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इमरजेंसी: …जब कब्रिस्तान में जमा हुए थे दोस्त और बनायी थी आंदोलन की रणनीति

Emergency in India: यादों को ताजा करते हुए श्रीनिवास कहते हैं कि हमारे घर में इंदिरा गांधी की एक तस्वीर लगी थी. वो भी फ्रेम में...इमरजेंसी की बात सुनकर वैसे ही हमारी रगो में खून तेजी से दौड़ने लगा था. इंदिरा गांधी की तस्वीर को हमने दीवार से उतारा और...

देश में आपातकाल यानी इमरजेंसी को लेकर आज भी खूब चर्चा होती है. राजनीतिक बहस होती हैं लेकिन उस वक्त मौजूद कुछ आंदोलनकारियों के जेहन में आज भी वो काला दिन उसी तरह से छपा हुआ जैसा उन्होंने देखा और महसूस किया था. इनमें से एक जेपी आंदोलन से जुड़े आंदोलनकारी और वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास हैं, जिन्होंने पुराने दिनों की याद हमारे साथ साझा की. वे बताते हैं कि उनका परिवार बिहार के मुजफ्फरपुर में रहता था जबकि वे बेतिया को अपना ठिकाना बनाये हुए थे. 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगायी गयी लेकिन इसके अगले दिन इसकी जानकारी उन्हें मिली.

श्रीनिवास ने बताया कि वो 26 जून 1975 की बात है. मेरे पिताजी बीबीसी समाचार सुन रहे थे. उसी वक्त एक खबर को सुनकर वो चौंक गये और मेरे पास दौड़े-दौड़े आये और कहा कि देश में इमरजेंसी लगायी जा चुकी है. जेपी गिरफ्तार हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि उस वक्त मुझे इमरजेंसी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. मैं बाजार की ओर दौड़ा और अखबार उठाकर लाया. अखबार पढ़कर सारा माजरा क्लियर हो गया कि अब देश में क्या करना है और क्या नहीं. उन्होंने कहा कि क्योंकि हम जेपी आंदोलन से जुड़े हुए थे इसलिए इस खबर से धड़कनें ज्यादा तेज चलने लगी थी.

इंदिरा गांधी की एक तस्वीर थी श्रीनिवास के घर पर

यादों को ताजा करते हुए श्रीनिवास कहते हैं कि हमारे घर में इंदिरा गांधी की एक तस्वीर लगी थी. वो भी फ्रेम में…इमरजेंसी की बात सुनकर वैसे ही हमारी रगो में खून तेजी से दौड़ने लगा था. इंदिरा गांधी की तस्वीर को हमने दीवार से उतारा, हालांकि पिताजी ने मुझे और मेरे भाई को रोका..लेकिन हम कहां रुकने वाले थे. हमने तस्वीर को दीवार से उतार दिया.

आंदोलन का जुनून सवार था तो पिताजी की बात कैसे मानता

आंदोलनकारी श्रीनिवास ने बताया कि वे आंदोलन के क्रम में पहले भी चार बार जेल जा चुके थे (एक बार ‘मीसा’ के तहत), इसलिए उनके पिताजी ज्यादा चिंतित थे. पिताजी ने कहा कि इस बार जेल गये तो जल्दी नहीं छूट पाओगे. लेकिन हमारे में आंदोलन का जुनून सवार था तो पिताजी की बात कैसे मानता…मैं मुजफ्फरपुर से फौरन बेतिया रवाना हुआ. यहां मैंने अपने दोस्तों से मुलाकात की. 27 जून को हमने एक बैठक रखी वो भी कब्रिस्तान में..सभी दोस्त आगे की रणनीति बनाने वहां पहुंचे. इसी वक्त हमारे हाथ में एक पर्चा आया. इस पर्चे में मोतिहारी बंद की बात लिखी नजर आयी. हमलोगों ने भी फैसला किया कि 28 जून को हम बेतिया बंद का ऐलान करेंगे.

28 जून को हम बेतिया बंद कराने के लिए निकले

वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास ने आगे बताया कि हमने पर्चे में मोतिहारी की जगह बेतिया लिखा और पर्चा पूरे शहर में बांटने लगे. 28 जून को हम बेतिया बंद कराने के लिए निकल पड़े. बेतिया बंद के हमारे नारों से लोगों के बीच हड़कंप मच गया. लोग अपनी-अपनी दुकानें बंद करने लगे लेकिन तभी हम एक दुकान के पास पहुंचे. उस दुकानदार ने बंद का विरोध किया. इस विरोध के बाद दुकानदार की हमारे साथ झड़प हो गयी. उन्होंने बताया कि इसके बाद वे एक स्कूल पहुंचे. वहां हालांकि प्रधानाचार्य से बहस के बाद भी 15 से 20 बच्चे उनके साथ हो लिये.

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बंद कराने के बीच वहां पुलिस पहुंच गयी. श्रीनिवास बताते हैं कि वे पुलिस को देख एक पान दुकान की ओर चले गये. जब पुलिस उनकी ओर आने लगी तो वे भागने लगे लेकिन पुलिस ने उन्हें दौड़ाकर पकड़ लिया. आंदोलन करते हुए श्रीनिवास 28 जून को गिरफ्तार किये गये. उसी दिन उन्हें जेल में डाल दिया गया. इसके बाद जेल में उनके साथ आंदोलनकारियों की संख्या बढ़ती चली गयी. करीब 11 महीने जेल में रहने के बाद वे जेल से छूटे.

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