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Aditya L1 Mission: आखिर ‘कोरोना’ और इसके तापन तंत्र का अध्ययन क्यों करना चाहता है भारत, सूर्य से क्या है नाता?

चंद्रमा की धरती पर कदम रखने में कामयाबी हासिल करने के बाद भारत अब सूर्य की तपिश नापने का प्लान बना चुका है. आज अपने सोलर मिशन के तहत आदित्य एल-1 को लॉन्च करने जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के पहले सोलर मिशन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है.

नई दिल्ली : आदित्य पृथ्वी के साक्षात देवता हैं. इसीलिए हम इन्हें सूर्य भगवान कहते हैं. यही एक ऐसे भगवान हैं, जिन्हें हम अपनी आंखों से अपने सामने देख सकते हैं. आदित्य को ही हम सूर्य, दिनकर, दिवाकर, भानु, भास्कर, आक, आदित्य, दिनेश, मित्र, मार्तण्ड, मन्दार, पतंग, विहंगम, रवि, प्रभाकर, अरुण, अंशुमाली और सूरज भी कहते हैं. यह सूर्य भगवान ही हैं, जिनसे न केवल हमारी पृथ्वी की घूर्णन गति बनी रहती है, बल्कि हमारी धरती के सभी जीव-जंतुओं का जीवन इन्हीं सूर्य देवता की किरणों पर निर्भर करता है. इसके अलावा, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल और बिजली व्यवस्था, नवीकरणीय अक्षय ऊर्जा आदि भी हमें सूर्य से ही प्राप्त होते हैं.

सोलर मिशन की उल्टी गिनती शुरू

अभी हाल में ही हमने यानी भारत ने अपने चंदा मामा के दक्षिण ध्रुव की सतह पर रोवर विक्रम के साथ लैंडर प्रज्ञान की सफलतापूर्वक लैंडिंग कराई है. आपको बता दें कि अपने चंदा मामा की गोद में न केवल लैंडर प्रज्ञान और रोवर विक्रम अठखेलियां कर रहे हैं, बल्कि चंद्रयान टू का रोवर भी इन दोनों को रास्ता दिखा रहा है. चंद्रमा की धरती पर कदम रखने में कामयाबी हासिल करने के बाद भारत अब सूर्य की तपिश नापने का प्लान बना चुका है. आज अपने सोलर मिशन के तहत आदित्य एल-1 को लॉन्च करने जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के पहले सोलर मिशन की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. इसके पीएसएलवी-सी57 के जरिए आदित्य एल-1 को लॉन्च करने का जा रहा है.

सौरमंडल में कैसे टिके रहते हैं बड़े-बड़े पिंड

आदित्य एल-1 की लॉन्चिंग के पहले इसरो के वैज्ञानिकों की टीम तिरुपति पहुंचकर सोलर मिशन की सफलता के लिए पूजा-अर्चना की. आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत की पहली वेधशाला श्रेणी सौर मिशन है. सूर्य हमारे सौरमंडल का सबसे विशाल पिंड और दूसरा सबसे बड़ा तारा है. सूरज का गुरुत्वाकर्षण ही सौरमंडल के सभी पिंडों को उसकी तय जगह पर टिकाए रखता है. आदित्य एल-1 अपने साथ कुल सात पे-लोड्स लेकर जाएगा, जिनमें से 4 पेलोड सूर्य की निगरानी करेंगे और शेष तीन पेलोड एल1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करेंगे. ये सातों पे-लोड्स सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना के साथ-साथ फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर का अध्ययन करेंगे.

आदित्य एल-1 का मकसद क्या है?

