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UP Chunav: क्या क्षेत्रीय दलों के दम पर अखिलेश यादव बनेंगे सीएम? या जरूरी है चाचा शिवपाल से गठबंधन,खास रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल से गठबंधन न कर क्षेत्रीय दलों का साथ ले रहे हैं. यूपी चुनाव में सपा और प्रसपा की भूमिका को लेकर एक खास रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको पढ़नी चाहिए...

UP Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 का समय नजदीक आता जा रहा है. मार्च-अप्रैल में होने वाले इस चुनाव को लेकर अखिलेश यादव ने जोर-शोर से तैयारी शुरू कर दी है. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव हर वर्ग को पूरी ईमानदारी के साथ साधने में जुटे हुए हैं, लेकिन अपने ही चाचा शिवपाल यादव से दूरी बनाए हुए हैं. दोनों चाचा भतीजे के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई हैं, कि अखिलेश ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी’ के साथ गठबंधन करने को भी तैयार नहीं हैं.

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव की रैली और जनसभाओं में स्पष्ट नजर आता है, कि वह सपा से गठबंधन को तैयार हैं, लेकिन अखिलेश यादव चाचा शिवपाल का किसी रैली में जिक्र करने से भी बचते हैं. ऐसे में गठबंधन तो दूर की बात है.

ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि समाजवादी पार्टी का गठबंधन प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से न होने पर उन्हें क्या सच में कोई नुकसान हो सकता है. दरअसल, मुलायम सिंह के समय में सपा संगठन का जिम्मा शिवपाल यादव को ही दिया गया था. वही समाजवादी पार्टी की नीतियों को तैयार में मुख्य भूमिका निभाते थे, लेकिन 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ने सब कुछ बदल कर रख दिया. मुलायम का परिवार वर्चस्व की लड़ाई का शिकार हो गया, और फिर एक नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का उदय हुआ.

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प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की तीन सीटों पर शिवपाल की पार्टी ने सपा को जबरदस्त नुकसान पहुंचा था. इन सीटों में इटावा, बरेली और कानपुर देहात की लोकसभा सीट शामिल है. ऐसे में अगर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की बात की जाए तो, अब लोहिया पार्टी जमीनी स्तर पर पहले से काफी मजबूत हो चुकी है. पार्टी अब अपनी जड़ें जमा चुकी है. पार्टी की आम जनता के बीच पकड़ पहले से मजबूत हो चुकी है.

राजनीतिक पंडितों की माने तो, सपा प्रमुख अखिलेश यादव छोटी पार्टियों के दम पर इस चुनाव में फाइट तो कर सकते हैं, लेकिन बीजेपी को हरा नहीं सकते. ऐसे में सपा का छोटी-छोटी पार्टियों के साथ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन ही उनकी नैया पार लगा सकता है. अगर सपा का प्रसपा से गठबंधन नहीं होता है, तो अखिलेश यादव को इसका खमियाजा भी उठाना पड़ सकता है.

Posted by- Sohit Trivedi

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