संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP27) में ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए ठोस कदम उठाये जाने की सभी देश मांग और सिफारिश दोनों कर रहे हैं. काॅप-27 में कई देशों ने कड़ाई से इस बात की मांग की कि जो कंपनियां जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक इस्तेमाल कर इस धरती और जलवायु को नुकसान पहुंची रही हैं वे इसके एवज में शुल्क अदा करें.
COP27 का आयोजन मिस्र के शर्म अल शेख में किया गया है. 6 से 18 नवंबर तक इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और धरती रक्षा के लिए विभिन्न देश अपने-अपने सुझाव देंगे. संयुक्त राष्ट्र संघ ने जलवायु परिवर्तन के खतरे को समझते हुए विश्व के तमाम देशों का ध्यान इस ओर दिलाने और सही और सार्थक उपाय करने के लिए विश्व को एक मंच पर लाने का फैसला किया है.
इस सम्मेलन में बारबाडोस के प्रधानमंत्री मियां मोटले ने जोर देकर कहा कि धरती जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन के खतरे को झेल रही है, उसमें उन देशों की स्थिति बहुत खराब हो जाती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और इन खतरों का सामना करने में असमर्थ हैं. मियां मोटले ने कहा कि यह आवश्यक है कि जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने वाली कंपनियां ऐसे कमजोर देशों की सहायता के लिए मुआवजा दें.
सीओपी27 में संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि धरती के जलवायु पर संकट इस कदर बढ़ रहा है कि मानव जाति के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गये हैं, इसलिए सभी देशों को एकजुटता दिखाते हुए ठोस प्रयास करने की जरूरत है.
सीओपी27 में अपने मुद्दे उठाने के लिए किसानों ने एक ओपन लेटर लिखा है, जिसमें उन्होंने यह मांग की है कि कृषि क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के अनुरूप काम करने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाये. किसानों का यह कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो विश्व को खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है. बढ़ते प्रदूषण की वजह से धरती की उर्वरता पर असर पड़ा है, साथ ही जलवायु परिवर्तन की वजह से अनावृष्टि, अल्पवृष्टि और अति वृष्टि का असर भी खेती पर पड़ा है.
उत्सर्जन के लिए 34 प्रतिशत जिम्मेदार होने के बावजूद खाद्य और कृषि की जलवायु परिवर्तन के सम्मेलन में उपेक्षा की जाती है, ऐसा आरोप किसानों का था. पत्र लिखने वालों में 70 से अधिक संगठन शामिल हैं, जिनमें तीन करोड़ 50 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाला ‘वर्ल्ड रूरल फोरम’, अफ्रीका में लघु स्तर के 20 करोड़ उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करने वाला ‘अलायंस फॉर फुड साव्रंटी इन अफ्रीका’ और एक करोड़ 30 लाख सदस्यों वाला ‘एशियन फार्मर्स एसोसिएशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ जैसे संगठन शामिल हैं. जॉर्डन से लेकर ब्रिटेन और भारत तक के संगठनों ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.
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