15 फरवरी 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया. यह फैसला कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया, जिन्होंने योजना की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन करती है. यह योजना राजनीतिक दलों के लिए चंदे के स्रोतों को गुप्त रखने की अनुमति देती है.
Also Read: क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक?
इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत 16,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि प्राप्त हुई
विभिन्न राजनीतिक दलों को अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत 16,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि प्राप्त हुई है, जिसमें से सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिलने का अनुमान है.निर्वाचन आयोग और चुनाव सुधार संस्था ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों को 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना (अब रद्द की जा चुकी) की शुरुआत होने के बाद से पिछले वित्त वर्ष तक कुल 12,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि मिली और इसमें से सत्तारूढ़ भाजपा को करीब 55 प्रतिशत (6,565 करोड़ रुपये) मिले.
2023-24 के लिए राजनीतिक दलों के अलग-अलग आंकड़े
मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 के लिए राजनीतिक दलों के अलग-अलग आंकड़े, साल के लिए उनके वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उपलब्ध होंगे. एडीआर ने मार्च 2018 और जनवरी 2024 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के जरिये जुटाई गई कुल राशि 16,518.11 करोड़ रुपये होने का अनुमान जताया है. औसतन, राजनीतिक दलों को प्राप्त कुल चंदे का आधे से अधिक हिस्सा बॉण्ड से प्राप्त राशि का है, हालांकि, अपने-अपने राज्यों में सत्तारूढ़ कुछ क्षेत्रीय दलों के मामले में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत से अधिक है.
भाजपा की आय बढ़ती रही, कांग्रेस की आय गिरती रही
भाजपा के मामले में भी, इलेक्टोरल बॉन्ड इसे प्राप्त कुल चंदे का आधे से अधिक हिस्सा है. NDA-2 के कार्यकाल के अंतिम वर्ष से देश की सबसे अमीर पार्टी होने के मामले में भाजपा ने कांग्रेस की जगह ले ली. वित्त वर्ष 2013-14 में कांग्रेस की 598 करोड़ रुपये की आय की तुलना में भाजपा की कुल आय 673.8 करोड़ रुपये थी. तब से, बीच के कुछ वर्षों को छोड़कर, भाजपा की आय ज्यादातर बढ़ती रही है, जबकि कांग्रेस की आय में गिरावट देखी गई है.
2018-19 में बीजेपी की चंदे से आय दो-गुणी हो गई
इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत होने के बाद, पहला पूर्ण वित्तीय वर्ष 2018-19 था, जब भाजपा की आय (1,027 करोड़ रुपये से) दोगुनी से अधिक होकर 2,410 करोड़ रुपये हो गई, जबकि कांग्रेस की आय भी तीव्र वृद्धि के साथ 199 करोड़ रुपये से 918 करोड़ रुपये हो गई. पिछले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान, भाजपा की कुल आय 2,360 करोड़ रुपये थी, जिसमें से लगभग 1,300 करोड़ रुपये चुनावी बॉण्ड के माध्यम से आए थे. उसी वर्ष, कांग्रेस की कुल आय घटकर 452 करोड़ रुपये रह गई, जिसमें से 171 करोड़ रुपये चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त हुए थे.
भाजपा को 2021-22 में मिले 1,033 करोड़
भाजपा को 2021-22 में इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त होने वाला धन 1,033 करोड़ रुपये से बढ़ गया, जबकि कांग्रेस को प्राप्त राशि उस वर्ष 236 करोड़ रुपये से घट गयी. अन्य दलों में, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को पिछले वित्त वर्ष में इन बॉण्ड के माध्यम से 325 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जबकि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को 529 करोड़ रुपये, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को 185 करोड़ रुपये, बीजू जनता दल (बीजद) को 152 करोड़ रुपये और तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) को 34 करोड़ रुपये प्राप्त हुए. समाजवादी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को चुनावी बॉण्ड के रूप में एक भी रुपया नहीं प्राप्त हुआ.
चुनावी बॉण्ड में आधी से अधिक रकम कॉरपोरेट से प्राप्त हुई
चुनावी बॉण्ड में आधी से अधिक रकम कॉरपोरेट (निजी कंपनियों) से प्राप्त हुई, जबकि शेष राशि अन्य स्रोतों से आई. उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक वित्तपोषण के लिए शुरू की गई चुनावी बॉण्ड योजना को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह सूचना का अधिकार और संविधान में प्रदत्त भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है.
Also Read: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताकर किया रद्द, एसबीआई को देनी होगी रिपोर्ट