सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का बहुत ज्यादा महत्व है. मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा जरूर किया जाता है. किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है. ‘प्राण’ शब्द का अर्थ है- जीवन शक्ति और ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ स्थापना से माना जाता है. ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना अथवा देवता को जीवन में लाना.
मंदिरों में जब मूर्तियां लायी जाती हैं, तो वे केवल पत्थरों की होती हैं लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा कर उन्हें जीवंत बनाया जाता है, जिससे वे केवल मूर्तियां न रह जायें, बल्कि उनमें भगवान का वास हो. प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं होती है. प्राण-प्रतिष्ठा के लिए देवी या देवता की अलौकिक शक्तियों का आह्वाह्न किया जाता है, जिससे कि वो मूर्ति में आकर प्रतिष्ठित यानी विराजमान हो जाते हैं. इसके बाद वो मूर्ति जीवंत भगवान के रूप में मंदिर में स्थापित होती है. प्राण-प्रतिष्ठा के कारण ही कहा जाता है कि एक पत्थर भी ईश्वर का रूप धारण कर सकता है. कहा जाता है कि प्राण प्रतिष्ठित किये जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं. हालांकि प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान के लिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त का होना अनिवार्य होता है. बिना मुहूर्त के प्राण प्रतिष्ठा करने से शुभ फल नहीं मिलता है.
सबसे पहले प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है, फिर स्वच्छ वस्त्र से मूर्ति को पोछकर नवीन वस्त्र धारण कराया जाता है. इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित करके चंदन का लेप लगाकर शृंगार किया जाता है. फिर बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है. इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा की जाती है. अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है.
मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव, प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति रूप में उपस्थित देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है.
अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया के लिए 2 मंडप और 9 हवन कुंड बनाये जा रहे हैं. इसमें देश के विभिन्न हिस्से से 121 ब्राह्मण पूजा कराने के लिए सम्मिलित हो रहे हैं. 22 जनवरी को 11 से 12 के बीच अभिजीत योग व मृगशिरा नक्षत्र में प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया संपन्न होगी. इसकी तैयारी 16 जनवरी से ही शुरू हो जायेगी. 16 जनवरी को सरयू नदी के तट पर दशविध स्नान और विष्णु पूजन पंचगव्य प्राशन और गो दान होगा. 17 जनवरी को जलयात्रा, कलशयात्रा और मूर्ति को नगर भर में घुमाया जायेगा और 18 जनवरी से प्राण-प्रतिष्ठा के लिए विधि-विधान और पूजा-पाठ शुरू हो जायेगा. बता दें कि अयोध्या के प्रमुख संतों के अनुसार, प्रभु श्रीराम का जन्म अभिजीत योग में हुआ था. 22 जनवरी को यह योग दीर्घ समय तक के लिए है, अत: प्राण प्रतिष्ठा के लिए 22 जनवरी का दिन चुना गया.
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