महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में अपने जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी घटनाओं का जिक्र किया है. उन्होंने अपनी आत्मकथा में बहुत ही साफगोई से यह स्वीकार किया है कि उनके अंदर वो तमाम कमजोरियां थीं जो एक आम आदमी के अंदर होती हैं. साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि किस प्रकार उन्होंने उन कमजोरियों से पार पाया.
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में अपने विवाह और स्त्री-पुरुष संबंध को लेकर बहुत ही स्पष्टता से बातें की हैं. महात्मा गांधी ने सत्य के प्रयोग लिखा है कि उनकी शादी मात्र 13 वर्ष की उम्र में हुई थी. महात्मा गांधी ने अपने विवाह के बारे में लिखा है कि उन्हें बहुत अफसोस होता है कि उनका बाल विवाह हुआ था. गांधी जी ने लिखा है कि उनकी तीन सगाई हुई और तीसरी सगाई के बाद ब्याह हुआ. पहली दो सगाई जिन लड़कियों से हुई वे मर गयीं. तीसरी सगाई करीब सात साल की उम्र में हुई थी.
गांधी जी ने लिखा है कि भारतीय समाज में शादी यानी बेफिजूल के खर्चे. गांधी जी बहुत रोचक अंदाज में लिखा है कि वर-कन्या पक्ष किस तरह शादी में धन लुटाते हैं. कपड़े-गहने खरीदते हैं. गांधी जी ने बताया है कि शादी में उन्हें काफी शर्म आ रही थी और उनके लिए शादी का अर्थ सिर्फ नये कपड़े पहनना. अपनी उम्र की लड़की से विनोद करना मात्र था.
शादी की पहली रात को वे अपनी पत्नी कस्तूरबा से शरमा रहे थे. उनकी भाभी ने उन्हें सिखलाया था कि लड़की से क्या बात करना है. लेकिन वे अपनी पत्नी से शरमा तो रहे थे डर भी रहे थे. गांधी जी ने लिखा है कि धीरे-धीरे हम एक दूसरे को समझने लगे और बात करने लगे. गांधीजी ने अपने विवाह को लेकर बताया है कि किस तरह छोटी उम्र में विवाह होने से कम विकसित बुद्धि आचरण करती है.
गांधी ने अपनी आत्मकथा में बड़ी बेबाकी से लिखा है कि अपनी पत्नी को लेकर मैं ईष्यालु हो गया था. कहीं पढ़ा था कि पत्नी को एक पति व्रत का पालन करना चाहिए. इस व्रत को स्त्री खुद पालन करे तो बेहतर, लेकिन छोटी उम्र के कारण मैं उस पर शक करने लगा, उसकी निगरानी करने लगा.
गांधी जी ने बताया है कि कस्तूरबा निरक्षर थी और वे उन्हें पढ़ाना चाहते थे. लेकिन उनके लिए यह संभव नहीं था क्योंकि उस जमाने में पति-पत्नी बड़ों के सामने एक साथ नहीं रह सकते थे. स्त्री शिक्षा, विवाह से जुड़े नियम -कायदे और स्त्री अधिकारों को लेकर गांधी जी सजग थे और वे चाहते थे कि उनकी पत्नी और समाज की अन्य महिलाएं भी पढ़े-लिखें इसी उद्देश्य से उन्होंने घूंघट का भी विरोध किया था.
गांधी जी बताया है कि उन्हें भूत, चोर और सांपों से बहुत डर लगता था. इसलिए वे ना तो अंधेरे में कहीं जाते थे और ना अकेले कभी सोते थे. उन्हें यह महसूस भी हुआ था कि कस्तूरबा उनसे ज्यादा हिम्मती है. लेकिन वे अपने डर के बारे में उनसे कहना नहीं चाहते थे. उनके दोस्त उन्हें चिढ़ाते थे और यहां तक कहते थे वे सांपों को हाथ से पकड़ते हैं और भूतों को डराते हैं और वे ये सब इसलिए कर पाते हैं कि क्योंकि वे मांसाहार करते हैं. इसी वजह से गांधी जी के मन में भी मांसाहार करने की बात आयी थी, हालांकि वे जल्दी ही सच्चाई से वाकिफ भी हो गये थे.
गांधी की आत्मकथा में ऐसे कई किस्से भरे पड़े हैं, जिसमें गांधी जी ने अपने व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं से बड़ी ही निर्भीकता के साथ परिचय कराया है. चाहे वो मांसाहार की बात हो, शिक्षक का मजाक उड़ाने की बात हो. व्याभिचार की बात हो या कुछ और हो. उन्होंने बेहतरीन तरीके से बताया है कि किस तरह उन्होंने अपनी कमियों से लोहा लिया और अंतत: महात्मा बने.
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