आईआईटी-बॉम्बे एक खबर को लेकर इन दिनों सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल, लेक्चर को लेकर आईआईटी-बॉम्बे सुर्खियों में आया. यहां इजरायल-हमास युद्ध को लेकर विवादित बयान दिया गया. विवाद इतना बढ़ गया कि छात्रों के एक गुट ने एफआईआर तक की मांग की है. इस सबके बीच कॉलेज प्रबंधन ने अहम कदम उठाते हुए सेमिनार पर लगाम लगाने का फैसला लिया है. इसको लेकर एक अंतरिम दिशा-निर्देश जारी करने का काम किया गया है. इस दिशा-निर्देश में राजनीतिक डिबेट के लिए बाहरी वक्ताओं को आमंत्रित करने को लेकर दिशा-निर्देश दिया गया है और कहा गया है कि किसी को आमंत्रित करने से पहले समीक्षा समिति की अनुमति जरूरी होगी. यही नहीं, परिसर के अंदर बैठक की लिए पुलिस की अनुमति भी लेने की जरूरत आगे पड़ेगी. कार्यक्रम जब आयोजित होगा तो उसका वीडियो रिकॉर्डिंग कराया जाएगा. आईआईटी बॉम्बे के रजिस्ट्रार ने इसको लेकर अंतरिम आदेश जारी किया गया है.
संस्थान की छवि को पहुंचता है नुकसान
आईआईटी रजिस्ट्रार द्वारा जो बात कही गई है और दिशा-निर्देश जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि संस्थान शैक्षणिक विषयों पर स्वतंत्र और खुली चर्चा को लेकर सकारात्मक रहता है, लेकिन चर्चा को राजनीतिक नहीं बनाना चाहिए. इसलिए, यह जरूरी है कि हमारे छात्र, संकाय सदस्य और कर्मचारी इस विवाद से दूर रहें. इससे संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचता है.
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क्या है पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जो नया दिशा-निर्देश जारी किया गया है वो पीएचडी छात्र ओंकार सुपेकर से जुड़ी घटना के बाद आया है. सुपेकर ने फिलिस्तीन की स्थिति पर एक व्याख्यान के बारे में पुलिस से शिकायत की थी. उन्होंने भाषण को भड़काऊ बताया था जिसके बाद इसकी चर्चा तेज हो गई थी. यहां चर्चा कर दें कि वार्ता का आयोजन मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की प्रोफेसर शर्मिष्ठा साहा द्वारा किया गया था. इस दौरान सुधन्वा देशपांडे ने हमास और आतंकवाद का जिक्र किया था जिसको मोबाइल पर रिकॉर्ड किया गया था. इस वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया था जिसके बाद बवाल हो गया था. एक दक्षिणपंथी संगठन मामले के बाद विरोध प्रदर्शन करता नजर आया. साहा और देशपांडे की गिरफ्तारी की मांग तक की गई.