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Aditya-L1 Mission: लॉचिंग के लिए तैयार है आदित्य एन-1 मिशन ! लॉन्च रिहर्सल और आंतरिक जांच में पूरी तरह फिट

Aditya-L1 Mission: आदित्य-एल1 को पीएसएलवी-सी 57 रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित किया जाएगा. मिशन को लेकर इसरो ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि प्रक्षेपण की तैयारियां प्रगति पर हैं. प्रक्षेपण का पूर्वाभ्यास-रॉकेट की आंतरिक पड़ताल पूरी हो गई है.

Aditya-L1 M ission: भारत के आदित्य एल-1 मिशन की पूरी तैयारी हो चुकी है. Aditya-L1 मिशन PSLV-C 57 रॉकेट के जरिये उड़ान भरने को तैयार है. 30 अगस्त 2023 को लॉन्च रिहर्सल पूरा हो चुका है. रॉकेट के सभी अंदरूनी हिस्सों की जांच भी पूरी कर ली गई है. रॉकेट की सेहत पूरी तरह से ठीक है. अब इस मिशन को दो सितंबर को दिन के 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाना है. आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सूर्य के परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अध्ययन करेगा. इसकी दूरी धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर है. यह सूर्य के अध्ययन के लिए भारत का पहला मिशन है. अगर मिशन कामयाब हो जाता है तो भारत के लिए न सिर्फ अंतरिक्ष के लिए और बृहत द्वार खुलेंगे बल्कि, सूरज के बारे में कई नई जानकारी मिलेगी.

इसरो ने ट्वीट कर दी जानकारी
आदित्य-एल1 को पीएसएलवी-सी 57 रॉकेट के जरिये प्रक्षेपित किया जाएगा. मिशन को लेकर इसरो ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि प्रक्षेपण की तैयारियां प्रगति पर हैं. प्रक्षेपण का पूर्वाभ्यास-रॉकेट की आंतरिक पड़ताल पूरी हो गई है. बता दें, आदित्य-एल1 मिशन का उद्देश्य एल1 के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है. इसमें विभिन्न तरंग बैंडों में सूर्य के प्रकाश मंडल, वर्णमंडल और सबसे बाहरी परत-परिमंडल का निरीक्षण करने के लिए सात उपकरण लगे होंगे. बता दें. आदित्य-एल1 राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी वाला पूर्णतः स्वदेशी प्रयास है.

पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर जाएगा यान
बते दें, आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को सूर्य के परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह क्षेत्र धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है. यह सूर्य के अध्ययन के लिए भारत का पहला समर्पित मिशन है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ऐसे समय अंजाम देने जा रहा है जब हाल ही में इसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराकर देश को गौरवान्वित करने वाला इतिहास रच दिया है.

आईआईए ने किया है वीईएलसी उपकरण का डिजाइन

आईआईए ने ‘आदित्य-एल1’ मिशन के वीईएलसी उपकरण का डिजाइन तैयार किया
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए) ने कहा है कि उसने ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) का डिजाइन तैयार करने के साथ ही इसका संयोजन और परीक्षण किया है. यह सूर्य के अध्ययन के लिए मिशन ‘आदित्य-एल1’ के सात उपकरणों में से एक है. इसरो दो सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से आदित्य-एल 1 का प्रक्षेपण करने के लिए तैयार है. आईआईए ने एक बयान में कहा, आईआईए को वीईएलसी का संयोजन करने के लिए होसाकोटे में अपने क्रेस्ट परिसर में भारत का पहला बड़ा आकार का ‘क्लास टू क्लीन रूम’ बनाना था.

अपने साथ सात पेलोड ले जाएगा आदित्य एल-1

सूर्य के व्यापक अध्ययन और अवलोकन के लिए उपग्रह अपने साथ छह अन्य उपकरण भी ले जाएगा जिनमें सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (एसयूआईटी), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एसओएलईएक्सएस), हाई एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एचईएल1ओएस), और मैग्नेटोमीटर, शामिल हैं. आईआईए ने कहा, “इससे पहले, इस मिशन की कल्पना एक उपकरण-विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) ले जाने वाले 400 किलोग्राम वर्ग के उपग्रह के साथ आदित्य-1 के रूप में की गई थी, और इसे 800 किमी नीची, पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित करने की योजना बनाई गई थी.

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सूर्य की मिलेगी कई जानकारियां

सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पहले ‘लैग्रेन्जियन बिंदु’ (एल 1) के आसपास प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी बाधा/ग्रहण के सूर्य को लगातार देखने का बड़ा फायदा होता है. आईआईए ने कहा कि इसलिए, ‘आदित्य-1’ मिशन को अब ‘आदित्य-एल1’ मिशन के रूप में संशोधित किया गया है और इसे एल1 के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से सूर्य की ओर 15 लाख किलोमीटर दूर है. इसने कहा कि उपग्रह द्वारा किए गए वैज्ञानिक अध्ययन सौर परिमंडल की वर्तमान समझ को बढ़ाएंगे और अंतरिक्ष मौसम अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण डेटा भी प्रदान करेंगे.भारत ने हाल में तब इतिहास रच दिया जब चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की.चंद्र अन्वेषण जारी रहने के बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सूर्य का भी अध्ययन करने का निर्णय लिया.

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