भारत सरकार का लक्ष्य यह है कि 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन के जरिये कुल बिजली आपूर्ति का आधा प्रदान किया जाये. इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वादा भी कर चुके हैं. उन्होंने नवंबर 2021 में COP26 सम्मेलन में यह कहा था कि ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम किया जायेगा. 2030 तक 45% तक उत्सर्जन को कम करने की योजना है. इस योजना के तहत उत्सर्जन को 2005 के स्तर से नीचे लाया जायेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गैर-जीवाश्म ईंधन की क्षमता 500 गीगावाट से अधिक की जायेगी. साथ ही उन्होंने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य भी निर्धारित किया है. यह बात बोलने में जितनी सहज है, इस योजना का क्रियान्वयन उतना ही कठिन है. इसके लिए सरकार को कई योजनाएं बनाने होंगी और उनपर गंभीरता से काम भी करना होगा.
सरकार ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किये हैं, उनके मार्ग में कई तरह की बाधाएं हैं, जिनमें सबसे बड़ी बाधा एक रिपोर्ट के अनुसार फंडिंग है. ब्लूमबर्ग एनईएफ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार ऊर्जा के नवीनतम स्रोत यानी सौर और पवन ऊर्जा को स्थापित करने के लिए 2030 तक भारत को 223 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी.
पावर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सहयोग से ‘फाइनेंसिंग इंडियाज 2030 रिन्यूएबल्स एम्बिशन’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में यह पाया गया है कि भारतीय कंपनियों की कॉर्पोरेट प्रतिबद्धता भारत को गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन क्षमता के 500GW तक पहुंचा सकती है. इस रिपोर्ट में में अक्षय ऊर्जा के वित्तपोषण के लिए चुनौतियों की जांच भी की गयी है. साथ ही पूंजी के नये या कम उपयोग किए गए स्रोतों की पहचान भी गयी है और वित्तपोषण की उपलब्धता बढ़ाने के उपायों की रूपरेखा भी बतायी गयी है.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 से 21 के बीच में भारत की बिजली उत्पादन क्षमता में 118 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसमें रिन्युएबल एनर्जी की हिस्सेदारी 2021 में 37 प्रतिशत हो गयी है. सौर ऊर्जा का तेजी से विस्तार हो रहा है और इसकी क्षमता 60 गीगावाट तक पहुंच गयी है. रिन्युएबल एनर्जी की हिस्सेदारी में वृद्धि सरकारी नीतियों के वजह से हुई है. वहीं देश में कोयले की क्षमता में लगातार गिरावट आ रही है. 2015 में इसमें 19 गीगावाट की गिरावट दर्ज की गयी थी. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में जो नये सौर और पवन ऊर्जा के संयंत्र लगाये जा रहे हैं वे काफी कम लागत के हैं और लोगों को फ्री बिजली भी उपलब्ध कराते हैं.
चूंकि भारत में बिजली की डिमांड लगातार बढ़ी है और यह 2021 में 1,359TWh हो गयी है. 2011 की तुलना में 48 प्रतिशत अधिक है. इसकी वजह यह है कि बिजली अब देश की कुल आबादी के 100 प्रतिशत लोगों तक उपलब्ध है. रिपोर्ट के अनुसार भारत लगातार क्लाइमेटस्कोप बाजार के आकर्षण का केंद्र रहा है. यही वजह है कि यहां सौर और पवन ऊर्जा के कई संयंत्र लगाये जा रहे हैं.