Lucknow News: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के हित में बड़ा कदम उठाने जा रही है. सरकार के फैसले के बाद सेवा प्रदाता कर्मचारियों का बेवजह उत्पीड़न नहीं कर सकेंगे. वहीं कर्मचारियों का ईपीएफ, ईएसआई आदि की कटौती भी समय से हो सकेगी. सरकार इस संबंध में जल्द नई नीति लाने जा रही है. जिसका मसौदा तैयार कर दिया गया है. माना जा रहा है कि अगली कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा और उसके मंजूर होने के साथ ही नीति लागू हो जाएगी.
उत्तर प्रदेश में आउटसोर्सिंग पर सरकारी विभागों में नौकरी कर रहे लोगों को आने वाले दिनों में बेहतर सुविधा मिल सकेगी. उनकी सेवा शर्तों को बेहतर किया जाएगा. सेवा प्रदाता बेवजह उनका उत्पीड़न नहीं कर सकेंगे और ना ही उनके वेतन से अनावश्यक कटौती भी होगी. इसके साथ ही कर्मचारियों के ईएसआई ईपीएफ में लेटलतीफी नहीं चलेगी. सरकार ने नई आउटसोर्सिंग नीति में इन तमाम बिंदुओं को शामिल किया है.
Also Read: एएमयू में दो गुटों के बीच कई राउंड फायरिंग से दहशत, तीन छात्र मेडिकल कॉलेज में भर्ती, पड़ताल में जुटी पुलिस
श्रम एवं सेवायोजन विभाग ने इसका प्रारूप तैयार कर लिया है, जिसे कैबिनेट बैठक में रखने की तैयारी है. कहा जा रहा है की नई नीति के तहत अभ्यर्थियों का चयन रेंडम नहीं हो सकेगा. समूह ‘ग’ और ‘घ’ के पदों पर चयन के लिए संबंधित विभाग शैक्षिक योग्यता तय करेगा. कर्मचारियों का चयन व्यक्तियों को देखते हुए सेवा योजना पोर्टल पर आने वाले आवेदनों में से मेरिट के आधार पर किया जाएगा. खास बात है कि इसके लिए साक्षात्कार की जरूरत नहीं होगी. वर्तमान में रिक्ति के सापेक्ष तीन गुना अभ्यर्थियों का चयन किया जाता है, जिसमें से सेवा प्रदाता रेंडम किसी को चुनता है. इसी चयन प्रक्रिया को लेकर अक्सर सवाल खड़े होते रहे हैं.
इसके साथ ही तकनीकी और अन्य पदों पर चयन शैक्षिक योग्यता, संबंधित विभाग की ओर से तय अनुभव और साक्षात्कार के भारांक के आधार पर होगा. यह साक्षात्कार अधिकतम 20 फीसदी अंकों का होगा. अनिवार्य शैक्षिक अर्हता वाले पदों पर न्यूनतम अनिवार्य अर्हता के लिए के जरिए मेरिट तैयार की जाएगी. खास बात है कि सभी श्रेणियों की प्रतीक्षा सूची भी तैयार होगी, जिसमें 25 प्रतिशत तक अभ्यर्थी रहेंगे.
बताया जा रहा है कि आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के पारिश्रमिक का समय से भुगतान नहीं करने की समस्या के समाधान के लिए सेवाप्रदाता को महीने की अधिकतम 15 तारीख तक अनिवार्य रूप से कार्मिक को देय धनराशि उसके खाते में डीबीटी के माध्यम से जमा करानी होगी. इस तरह सेवा प्रदाता मानदेय को लेकर भी कर्मियों को परेशान नहीं कर सकेंगे. इसके साथ ही पिछले महीने के भुगतान का प्रमाण पत्र भी देना होगा. वहीं ईपीएफ और ईएसआई की कटौती भी समय से करना अनिवार्य होगा. इस मामले में गड़बड़ी रोकने को कई स्तर पर नजर आने की व्यवस्था होगी.
आउटसोर्सिंग से भर्ती करने वाले विभागों और सेवा प्रदाताओं को ईपीएफ के पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा. सेवायोजन निदेशालय के स्तर पर भी अधिकारियों का सेल गठित किया जाएगा. इसके लिए आवश्यकता के अनुसार पदों का सृजन भी कराया जाएगा. इस नीति के लागू होने के बाद आउटसोर्सिंग एजेंसियों की मनमानी पर भी रोक लग सकेगी. साथ ही कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी. वह सुविधाजनक तरीके से कम कर सकेंगे. इसके साथ ही काम का माहौल भी बेहतर होगा.
अहम बात है कि आउटसोर्सिंग कर्मियों को बेवजह हटाकर उनका शोषण करने की समस्या से निपटने के लिए यह तय हुआ है कि विभाग की सिफारिश पर ही किसी कार्मिक को सेवाप्रदाता सेवा से हटा सकेगा. उसकी अपनी मर्जी नहीं चलेगी.आउटसोर्सिंग एजेंसियों के एकाधिकार को तोड़ने और कर्मचारियों के कार्यभार ग्रहण नहीं करने की समस्याओं से निपटने के लिए विभागों को आवश्यकताओं को अपने स्तर से वर्गीकृत कर क्लस्टरिंग करके कार्मिकों को आउटसोर्सिंग से लेने के लिए अधिकृत किया जाएग. इससे स्थानीय अभ्यर्थियों को आउटसोर्सिंग की नौकरियों के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे. क्लस्टरिंग के लिए कार्मिक की न्यूनतम संख्या 25 निर्धारित करने पर सहमति बनी है.