अब अगर हम आदित्य एल-1 के उद्देश्यों की बात करें, तो जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि भारत का पहला सूर्ययान आदित्य एल-1 सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना के साथ-साथ फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर का अध्ययन करेगा. आदित्य एल-1 सूर्य-पृथ्वी के बीच लैग्रेंजियन प्वाइंट के पास हेलो ऑर्बिट में स्थापित होने के बाद यहीं से सूर्य की सीमाओं पर नजर बनाए रखेगा और उसकी जानकारी हम तक पहुंचाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि आदित्य एल-1 जिस लैंगेजे के पास वाली हेलो ऑर्बिट में स्थापित होकर सूर्य की सीमाओं का अध्ययन करेगा, वहां पर किसी प्रकार के ग्रह, ग्रहण और उल्का पिंडों का प्रभाव नहीं पड़ेगा.

आदित्य-एल1 मिशन का क्या है प्रमुख वैज्ञानिक उद्देश्य

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वेबसाइट के अनुसार, आदित्य एल-1 मिशन के जरिए इसरो के वैज्ञानिक सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) गतिशीलता का अध्ययन करेंगे. इसके साथ ही, वे क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल हीटिंग का अध्ययन करेंगे और आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल द्रव्यमान इजेक्शन और फ्लेयर्स की शुरुआत का भी अध्ययन करेंगे. इतना ही नहीं, इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक सूर्य से कण गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले इन-सीटू कण और प्लाज्मा वातावरण का निरीक्षण करेंगे. सौर कोरोना का भौतिकी और इसका तापन तंत्र का अध्ययन किया जाएगा. कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान, तापमान, वेग और घनत्व, सीएमई का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति का भी अध्ययन किया जाएगा. इसरो की ओर से कहा गया है कि इस मिशन के जरिए क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना पर होने वाली प्रक्रियाओं के अनुक्रम की पहचान किया जाएगा, जो अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं. सौर कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र मापा जाएगा. अंतरिक्ष मौसम के लिए सौर हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता का पता चलेगा.

आदित्य एल-1 कैसे और किसका करेगा अध्ययन

आदित्य एल-1 सूर्य-पृथ्वी के बीच लैग्रेंजियन प्वाइंट के हेलो ऑर्बिट में रहकर सूर्य की बाहरी परत कोरोना के मैग्नेटिक फील्ड और टोपोलॉजी का अध्ययन करेगा. इसके साथ ही, वह सूर्य की संरचना और उत्पत्ति की जानकारी जुटाने की भी कोशिश करेगा. इसके सातों पे-लोड्स सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना के साथ-साथ फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर का अध्ययन करेंगे. इसके साथ ही, आदित्य एल-1 के जरिए हम दूसरे गैलेक्सी के बारे में भी जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे. इस मिशन के लिए जुटाए गए डाटा भविष्य में हमारे दूसरे मिशन के लिए कारगर साबित हो सकते हैं.

आदित्य एल-1 क्या ले जाएगा अपने साथ

अब जब हम इतना जान गए हैं, तो यह जानना भी बेहद जरूरी है कि सौर मिशन के लिए इसरो की ओर से जिस आदित्य एल-1 को हेलो ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए आज उसकी लॉन्चिंग की जा रही है, वह अपने साथ आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट, प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य, सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, हाई एनर्जी एल-1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और मैग्नेटोमीटर को लेकर जाएगा.

आदित्य एल-1 के साथ जाने वाले वैज्ञानिक उपकरण

  • सोलर कॉरोनल इमेजर (एससीआई) : यह उपकरण सूर्य के कोरोना को चरम पराबैंगनी (ईयूवी) प्रकाश में तस्वीर देगा.

  • सोलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एसएक्सएस) : यह उपकरण सूर्य के एक्स-रे स्पेक्ट्रम को मापेगा.

  • सोलर विंड प्लाज्मा विश्लेषक (एसडब्ल्यूएपी) : यह उपकरण सौर हवा के प्लाज्मा को मापेगा.

  • मैग्नेटोमीटर (एमएजी) : यह उपकरण सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा.

  • सोलर पार्टिकल मॉनिटर (एसपीएम) : यह उपकरण सौर ऊर्जा कणों को मापेगा.

