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KGF Chapter 2 Review: सॉलिड एंटरटेनर है यश की ‘केजीएफ 2’, संजय दत्त का दिखा खतरनाक अंदाज

KGF Chapter 2 Review: केजीएफ चैप्टर 2 कई मायनों में खास है. यह पहले पार्ट की जबरदस्त कामयाबी के बाद सफलता को भुनाने के लिए नहीं बनायी गयी है. 2018 में केजीएफ चैप्टर वन की रिलीज से पहले ही यह तय हो चुका था कि इस फ़िल्म की कहानी को दो भागों में कही जाएगी.

फ़िल्म: केजीएफ चैप्टर 2

  • निर्माता: विजय

  • निर्देशक: प्रशांत नील

  • कलाकार: यश, संजय दत्त, रवीना टंडन,श्रीनिधि शेट्टी,प्रकाश राज और अन्य

  • रेटिंग: {3.5/5}

KGF Chapter 2 Review: लगभग चार सालों के लंबे इंतजार के बाद केजीएफ के सीक्वल ने रुपहले परदे पर दस्तक दे दी है. केजीएफ चैप्टर 2 कई मायनों में खास है. यह पहले पार्ट की जबरदस्त कामयाबी के बाद सफलता को भुनाने के लिए नहीं बनायी गयी है. 2018 में केजीएफ चैप्टर वन की रिलीज से पहले ही यह तय हो चुका था कि इस फ़िल्म की कहानी को दो भागों में कही जाएगी. दूसरे भाग में कहानी वही से शुरू होती है. जहां खत्म हुई थी. रॉकी भाई (यश) गरुडा को मारकर केजीएफ का नया सुल्तान बन गया है. उसे वहां के लोगों का सपोर्ट है. जो उसे अपना भगवान मानते हैं.

रॉकी के सपने वही खत्म नहीं होते हैं. उसे केजीएफ का सारा सोना चाहिए. अपनी मां से किए गया वादा जो पूरा करना है कि उसे दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना है. इसके लिए वह किसी से भी लड़ भिड़ सकता है लेकिन उसकी राह आसान नहीं है. गरुडा के वहशी भाई अधीरा (संजय दत्त) जिसकी तलवार लोगों का खून मांगती है उससे टक्कर लेनी है. साथ ही देश की ईमानदार प्रधानमंत्री रमिका सेन (रवीना टंडन) भी रॉकी को घुटने टेकते देखना चाहती हैं. क्या रॉकी अपने दुश्मनों को मात दे पाएगा?क्या वो पूरा सोना ले पाएगा?रॉकी अपनी मां से किया हुआ वादा निभा पाएगा? इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. फ़िल्म अपने अंत में यह भी तय कर देती है कि केजीएफ चैप्टर 3 की भी योजना है जिसमें रॉकी की दहशत को यूएस और इंडोनेशिया में दिखाने की प्लानिंग है. जो निश्चिततौर पर केजीएफ फैंस के लिए खुश खबरी है क्योंकि फ़िल्म का अंत थोड़ा उन्हें इमोशनल कर गया होगा.

कहानी में जबरदस्त ट्विस्ट एंड टर्न एक के बाद एक है. जो फ़िल्म को शुरुआत से ही दर्शकों से जोड़ देता है. यह मसाला एंटरटेनर में सभी मसाले हैं. एक्शन,रोमांस और माँ वाला इमोशन भी है. जो 80 के दशक की एंग्री यंग मैन वाली फिल्मों की याद दिलाएगा. यहां भी नायक दबे कुचले मजदूर वर्ग का है लेकिन इन समानताओं के बावजूद कहानी पुरानी नहीं लगती है बल्कि रोमांच को बढ़ाती है. जिसके लिए लेखन टीम को क्रेडिट जाता है.

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आरआरआर के बाद साउथ की इस फ़िल्म में भी हिन्दू ही नहीं मुस्लिम पात्रों को भी कहानी में बखूबी जोड़ा गया है. संवादों के ज़रिए भी कौमी एकता को बढ़ावा दिया है कि हिंदुस्तान में हर धर्म का सम्मान किया जाता है. जो शायद मौजूदा परिपेक्ष्य में बहुत ज़रूरी भी है. खामियों की बात करें तो कहानी कहने का तरीका वही पुराना ही है लेकिन इस रॉकी की कहानी एक लेखक नहीं बल्कि सीबीआई ऑफिसर(प्रकाश राज) टीवी पत्रकार को कहानी सुना रहा है. 2018 से कहानी फ्लैशबैक में 1950 से 1981 का सफर तय कर रही है और फिर वर्तमान में आती रहती है. बीच में थोड़ा मामला कन्फ्यूजिंग भी हो गया है. जो थोड़ा दर्शकों को अखर भी सकता है. खामियों की बात करें तो श्रीनिधि के किरदार के लिए रॉकी द्वारा एंटरटेनमेंट के लिए लाया जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना अखरता है. रॉकी का किरदार युवाओं का आदर्श बन चुका है ऐसे में मेकर्स की जिम्मेदारी बनती है कि वह एक भी ऐसे गलत शब्दों के इस्तेमाल करने से बचें.

अभिनय की बात करें तो एक बार फिर यश अपने हेवी ड्यूटी स्टाइलिश एक्शन के अवतार में कमाल कर गए हैं. एक्शन दृश्यों के अलावा उनके चुटीले संवाद कहानी के मूड को बीच बीच में हल्का भी बनाते हैं. संजय दत्त ने अधीरा के किरदार को बेहतरीन ढंग से निभाया है. दोनों के बीच के दृश्य बेहतरीन बन गए हैं. रवीना टंडन की कहानी में एंट्री इंटरवल के बाद हुई है लेकिन उनका किरदार सशक्त है. जिसे उन्होंने प्रभावी ढंग से निभाया है. केजीएफ के पहले पार्ट में श्रीनिधि का रोल छोटा सा था दूसरे पार्ट में उन्हें स्क्रीन टाइमिंग ज़्यादा मिली है लेकिन उन्हें करने को कुछ खास नहीं था. बाकी के किरदार अपनी अपनी भूमिकाओं में जमें है.

केजीएफ अपने लार्जर देन लाइफ एक्शन के लिए जाना जाता है तो पिछली कड़ी की तरह इस कड़ी में भी भरभर कर एक्शन की भरमार है. हथौड़ा,रॉड,चाकू, फावड़ा से लेकर रॉकेट लांचर, बिग मॉम मशीनगन सभी का जमकर इस्तेमाल एक्शन दृश्यों में हुआ है. जमकर खून खराबा परदे पर दिखाया गया है.फ़िल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो बैकग्राउंड म्यूजिक फ़िल्म को और निखारता है.

पिछली बार की तरह इस बार भी फ़िल्म के मजबूत पक्षों में इसका संवाद है. जो आपको तालियां और सीटियां बजाने को मजबूर करता है. नेपोटिज्म,आउटसाइडर जैसे कई शब्दों को संवाद में बखूबी जोड़ा गया है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी भी उम्दा है. दो दृश्यों के संयोजन के ज़रिए कहानी को कहने का ढंग भी काफी खास है. कुलमिलाकर एक्शन,ड्रामा और क्राइम जॉनर वाली यह फ़िल्म सॉलिड एंटरटेनर है.

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