नयी दिल्ली : उत्तरपूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुई हिंसा में शामिल होने के आरोपी एक व्यक्ति को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इंकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि मामले में जांच निर्णायक चरण में है और इसमें संलिप्त अन्य लोगों की पहचान अभी तक नहीं हुई है.
वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई करने वाली न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने शादाबा आलम की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जांच जारी है और उसे राहत दिए जाने का कोई आधार नहीं है.
प्राथमिकी में उसके खिलाफ लगायी गयी भादंसं की धारा 436 (किसी का घर क्षतिग्रस्त करने के लिए आग या विस्फोटक पदार्थों के माध्यम से गड़बड़ी करना) का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि ‘‘जांच निर्णायक चरण में है क्योंकि दयालपुरी थाने के एसएचओ का कहना है कि वीडियो फुटेज सुरक्षित रख लिया गया है और उनकी अभी तक जांच नहीं हुई है.
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जांच जारी है और घटनास्थल पर मौजूद लोगों की पहचान वैज्ञानिक साक्ष्यों से किया जाना जरूरी है और अगर यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता गैर कानूनी तरीके से वहां मौजूद था, भले ही उसने व्यक्तिगत रूप से किसी वाहन या दुकान को नहीं जलाया है तो भी वह अपराध का दोषी है.
इस चरण में यह अदालत याचिकाकर्ता को जमानत देने का कोई आधार नहीं पाती है. अभियोजन के मुताबिक आलम को आठ अन्य लोगों के साथ इस सूचना पर गिरफ्तार किया गया कि 23-24 फरवरी की रात दंगों में शामिल लोग शेरपुर चौक, करावल नगर के पास मौजूद हैं और दंगा भड़काने का प्रयास कर रहे हैं.
पुलिस का दावा है कि आलम उस अवैध भीड़ का हिस्सा था जिसने वाहनों और दुकानों को जलाने में हिस्सा लिया था