14.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

UCC EXPLAINER : क्या पीएम मोदी ने विपक्षी एकता को तोड़ने के लिए काॅमन सिविल कोड का लगाया मास्टरस्ट्रोक ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी उनके इस बयान की निंदा कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि उन्होंने देश को बांटने के लिए यह दांव खेला है, वे साल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बयानबाजी कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में यह कहा कि देश को समान नागरिक संहिता की सख्त जरूरत है क्योंकि देश दो कानून से नहीं चल सकता. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि देश के संविधान में इस बात का उल्लेख किया गया है कि देश में एक समान नागरिक संहिता होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान के सामने आते ही विरोधी खेमे में हलचल मच गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी उनके इस बयान की निंदा कर रहे हैं और यह कह रहे हैं कि उन्होंने देश को बांटने के लिए यह दांव खेला है, वे साल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बयानबाजी कर रहे हैं.

भाजपा को पटखनी देने के लिए विपक्ष हो रहा एकजुट

गौरतलब है कि 23 जून को पटना में 15 से अधिक विपक्षी दलों की महाबैठक हुई, जिसमें यह संकल्प लिया गया है कि बीजेपी को सत्ता से दूर करना है इसलिए साल 2024 का लोकसभा चुनाव ये पार्टियां साथ मिलकर लड़ेगी और भाजपा के खिलाफ साझा उम्मीदवार खड़ा किया जायेगा. हालांकि अभी विपक्ष ने इस योजना का रोडमैप तैयार नहीं किया है, लेकिन संयुक्त प्रेस काॅन्फ्रेंस में नीतीश कुमार, लालू यादव, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, महबूबा मुफ्ती और उद्धव ठाकरे जैसे नेता काफी उत्साह में नजर आये. अगली बैठक 14 जुलाई को होनी है.

विपक्षी एकता में सेंध

अगर यह कहा जाये कि विपक्ष की इस एकता के जवाब में पीएम मोदी ने समान नागरिक संहिता और पसमांदा मुसलमानों के मुद्दे को उठाया है तो गलत नहीं होगा. पीएम के इस दांव के बाद कहीं ना कहीं विपक्ष एकता में सेंध लग गयी है. आम आदमी पार्टी की ओर से 28 जून को यह कहा गया कि वे समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं करते हैं, क्योंकि संविधान में इसका उल्लेख है, लेकिन वे यह चाहते हैं कि सभी धर्मों के लोगों के साथ बातचीत करने के बाद ही इसे लागू किया जाये. वहीं शिवसेना ने भी समान नागरिक संहिता का समर्थन किया है. इसकी वजह साफ है क्योंकि शिवसेना जिन मुद्दों पर अपनी राजनीति करती आयी है उनमें से एक काॅमन सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता भी है. वहीं एनसीपी ने इस मुद्दे पर तटस्थ रहने का निर्णय किया है. विपक्षी एकता के दावे चाहे लाख किये जायें, लेकिन यह एक सच्चाई है कि इसकी डोर बहुत ही नाजुक है. प्रधानमंत्री पद को लेकर महत्वाकांक्षी नेताओं की भीड़ विपक्षी खेमे में है. इन हालात में जरा सी चिंगारी उनकी एकता को राख कर सकती है.

काॅमन सिविल कोड चर्चा में कब आया था

भारतीय संविधान के भाग 4,अनुच्छेद 44 में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य पूरे देश के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा. हालांकि सच्चाई यह है कि कभी इसका मसौदा तैयार नहीं किया गया. लेकिन 1985 में जब शाहबानो का मामला सामने आया , तो समान नागरिक संहिता की खूब चर्चा हुई. दरअसल शाहबानो एक 62 साल की वृद्ध महिला थी, उसके पांच बच्चे थे और पति ने उसे ट्रिपल तलाक दे दिया था. गुजारा भत्ता के लिए वह सुप्रीम कोर्ट गयी थी, उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन तात्कालीन कांग्रेस की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए संसद का सहारा लिया था और कोर्ट के फैसले को बदल दिया गया था. उस वक्त समान नागरिक संहिता की खूब चर्चा हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में यह कहा था कि अनुच्छेद 44 मृतपत्र के समान हो गया है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विभिन्न धर्मों के अलग-अलग कानून होने की वजह से भ्रम की स्थिति होती है, इसलिए अगर सरकार काॅमन सिविल कोड लाना चाहती है, तो उसे ले आना चाहिए.

Also Read: Breaking News Live: मणिपुर में राहुल गांधी के काफिले को रोका गया

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें