भारतीय संविधान में अदालतों को मूक दर्शक बनने की परिकल्पना नहीं की गयी है, वह भी तब जब कार्यकारी नीतियों द्वारा नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा हो. यह टिप्पणी आज सुप्रीम कोर्ट ने कोविड 19 के प्रबंधन से जुटे मामलों पर सुनवाई करते हुए की. कोर्ट ने सरकार की वैक्सीनेशन पॉलिसी पर कई सवाल उठाये और कहा कि वे कोर्ट के सामने अपनी नीतियों को स्पष्ट करे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं कर रहा है , वह केवल संविधान द्वारा जो भूमिका तय की गयी है उसे निभा रहा है. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने सरकार की टीकाकरण नीति पर सवाल उठाये और कहा कि 18-44 साल के लोगों को प्राइवेट सेंटर पर फ्री में वैक्सीन ना देना मनमाना और तर्कहीन है.
कोर्ट ने कहा कि महामारी के बदलते स्वरूप के कारण 18-44 साल तक की एक बड़ी आबादी इस महामारी के चपेट में आयी यही वजह है कि सरकार को अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा और इस आयुवर्ग के लोगों का वैक्सीनेशन कराने पर जोर देना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह पूछा है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में 35,000 करोड़ रुपये जो वैक्सीन पर खर्च करने के लिए आवंटित किया गया था, उसका इस्तेमाल 18-44 साल तक के लोगों को फ्री वैक्सीन देने पर खर्च क्यों नहीं किया गया और अबतक इस फंड का किस तरह उपयोग किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि कोविड-19 टीकाकरण नीति से जुड़ी अपनी सोच को दर्शाने वाले सभी दस्तावेज और फाइल नोटिंग रिकार्ड पर रखे तथा कोवैक्सीन, कोविशील्ड एवं स्पूतनिक वी समेत सभी टीकों की आज तक की खरीद का ब्योरा पेश करे.
Posted By : Rajneesh Anand