  • इन-सीटू सोलर स्पेक्ट्रोमीटर (आईएसएस) : यह उपकरण सौर हवा के प्लाज्मा और ऊर्जा कणों को इन-सीटू मापेगा.

पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर है सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन प्वाइंट

आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सूर्य के परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन प्वाइंट) पर सौर हवा का वास्तविक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है.

सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन प्वाइंट पर पहुंचने में लगेंगे 125 दिन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ के अनुसार, इसरो आदित्य एल-1 के प्रक्षेपण के लिए तैयारी में जुट गया है. इसके लिए रॉकेट और सैटेलाइट तैयार हैं. इसरो के वैज्ञानिकों ने प्रक्षेपण के लिए अभ्यास पूरा कर लिया है. आदित्य एल-1 को नियत स्थान सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन प्वाइंट पर पहुंचने में 125 दिन लगेंगे.

कौन-कौन से देश भेज चुके हैं सूर्य मिशन?

इसके साथ आपको यह भी बता दें कि भारत से पहले पूरी दुनिया के विभिन्न देशों की ओर से करीब 22 मिशन सूर्य पर भेजे जा चुके हैं. जिन देशों ने सूर्य पर अपने मिशन भेजा है, उनमें अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन स्पेस एजेंसी आदि शामिल हैं. सूर्य का अध्ययन करने के लिए सबसे अधिक सूर्य मिशन नासा ने भेजे हैं. नासा ने अब तक अकेले कुल 14 सूर्य मिशन भेजे हैं, जबकि यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने भी नासा के साथ मिलकर 1994 में सूर्य मिशन भेजा था.

सौर भूकंपों का अध्ययन आवश्यक क्यों

भारत के ‘आदित्य-एल1’ सूर्य मिशन की रवानगी से पहले एक शीर्ष वैज्ञानिक ने कहा है कि पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी जरूरी है. सूर्य का अध्ययन करने के लिए ‘आदित्य-एल1’ मिशन को शनिवार पूर्वाह्न 11.50 बजे श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा. सूर्य के अध्ययन की आवश्यकता के बारे में भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए) के प्रोफेसर एवं प्रभारी वैज्ञानिक डॉ आर रमेश ने कहा कि जिस तरह पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर सौर भूकंप भी होते हैं, जिन्हें ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई) कहा जाता है. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में लाखों-करोड़ों टन सौर सामग्री अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में बिखर जाती है. उन्होंने कहा कि इन सीएमई की रफ्तार लगभग 3,000 किमी प्रति सेकंड होती है. कुछ सीएमई पृथ्वी की ओर भी आ सकते हैं. सबसे तेज सीएमई लगभग 15 घंटे में पृथ्वी के निकट पहुंच सकता है.

दूसरे अभियानों से अलग क्यों है आदित्य एल-1

यह मिशन इस तरह के अन्य अभियानों से क्यों अलग है? इस पर डॉ आर रमेश ने कहा कि हालांकि ईएसए (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) और नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने अतीत में इसी तरह के मिशन प्रक्षेपित किए हैं, लेकिन ‘आदित्य एल-1’ मिशन दो मुख्य पहलुओं में अद्वितीय होगा, क्योंकि हम सूर्य के परिमंडल का निरीक्षण उस स्थान से कर पाएंगे, जहां से यह शुरू होता है. इसके अलावा, हम सौर वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों का भी निरीक्षण कर पाएंगे, जो ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ या सौर भूकंप का कारण हैं.

उपग्रहों को नष्ट कर देते हैं सीएमई

डॉ आर रमेश ने कहा कि कभी-कभी ये ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई) उपग्रहों को नष्ट कर देते हैं और सीएमई से निकले कण प्रवाह के कारण उपग्रहों पर मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो सकते हैं. ये सीएमई पृथ्वी तक आते हैं. उदाहरण के लिए, 1989 में जब सौर वायुमंडल में भारी हलचल हुई, तो कनाडा में क्यूबेक क्षेत्र लगभग 72 घंटों तक बिजली के बिना रहा था. वहीं, 2017 में सीएमई की वजह से स्विट्जरलैंड का ज्यूरिख हवाई अड्डा करीब 14 से 15 घंटे तक प्रभावित रहा था.

