फ़िल्म -कौन प्रवीण तांबे
निर्देशक- जयप्रद देसाई
कलाकार-श्रेयस तलपड़े, अंजली पाटिल,आशीष विद्यार्थी,परमब्रत और अन्य
प्लेटफार्म-डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग- तीन
आईपीएल का सीजन शुरू हो चुका है. ओटीटी प्लेटफार्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज कौन प्रवीण तांबे ,क्रिकेटर प्रवीण तांबे की बायोपिक है.जिन्होंने आईपीएल में 41 साल की उम्र में डेब्यू किया था।उस उम्र में जब आमतौर पर खिलाड़ी रिटायर हो जाते हैं.यह फ़िल्म उसी जर्नी को दिखाती है सबसे खास बात है कि यह बायोपिक होने के बावजूद प्रवीण तांबे को किसी अवतार की तरह नहीं दर्शाती है।जैसा कि हमारी बायोपिक फिल्मों में महिमा मंडन की प्रथा आम है.यह बायोपिक फ़िल्म प्रवीण तांबे को आम इंसान की तरह ही दिखाती है.जो अपनी गलतियों से सीखते हुए खुद को अलग तरह से गढ़ता है।यह फ़िल्म आम इंसान के हीरो बनने की कहानी है.यह फ़िल्म बताती है कि अपने सपने को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती है बस ज़रूरत मेहनत और जिद की होती है ।यही बात इस फ़िल्म को खास बनाती है.
लोअर मिडिल क्लास परिवार के प्रवीण तांबे(श्रेयस तलपड़े) एक आल राउंडर क्रिकेट है।जिसका एक ही सपना है कि वह नेशनल चैंपियनशिप रणजी टूर्नामेंट खेल लें लेकिन घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं है. प्रवीण की मां को लगता कि प्रवीण नौकरी नहीं करेगा तो उसकी शादी कैसे होगी. प्रवीण को नौकरी लग जाती है शादी भी हो जाती है और दो बच्चों का पिता भी वह बन जाता है लेकिन उसके सपने का क्या।वो सपना अभी भी वो पूरा करने में जुटा है लेकिन उसे हमेशा असफलता ही मिल रही है.घर में सभी लोग उसे क्रिकेट छोड़ने की सलाह दे रहे हैं लेकिन वह लोकल टूर्नामेंट्स खेलकर अपने सपनों को जी रहा है.
बढ़ती उम्र उसे परेशान ज़रूर रही है लेकिन उसे अपने सपने में विश्वास है. ऐसे में 41 साल की उम्र में कोई फर्स्ट क्लास मैच खेलें बिना वो आईपीएल टीम में शामिल हो जाता है.जिसका हिस्सा नेशनल ही नहीं बल्कि इंटरनेशनल लेवल के क्रिकेटर्स हैं.कैसे और उसके बाद क्या होता है उसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. फ़िल्म का ट्रीटमेंट एकदम रियलिस्टिक रखा गया है. सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है लेकिन उतनी ही जितनी कहानी की ज़रूरत थी.जिस वजह से यह फ़िल्म आपको शुरू से अंत तक बांधे रखती है. आईपीएल के रियल मैचों को बहुत ही खूबसूरती के साथ फ़िल्म में जोड़ा गया है.
फ़िल्म की खामियों की बात करें तो प्रवीण तांबे की संघर्ष को मुश्किल किसी सेलेक्टर या कोच ने नहीं बल्कि एक स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट को फ़िल्म में दिखाया गया है।यह बात थोड़ी अटपटी सी लगती है.क्रिकेट में होने वाली राजनीति से हम सभी परिचित हैं लेकिन उसकी कहानी में जगह नहीं है.इसके साथ ही प्रवीण तांबे की निजी ज़िन्दगी को थोड़ा विस्तार में दिखाया जा सकता है.
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अभिनय की बात करें तो श्रेयस तलपड़े ने प्रवीण तांबे के किरदार को बखूबी जिया है.ऑन फील्ड हो ऑफ फील्ड वो पूरी तरह से उस किरदार में रच बस गए हैं.उन्होंने इस खास किरदार को एकदम सहजता से जिया है. अंजली पाटिल और आशीष विद्यार्थी को ज़्यादा स्पेस नहीं मिल पाया है लेकिन वे अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं.परमब्रत भी अपनी मौजूदगी से फ़िल्म को खास बनाते हैं.फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है जो कहानी को और हकीकत के करीब ले जाती है.फ़िल्म के संवाद औसत है.
कुलमिलाकर यह फ़िल्म सिर्फ क्रिकेट भर की कहानी नहीं है।यह इंसान के हार ना मानने वाले जज्बे को सलाम करती है.