रहा है कि इस महीने के अंत तक ग्लास स्काईवॉक पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा.

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धनुष और बाण के आकार में किया जा रहा तैयार

दरअसल मारकुंडी रेंज में जिस जल प्रपात पर ग्लास स्काईवॉक बन रहा है उसे पहले शबरी जल प्रपात कहा जाता था. प्रभु श्रीराम की तपोभूमि के साथ यहीं पर राजापुर में गोस्वामी तुलसीदास का जन्म स्थान होने से पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका नाम बदलकर तुलसी जल प्रपात कर दिया था. जीएम अमरेश सिंह के मुताबिक धनुष और बाण के आकार में बन रहे ग्लास ब्रिज में खाई की ओर बाण की लंबाई 25 मीटर है, जबकि दोनों पिलर के बीच धनुष की चौड़ाई 35 मीटर है. पुल की भार क्षमता प्रति वर्ग मीटर में 500 किलोग्राम होगी.

रोमांच का होगा अनुभव

ग्लास स्काईवॉक जिस जगह पर बनाया जा रहा है, वह बेहद रमणीय स्थल है. यहां तुलसी जल प्रपात पर पानी की तीन धाराएं चट्टानों से गिरती हैं. ये लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर एक वाइड वाटर बेड यानी जल शैया में गिरकर जंगल में लुप्त हो जाता है. जैसे ही लोग ग्लास स्काईवॉकपर चलेंगे तो चट्टानों पर पानी गिरने और नीचे जंगल का नजारा भी दिखेगा. इससे उन्हें रोमांच का अनुभव होगा. बताया जा रहा है कि परियोजना स्थल पर रॉक गार्डन, हर्बल गार्डन, कैक्टस गार्डन और ईको टूरिज्म एड ऑन के रूप में व्यू शेड्स का भी प्रस्ताव है, आने वाले दिनों में इन्हें लेकर भी काम शुरू किया जाएगा.

बिहार के राजगीर का दौरा कर चुके हैं अधिकारी

बताया जा रहा है कि ग्लास स्काईवॉक की डिजाइन को लेकर अधिकारियों की सात सदस्यीय टीम ने बिहार के राजगीर में स्काईवॉक ग्लास का दौरा किया था. वन विभाग के मारकुंडी वन क्षेत्राधिकारी रमेश यादव के मुताबिक वहां से लौटने के बाद टीम ने फैसला किया कि पुल में तपोभूमि की छाप होनी चाहिए. इसलिए धनुष और बाण की ड्राइंग पास की गई है. जल्द ही पर्यटक यहां आकर खास तरह का अनुभव कर सकेंगे.

प्रकृति की सुंदरता को समेटे है स्थल

प्रकृति की सुंदरता को समेटे ये स्थान बेहद खास है. यहां आने पर पर्यटकों को एक अलग ही अनुभव होता है. मध्य प्रदेश के सतना बॉर्डर पर स्थित परासिन पहाड़ से धारकुंडी मारकुंडी जंगलों के बीच से चित्रकूट में पाठा के जंगलों में कल-कल बहती पयस्वनी नदी आगे चलकर मंदाकिनी के नाम से पहचानी गई. ग्राम पंचायत टिकरिया के जमुनिहाई गांव के पास स्थित बंबियां जंगल में पयस्वनी, ऋषि सरभंग आश्रम से निकली जलधारा व गतिहा नाले जलराशि की त्रिवेणी से शबरी जल प्रपात की छटा यूं मनोहारी दिखती है, मानो आसमान जमीन छूने को बेताब हो.

देश दुनिया से आएंगे सैलानी

कम पानी होने पर एक साथ थोड़ी-थोड़ी दूर पर तीन जलराशियां नीचे गिरती हैं. तीव्र बारिश में यह आपस में मिल जाती हैं. इससे इनके वेग व प्रचंड शोर से अंतर्मन के तार झंकृत हो उठते हैं. करीब चालीस फीट नीचे गिरने वाली जलराशि कुंड में तब्दील होकर अथाह गहराई को प्राप्त करती है. 60 मीटर चौड़े व इससे कुछ अधिक लंबे कुंड से फिर दो जलराशियां नीचे की ओर गिरकर सम्मोहन को और बढ़ा देती हैं. यह नजारा आंखों को वहां से हटने नहीं देता है. निकट भविष्य में यह स्थल देश-दुनिया के सैलानियों को अपनी तरफ खींचने का बड़ा केंद्र होगा.

स्थानीय स्तर पर लोगों को मिलेगा रोजगार

प्रदेश सरकार के वन और पर्यटन विभाग के अफसरों के मुताबिक ग्लास स्काईवॉक ब्रिज के बाद क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर लोगों के रोजगार में भी इजाफा होगा. प्रदेश के इस अनोखा ग्लास ब्रिज को देखने के लिए अन्य प्रदेश से भी लोग धर्म नगरी चित्रकूट पहुंचेंगे. इससे टूरिज्म क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और इसी के सहारे लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

40 लाख से प्रशासन ने कराया सौंदर्यीकरण का काम

जिला प्रशासन के मुताबिक कुछ साल पहले जिला प्रशासन की पहल से यह वाटरफॉल अस्तित्व में आया और कुड़ी कहलाने वाले इस प्राकृतिक झरने का नाम शबरी जल प्रपात कर दिया गया. इस दौरान करीब 40 लाख रुपए से इसका सौंदर्यीकरण किया गया. साथ ही जिला प्रशासन की ओर से सोशल मीडिया पर भी प्रचार-प्रसार किया गया. जिला प्रशासन की इस पहल से आसपास के पर्यटक भी झरना देखने आने लगे. हालांकि, जलप्रपात के नजदीक जाने पर इसमें डूबने की घटनाएं भी बढ़ गईं. इसके बाद झरने के पास जाने के लिए पुलिस ने रोक लगा कर सुरक्षा के लिए एक बाड़ भी बनाया. ऐसे में पर्यटकों को दूर से ही झरने का नजारा देखना पड़ता था. अब झरने को पास से देख सकें, इसके लिए ग्‍लास का पुल बनाया जा रहा है.

ग्लास स्काईवॉक में टफन ग्‍लास का होगा प्रयोग

ग्लास स्काईवॉक के बनने से पर्यटकों को झरने के बीच तक पहुंचने का मौका मिलेगा और ग्लास ब्रिज के सहारे इस प्राकृतिक झरने का नजारा देखने का आनंद मिल सकेगा. बताया जा रहा है कि एक बार में लगभग 15 पर्यटक इस ग्‍लास ब्रिज के आखरी छोर पर बने केबिन तक पहुंच सकेंगे, जो लगभग 30 फीट की ऊंचाई से गिर रहे झरने के करीब तक यह यह ग्लास ब्रिज पहुंचेगा. दोनों ओर से बनी सीढ़ियों के सहारे वह वापस उतर सकेंगे. मोटे कांच से निर्मित होने वाले इस ब्रिज में टफन ग्लास का प्रयोग किया जाएगा.

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