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भारत में जल्द ही होगा 17वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव, जानिए कैसे होता है प्रेसिडेंट इलेक्शन

भारत में राष्ट्रपति चुनाव में देश की जनता प्रत्यक्ष रूप से मतदान नहीं करते हैं, बल्कि उनके द्वारा चुने गए सांसद और विधायक मत डालते हैं. संविधान की धारा 54 के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में जनता अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होती है.

नई दिल्ली : भारत में 17वें राष्ट्रपति के लिए जुलाई के महीने में चुनाव होगा. देश के 16वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई 2022 को समाप्त हो जाएगा. उनका कार्यकाल समाप्त होने से पहले राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो जाना है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनीतिक सरगर्मियां अभी से ही शुरू हो गई हैं. सियासी गलियारे और मीडिया में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में चार राज्यों में जीत हासिल करने के बाद भी भाजपा का राष्ट्रपति चुनाव में आसानी सफलता हासिल करना मुश्किल है.

बहुमत के लिए कितने वोटों की जरूरत

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अभी सत्तारूढ़ भाजपा की देश के 17 राज्यों में सरकारें हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल के पास वोटों के कुल वेटेज की संख्या 10,98,903 है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का वोट मूल्य 6,264 है, जो फिलहाल निलंबित है. इसे घटाने के बाद राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 5,46,320 सिमटकर रह गया है. सत्तारूढ़ भाजपा के पास 4,65,797 वोट हैं, जबकि इसके सहयोगी दल के पास 71,329 वोट हैं. इन दोनों को मिला दिया जाए तो भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास कुल 537,126 वोट हैं, जो बहुमत से करीब 9,194 वोट कम है.

राज्यसभा में दलगत स्थिति

राज्यसभा से करीब 72 सांसद रिटायर कर गए. इनके रिटायरमेंट के बाद 245 सदस्यीय राज्यसभा में फिलहाल नौ सीट खाली हैं.

आप-3

एआईडीएमके – 5

टीएमसी – 13

असम गण परिषद – 1

बहुजन समाज पार्टी – 3

भाजपा – 100

बीजू जनता दल – 10

सीपीआई – 2

सीपीआईएम – 5

डीएमके – 10

निर्दलीय -2

कांग्रेस – 30

आईयूएमएल – 1

जेडीएस – 1

जेडीयू -4

जेएमएम -1

केसीएम -1

एमडीएमके -1

एमएनएफ -1

एनपीपी -1

एनसीपी – 4

नॉमिनेटेड – 3

पीएमके – 1

आरजेडी – 5

आईपीआईए – 1

समाजवादी पार्टी – 5

शिरोमणि अकाली दल – 3

शिवसेना – 3

एसडीएफ – 1

टीएमसीएम – 1

टीआरएस – 6

टीडीपी – 1

यूपीपीएल – 1

वाईएसआरसीपी – 6

खाली सीट -9

भारत में कैसे होता है राष्ट्रपति चुनाव

भारत में राष्ट्रपति चुनाव में देश की जनता प्रत्यक्ष रूप से मतदान नहीं करते हैं, बल्कि उनके द्वारा चुने गए सांसद और विधायक मत डालते हैं. संविधान की धारा 54 के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में जनता अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होती है. उसके बदले निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस चुनाव में वोट करते हैं. इसे अप्रत्यक्ष निर्वाचन भी कहा जाता है.

किसे है वोट देने का अधिकार

राष्ट्रपति चुनाव में राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और विधायकों को वोट देने के अधिकार है. इस चुनावी प्रक्रिया में राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद में नामित या नॉमिनेटेड जनप्रतिनिधि और विधानपार्षद शामिल नहीं हो सकते. विधान पार्षदों और नामित व्यक्तियों के पास वोट करने का अधिकार नहीं है.

