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Handicraft : पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती सिक्किम की कालीन कला, जानिए क्या है विशेषता

सिक्किम में प्रकृति के मनोहारी दृश्यों के साथ अनूठे हस्तशिल्प भी देखने को मिलते हैं. कालीन बुनाई की कला यहां की ऐसे ही अनूठी हस्तशिल्प का प्रतिनिधित्व करती है...

Handicraft : हस्तशिल्प, भारतीय परंपरा और संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. देश के प्रत्येक हिस्से की भिन्न-भिन्न पारंपरिक हस्तशिल्प कला है. इस बार हम आपको लिये चलते हैं पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम में, जो न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, बल्कि अपनी आकर्षक हस्तशिल्प और हथकरघा कारीगरी के लिए भी जाना जाता है. विशेष रूप से सिक्किम के कालीन, इस राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक हैं. यहां कालीन बुनाई की कला को पारिवारिक विरासत का एक अभिन्न अंग माना जाता है और यह पारंपारिक विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती है.

ये हैं अनूठी हस्तशिल्प कला की वाहक

सिक्किम की कालीन बुनाई को दुनिया की कालीन कला के प्राचीनतम प्रकारों में से एक माना जाता है. हाथ से बुने गये ऊनी कालीन इस राज्य की विशेषता है. इस कालीन को स्थानीय तौर पर ‘डेन’ के नाम से जाना जाता है. सिक्किम के भूटिया समुदाय की महिलाएं इस परंपरा की वाहक हैं और वे गर्व से इन कलाकृतियों की प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं. इन्हें ‘विशेषज्ञ कालीन बुनकर’ के रूप में जाना जाता है. ये महिलाएं बुनाई के लिए एक विशिष्ट तरीके- जिसे ‘फ्रेम-लूम बुनाई’ कहा जाता है- का उपयोग करती हैं. हालांकि इसकी बुनावट में बौद्ध धर्म से जुड़ी चित्र लिपी (iconography) और तिब्बती डिजाइनों से प्रेरित रंग संयोजन और सजावटी रूपांकन (कलर स्कीम्स और डेकोरेटिव मोटिफ) शामिल होते हैं. परंतु इनमें सिक्किम के अलग-अलग क्षेत्रों की रंगाई और बुनाई की अलग-अलग शैलियों का भी इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रकार, इस हस्तशिल्प में आपको काफी विविधता देखने को मिलेगी, जो अलग-अलग क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व करती दिखती हैं.

प्राचीन काल से मौजूद है यह बुनाई कला

ऐसा माना जाता है कि सिक्किम में कालीन बुनने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. वर्ष 1920 के दशक में, सिक्किम के तत्कालीन शासक ‘चोग्याल ताशी नामग्याल’ ने इस कला को संरक्षण दिया और महल में कालीनों की बुनाई के लिए एक कारखाना खोला गया, जिसका नाम था ‘नामखांग’. तब से ही यह कला फल-फूल रही है.

बुनाई के लिए पूरे समर्पण की आवश्यकता

कालीन बुनाई अत्यधिक मेहनत का काम है और इसके लिए पूर्ण समर्पण व एकाग्रता की आवश्यकता होती है. कालीन पर जो डिजाइन बनाये जाते हैं, उसे सबसे पहले एक ग्राफ पेपर पर तैयार किया जाता है और फिर बुनकर की सुविधा के लिए करघे के ऊपर लटका दिया जाता है. इसे ही देखकर बुनकर कालीन पर डिजाइन तैयार करते हैं. कालीन पर बुने गये प्रत्येक डिजाइन का एक नाम और उसका एक अलग महत्व होता है. इन कालीनों पर जो डिजाइन बुने जाते हैं उनमें आम तौर पर मुंह में गेंद दबाये एक ड्रैगन की छवि, डाक व जीरा नामक दो पौराणिक तिब्बती पक्षी, पवित्र बौद्ध प्रतीक होते हैं. इसके साथ ही कई ऐसे डिजाइन भी बुने जाते हैं, जो सिक्किम की मन मोहने वाली सुंदरता को दर्शाते हैं. इनके अतिरिक्त, कालीन पर तांगा भी बुना जाता है जो बुनकरों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक डिजाइनों में से एक माना जाता है.

इतने दिन लगते हैं एक कालीन तैयार होने में

कालीन को बनाने की प्रक्रिया आमतौर पर ऊन को तैयार करने से शुरू होती है. जिसमें धुनाई, रंगाई और ऊन के गोले बनाने जैसे काम शामिल हैं. बुनाई के बाद कालीन की छंटाई की जाती है, और कालीन को मनमाफिक शेप और साइज देने के लिए अतिरिक्त रेशों को काट दिया जाता है. सामान्य परिस्थिति में एक कालीन तैयार करने में लगभग आठ से दस दिन का समय लगता है. पारंपरिक कालीनों के अलावा, भूटिया महिलाएं पलंग के पास रखे जाने वाले छोटे कालीन भी बुनती हैं, जिन्हें आसन कहा जाता है.

देश के आर्थिक विकास में भूमिका

आज सिक्किम का कालीन उद्योग, देश के आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभा रहा है. यहां के कालीन की विदेशों में भारी मांग है. सरकार और स्थानीय लोगों की मदद से राज्य के विभिन्न हिस्सों में कई प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किये गये है, ताकि इस उद्योग को स्थायित्व मिले और यह अनूठी प्राचीन परंपरा बनी रहे.

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