बिजली व्यवस्था को तबाह कर देते हैं सीएमई

डॉ. रमेश ने कहा कि एक बार जब सीएमई पृथ्वी पर पहुंच जाते हैं, जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों वाले एक बड़े चुंबक की तरह है, तो वे चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ यात्रा कर सकते हैं और फिर वे पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्र को बदल सकते हैं. उन्होंने कहा कि एक बार जब भू-चुंबकीय क्षेत्र प्रभावित हो जाता है, तो इससे उच्च वोल्टेज वाले ट्रांसफॉर्मर प्रभावित हो सकते हैं, जिससे बिजली व्यवस्था पूरी तरह तबाह हो जाती है. इसलिए, सूर्य की लगातार निगरानी के लिए अवलोकन केंद्र स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है, जो लैग्रेंजियन (एल1) बिंदु से संभव है. भारत अपने उपग्रह को ‘लैंग्रेंजियन-1’ बिंदु पर स्थापित करने के लिए ‘आदित्य-एल1’ का प्रक्षेपण कर रहा है.

चौबीसों घंटे सूर्य की निगरानी करना क्यों है जरूरी

डॉ. रमेश के अनुसार अनुसार, सूर्य का अवलोकन करने संबंधी 125 वर्षों की लंबी परंपरा वाली संस्था आईआईए के अधिकारियों ने महसूस किया कि उन्हें 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी करनी चाहिए, ताकि (सूर्य पर) जो भी परिवर्तन हो रहा हो, उसे बहुत अच्छी तरह से देखा जा सके. हालांकि, सूर्य का अवलोकन जमीन पर स्थित दूरबीन से किया जा सकता है, लेकिन इसमें दो प्रमुख सीमाएं हैं. एक सीमा तो यह है कि सूर्य की निगरानी के लिए एक दिन में केवल आठ या नौ घंटे ही उपलब्ध होते हैं, क्योंकि ऐसे अवलोकन केवल दिन के समय ही किए जा सकते हैं, रात में नहीं.

सूर्य की निगरानी करना बड़ी चुनौती

वैज्ञानिक ने कहा कि पृथ्वी से सूर्य की निगरानी करते समय दूसरी चुनौती यह है कि सूर्य से आने वाली रोशनी वायुमंडल में धूल के कणों की वजह से बिखर जाती है, जिससे तस्वीर धुंधली हो सकती है. आर रमेश ने कहा कि सौर अवलोकन में इन कमियों से बचने के लिए आईआईए को सूर्य के 24 घंटे निर्बाध अवलोकन के लिए अंतरिक्ष में एक दूरबीन रखने की आवश्यकता महसूस हुई.

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‘लैंग्रेंजियन’ प्वाइंट्स की किसने की थी खोज

डॉ आर रमेश ने कहा कि ऐसे पांच सुविधाजनक बिंदु हैं, जहां से सूर्य पर नजर रखी जा सकती है. इन्हें ‘लैंग्रेंजियन’ प्वाइंट कहा जाता है, जिनका नाम इतालवी खगोलशास्त्री जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है. उन्होंने इनकी खोज की थी.वैज्ञानिक ने कहा कि लैग्रेंज बिंदुओं पर सूर्य और पृथ्वी के बीच का गुरुत्वाकर्षण बल पूरी तरह से संतुलित होता है. इन सभी पांच बिंदुओं में से सूर्य का निर्बाध दृश्य देखने के लिए ‘एल1’ नामक एक बिंदु है. यह बिंदु पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है. ‘आदित्य एल1’ अंतरिक्ष मिशन को ‘लैग्रेंजियन-1’ बिंदु तक पहुंचने में 100 से अधिक दिन लगेंगे.

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