नयी दिल्ली : कोरोना वायरस के रूप में देश दुनिया में ऐसी महामारी फैली है कि लोग अंतिम समय में अपने परिजनों को अलविदा तक कहने को तरस गए हैं, अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो पा रहे हैं और कई जगह अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामान की भी किल्लत शुरू हो गई है.
वहीं, गांव-देहात में प्रौद्योगिकी से वंचित लोग खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं. दिल्ली की पत्रकार रीतिका जैन के 85 वर्षीय दादा जी का 24 मार्च से शुरू हुए 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान गुजरात के पलीताना में निधन हो गया. लेकिन वह उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाई. रीतिका के पिता लॉकडाउन लागू होने से पहले मुंबई से भावनगर के लिये आनन फानन में अंतिम उड़ान से पहुंचे. लेकिन दूर रह रहे परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंच सका और वे लोग जूम मोबाइल ऐप के जरिये अंत्येष्टि कार्यक्रम में शामिल हुए.
रीतिका ने बताया, ‘‘शाम के वक्त पूरा परिवार जूम पर मिला, मेरे दादा जी को अंतिम विदाई दी और एक दूसरे का ढांढस बंधाया. देश में कोरोना वायरस संक्रमण से अब तक 50 मौतें हो चुकी हैं और संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ कर 1,965 पहुंच गई है. अभिनेता संजय सूरी को भी इन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ा जब उनकी पत्नी की दादी मां का निधन हो गया.
सूरी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘…जूम के जरिये अंत्येष्टि में शामिल होना बहुत ही अजीब सा था. अजीब वक्त!” सरकार ने अंत्येष्टि में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सीमित कर 20 या इससे कम निर्धारित कर दी है. वहीं, एक शहर से दूसरे शहर जाने की भी इजाजत नहीं है. इससे, चीजें और जटिल हो गई हैं.
इस परिस्थिति में अपनों को खोने के बाद अपनी भावनाओं पर काबू रख पाने में लोगों को बहुत ही मुश्किल हो रही है. चेन्नई के उपनगर में रहने वाले केसवन (77) को अपनी 94 वर्षीय मां के निधन की सूचना शहर के एक दूर-दराज के कोने में स्थित अपने सहोदर भाई के घर पर मिली. उन्होंने सबसे पहली चिंता यही हुई कि जाएंगे कैसे.
उन्होंने पीटीआई भाषा को बताया कि वह पास का इंतजार किये बगैर घर के लिये रवाना हो गये. चेन्नई निवासी के. वीरराघवन ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस का प्रकोप इस कदर है कि जो लोग इससे पीड़ित नहीं हैं उन्हें भी इसका असर झेलना पड़ रहा है.