एकल हस्तांतरणीय मत

भारत में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत यानी सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली के जरिए मतदान किया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा का एक सदस्य एक ही वोट कर सकता है. एक सदस्य का एक वोट राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवारों में अपनी प्राथमिकता तय कर देता है कि उसकी पहली, दूसरी कौन और तीसरी पंसद कौन है. अब पहली पंसद के जरिए विजेता का फैसला नहीं हो पाता है, तो उम्मीदवार के खाते में दूसरी पसंद के वोट को नए एकल मत की तरह ट्रांसफर यानी हस्तांतरित कर दिया जाता है. इसीलिए इसे एकल हस्तांतरणीय या सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है.

कैसे तय होती है प्राथमिकता

सांसदों या विधायकों की प्राथमिकता या प्रायोरिटी को समझने के लिए मतों की गिनती को समझना जरूरी है. बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करते वक्त सांसद या विधायक अपने बैलेट पेपर पहले ही बता देते हैं कि उनकी पहली पसंद वाला उम्मीदवार कौन है. इसके बाद वे दूसरी और तीसरी पसंद वाले उम्मीदवार का नाम बताते हैं. वोटों की गिनती के वक्त सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली पसंद या पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं. यदि इस पहली गिनती में ही कोई उम्मीदवार जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर लेता है, तो उसकी जीत हो जाती है. वहीं, अगर ऐसा नहीं हो पाता है, तो दूसरी वरीयता वाले मतों का इस्तेमाल किया जाता है.

आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था क्या है

भारत के राष्ट्रपति चुनाव में शामिल होने वाले विधायकों और सांसदों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है. यहां तक कि भारत के किसी दो राज्यों के विधायकों का वेटेज भी अलग-अलग होता है. जिस तरीके से वोटों का वेटेज तय किया जाता है, उसे ही आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.

विधायकों के वोट का वेटेज

हर राज्य के विधायकों के वोटों का वेटेज राज्य की जनसंख्या और विधानसभा क्षेत्रों की संख्या पर निर्भर करता है. विधायकों के वोटों का वेटेज निकाले के लिए उस प्रदेश की जनसंख्या को राज्य में निर्वाचित कुल विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है. इसके बाद प्राप्त होने वाले अंक को 1000 से भाग दिया जाता है. इसके बाद जो भागफल सामने आता है, वही एक विधायक के वोट का वेटेज कहलता है. अब अगर भागफल की संख्या 500 से अधिक है, तो उसमें 1 जोड़ दिया जाता है.

सांसदों के वोट का वेटेज

सांसदों के वोट के वेटेज का फॉमूला विधायकों के वोट के वेटेज से अलग है. सांसदों के वोट का वेटेज तय करने के लिए सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के वोटों के वेटेज से जोड़ा जाता है. अब इस वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इसके बाद जो भागफल सामने आता है, वही किसी सांसद के वोट का वेटेज कहलाता है. भाग देने की प्रक्रिया में अगर शेष 0.5 से अधिक आता है, तो इसमें भी एक जोड़ दिया जाता है.

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वोटों की कैसे की जाती है गिनती

भारत के राष्ट्रपति चुनाव में यह कोई आवश्यक नहीं है कि सबसे अधिक वोट हासिल करने वाला उम्मीदवार जीत हासिल कर ही लेता है. इस चुनाव में राष्ट्रपति के पद के लिए विजेता उसे घोषित किया जाता है, जो सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधी से अधिक संख्या बल हासिल कर लेता है. इस चुनाव में पहले से ही यह तय होता है कि जीत हासिल करने के लिए राष्ट्रपति पद के किसी उम्मीदवार को वोटों के कितने वेटेज की जरूरत होगी. इस समय राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों के वोटों का वेटेज 10,98,903 है. किसी प्रत्याशी को राष्ट्रपति पद के लिए जीत हासिल करने के लिए वोटों के कम से कम 5,46,320 वेटेज की जरूरत होगी. यह संख्या हासिल करने वाले प्रत्याशी देश के राष्ट्रपति चुने जाते हैं.

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