Congress: दिल्ली में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस गंभीर दिख रही है. शुरुआत में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की कोशिश हुई. लेकिन गठबंधन नहीं हो सका. आखिर में कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया. पार्टी ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के प्रमुख उम्मीदवारों के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी उतारकर यह संदेश दे दिया कि वह दिल्ली चुनाव को हल्के में नहीं लेगी. इंडिया गठबंधन में शामिल दल सपा, तृणमूल कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टी ने भी केजरीवाल को समर्थन देकर कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश की. अरविंद केजरीवाल ने चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक बयानबाजी शुरू कर दी. ऐसे में कांग्रेस ने दिल्ली में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए सक्रियता से चुनाव लड़ने का फैसला लिया.
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस नेताओं की राहुल गांधी से साथ हुई बैठक में उन्होंने स्थानीय नेताओं को मजबूती से चुनाव लड़ने को कहा. पार्टी का मानना है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को खत्म कर गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर सकती है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अकेले भाजपा से लड़ने में सक्षम है. अगर राज्यों में कांग्रेस कमजोर होगी तो उसका पक्ष भी कमजोर होगा. गठबंधन धर्म का पालन करने के कारण कांग्रेस पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा में क्षेत्रीय पार्टियों को समर्थन देने के कारण कमजोर हो गयी है. अब कांग्रेस एक सीमा के बाहर क्षेत्रीय दलों की मांग को स्वीकार नहीं करेगी.
भविष्य की रणनीति पर काम कर रही है पार्टी
कांग्रेस का मानना है कि दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा आम आदमी पार्टी को मिला है. दोनों पार्टियों का वोट बैंक एक जैसा है. कांग्रेस नेता अजय माकन साफ कर चुके हैं कि दिल्ली में गठबंधन धर्म का पालन करने की कीमत कांग्रेस नहीं चुका सकती है और केजरीवाल के खिलाफ पार्टी को आक्रामक प्रचार करना चाहिए. स्थानीय स्तर पर मिले फीडबैक के बाद कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के खिलाफ आक्रामक प्रचार चलाने का निर्णय लिया. इस फैसले के बाद राहुल गांधी ने सीलमपुर में रैली की और उनकी कई और रैली होनी है. इसके अलावा प्रियंका गांधी भी प्रचार अभियान में शामिल होंगी.
कांग्रेस इस बात से बेफ्रिक है कि दिल्ली में उनके मजबूती से चुनाव लड़ने का फायदा भाजपा को मिल सकता है. कांग्रेस यह जानती है कि इस बार दिल्ली चुनाव में वह सत्ता पर काबिज नहीं होगी, लेकिन पार्टी की कोशिश मत प्रतिशत को बढ़ाने पर है. अगर दिल्ली में भाजपा सरकार बन भी जाती है तो इससे कांग्रेस को नुकसान नहीं होगा. कांग्रेस की कोशिश दिल्ली में आप को हटाकर प्रमुख पार्टी बनने की है. दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होने पर कांग्रेस के लिए भविष्य में संभावना बन सकती है. कांग्रेस का मानना है कि दिल्ली की सत्ता से आप की विदाई से कांग्रेस का रास्ता खुल सकता है. इसका असर पंजाब में भी दिखेगा और अगली बार यहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है. ऐसे में कांग्रेस दिल्ली की चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटी हुई है.