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सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद उत्तराखंड में 7 पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी, बाढ़ में हुई थी 5000 की मौत

यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृति प्राप्त हो जाती है तो राज्य में कई अन्य जलविद्युत परियोजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है, क्योंकि ये सात परियोजनाएं अनुशंसित 26 परियोजनाओं का हिस्सा हैं.

उत्तराखंड में 2013 में 5000 से अधिक लोगों की जान लेने वाली बाढ़ के बाद राज्य के पनबिजली परियोजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. इस रोक के बावजूद आठ साल बाद केंद्र सरकार ने यहां सात विद्युत पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण की मंजूरी दी है. ये परियोजनाएं राज्य में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बनाये जाने हैं. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में रखे गये एक समेकित हलफनामे में इस पर सहमति व्यक्त की गयी थी.

सूची में एनटीपीसी की 4×130 मेगावाट की तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना है, जो इस साल फरवरी में चमोली जिले में धौली गंगा नदी में अचानक आई बाढ़ से तबाह हो गयी थी. अन्य 1000 मेगावाट टिहरी चरण II, 444 मेगावाट विष्णुगढ़ पीपलकोट, 99 मेगावाट सिंगोली भटवारी, 76 मेगावाट फाटा ब्योंग, 15 मेगावाट मदमहेश्वर और 4.5 मेगावाट कालीगंगा- II हैं.

यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृति प्राप्त हो जाती है तो राज्य में कई अन्य जलविद्युत परियोजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है, क्योंकि ये सात परियोजनाएं अनुशंसित 26 परियोजनाओं का हिस्सा हैं. अगस्त 2013 में सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद से पर्यावरण मंत्रालय ने कई विशेषज्ञ पैनल बनाये हैं और पहली विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करने से अपनी स्थिति बदल ली है, जिसमें 2013 की आपदा को बढ़ाने के लिए बांधों को दोषी ठहराया गया था.

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नवीनतम विशेषज्ञ समिति के निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए कि 26 जलविद्युत परियोजनाएं जा सकती हैं. कुछ डिजाइन संशोधनों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. आपको बता दें कि 2009 में उत्तराखंड ने ‘पहाड़ का पानी, पहाड़ की जवानी’ की थीम पर अपने विजन 2020 स्टेटमेंट का मसौदा तैयार किया. 2012 में भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की एक रिपोर्ट ने अलकनंदा और भागीरथी घाटियों की सुरक्षा के लिए 24 प्रस्तावित बांधों का विरोध किया गया.

वहीं, 2013 में केदारनाथ आपदा और इसके प्रभाव के बारे में स्वत: संज्ञान लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने जलविद्युत परियोजनाओं की मंजूरी रोक दी, और पर्यावरण मंत्रालय को एक विशेषज्ञ निकाय (EB) बनाने के लिए कहा जो जलविद्युत परियोजनाओं की मशरूमिंग” की भूमिका का आकलन करने के लिए आगे बढ़े. 2014 के अप्रैल में, पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा के नेतृत्व में ईबी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो डब्ल्यूआईआई की सिफारिश से सहमत थी.

नवंबर 2017 में उत्तराखंड ने अपने सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जलविद्युत की महत्वपूर्णता को रेखांकित किया. जनवरी 2018 में बिजली मंत्रालय ने उत्तराखंड के रुख का समर्थन किया. 2020 के मार्च में दास कमेटी ने फाइनल रिपोर्ट दाखिल की. अगस्त में, उत्तराखंड ने पनबिजली विकास को फिर से शुरू करने की मांग की. फरवरी 2021 में चमोली में अचानक आई बाढ़ से दो जलविद्युत परियोजनाएं प्रभावित हुईं. अगस्त में, सरकार ने फरवरी में क्षतिग्रस्त एक सहित सात परियोजनाओं का समर्थन किया.

Posted By: Amlesh Nandan.

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